Book Title: Tulsi Prajna 1991 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ ३०. क. स. सा. १८१९२। ३१. को. अर्थशास्त्रम्-१२।४।१, महाभारत-११११४६ । ३२. रामायणम् ३३६६७ । ३३. वही, २५।१२। ३४. वही. ७।६७।१६। ३५. बंगला साहित्य, हिन्दी-साहित्य, भारतीय-साहित्य, सोवियत-साहित्य इत्यादि । ३६. "वेदाच्च वैदिकाः शब्दाः सिद्धा, लोकाच्च लौकिकाः, महा. १२२८८।११, अतोऽस्मि लोके थेवे च प्रथितः पुरुषोत्तमः। भगवद्गीता १३८ । 37. Herder had used such terms as volkslied (Folksong), volksseela (Folk soul) and volksglable (Folk belief) in the late Eighteen century. His famous anthology of folksongs, "stimmen der volker in liedern'' was first published in 1778-1779, but folkloristics proper, in the sense of the scholarly study of folklore, did not emerge quite later. The Grimm brothers published the first volume of their celebrated kinder und Hausmarchen in 1812. While the English work folklore was not coined until, Thomas first proposed it in 1846. -Essays in Folkloristics, p, 1. ३७. लोक-साहित्य (Folk-literature) लोक-कहानी (Folk-tale) लोक-गीत (Folk-song) लोकवार्ता (Folk-lore) आदि । ३८. लोक-पाहित्य विज्ञान, पृ. ३ । ३६. लोक-साहित्य की भूमिका-पृ. २८।। ४०. भारत की सच्ची शक्ति गांवों में रहने वाले हिन्दुस्तान के करोड़ों गरीब और उनकी लाखों बरस की मंजी हुई संस्कृति के अन्दर है ।" लोक-जीवन, पृ. ५ । ४१. अष्टछाप कृष्णकाव्य में लोकतत्त्व, पृ. २५ । ४२. सूर साहित्य में लोक-संस्कृति, पृ. ५७ । ४३. वही, पृ. ५७। ४४. लोक-साहित्य का अध्ययन, पृ. १०४ । ४५. मानसेतर तुलसी-साहित्य में लोक-तत्व की विवेचना, पृ.८ । ४६. "जनपदों ने नगरों को अपने जीवन का नवनीत प्रदान करके उन्हें पुष्ट किया है । अतः उनकी उपेक्षा करना भारतीय जनता के उस विराट् जन-समूह का निरादर करना है जिसने अपना रक्त-दान करके अपने नगरों को जीवन प्रदान किया है तथा अपने परिश्रम के बल पर नगरों की काया-पलट दी है, उन्हें भव्य बनाया -सूर-सागर में लोक-जीवन, पृ. ११ । ४७. पृथ्वीपुत्र, पृ. ३८ । ४८. जनपद, वर्ष १, अंक १, "लोक साहित्य का अध्ययन", पृ. ६५ । ४६. लोक साहित्य, विद्या चौहान, पृ. ११-१२ । खण्ड १७, अंक ३ (अक्टूबर-दिसम्बर, ६१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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