Book Title: Tulsi Prajna 1991 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 66
________________ कुम्भकार कहलाता है ।" भावना भाता हुआ गदहा ( गधा ) भगवान् से प्रार्थना करता है : "मेरा नाम सार्थक हो प्रभो ! यानी / 'गद्' का अर्थ है रोग 'हा' का अर्थ है हारक मैं सबके रोगों का हन्ता बनूं / बस / और कुछ वांछा नहीं / गद - हा. . गदहा ।" आधि, व्याधि, उपाधि की व्याख्या देखिए ..... "व्याधि से इतनी भीति नहीं इसे जितनी आधि से है / और आधि से इतनी भीति नहीं इसे जितनी उपाधि से । इसे उपधि की आवश्यकता है उपाधि की नहीं, मां ! इसे समधी समाधि मिले, बस ! अवधि प्रमादी नहीं । उपधि यानी उपकरण - उपकारक है ना ! उपाधि यानी परिग्रह - अपकारक है, ना !" नारी के विविध रूपों के लिए कवि कहता हैनारी- इनकी आंखें हैं करूणा की कारिका शत्रुता छू नहीं सकती इन्हें मिलन सारी मित्रता ! मुफ्त मिलती रहती इनसे । यही कारण है / कि इनका सार्थक नाम है 'नारी' यानी 'नअरि' नारी अथवा कुमारी -- 'कु' यानी पृथिवी अबला -- १६६ ये आरी नहीं हैं सो नारी । 'मा' यानी लक्ष्मी और 'री' यानी देनेवाली इसी से यह भाव निकलता है कि यह धरा सम्पदा सम्पन्न / तब तक रहेगी जब तक यहां कुमारी रहेगी । - जो पुरुष - चिन्तन की वृत्ति को विगत की दशाओं और अनागत की आशाओं से पूरी तरह हटाकर 'अव' यानी / आगत वर्तमान में लाती है। अबला कहलाती है वह । Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org

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