________________
सामान्यतया द्रव्य छः प्रकार के माने गये हैं— जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्मं, आकाश और काल । सम्पूर्ण लोक इन छहों द्रव्यों का एक समूह समझा जाता है। छह द्रव्यों के अतिरिक्त सम्पूर्ण लोक में और कुछ नहीं है तथा सम्पूर्ण लोक में ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां ये छहों द्रव्य विद्यमान न हों । इन द्रव्यों में से जीवादि क्रमशः पांचों द्रव्य बहुप्रदेशी अथवा अलग-अलग काय वाले हैं इसीलिये इन्हें अस्तिकाय कहा जाता है । ( काय का गुण और गुण का पर्याय होता है | ) प्रसंगवश काय के सम्बन्ध में संक्षेप में यह कहना आवश्यक है कि जिसके स्कन्ध, देश और प्रदेश हों उसे काय कहते हैं । देश और प्रदेश के समूह को स्कन्ध कहते हैं । स्कन्ध के प्रत्येक विभागी अंश को देश कहते हैं, और देश के प्रत्येक अविभागी अंश को प्रदेश कहते हैं । उक्त पांचों काय वाले द्रव्यों की अपने अपने गुणों के अनुसार वर्तना होती है और उस वर्तना से प्रति समय उन उन गुणों के पर्यायों का उत्पाद - विनाश होता रहता है ।
छठे काल द्रव्य की कोई काय नहीं होती, उसमें केवल वर्तना गुण ही होता है ।
द्रव्यों के आश्रित रहने वाले गुणों में कोई अन्य गुण नहीं रहते ।' छहों द्रव्यों के गुण इस प्रकार हैं--- जीवास्तिकाय का गुण उपयोग, पुद्गलास्तिकाय का गुण संघात और भेद, धर्मास्तिकाय का गुण गति में सहायक होना, अधर्मास्तिकाय का गुण स्थिति में सहायक होना, आकाशास्तिकाय का गुण अवगाह देना तथा काल द्रव्य का गुण वर्तना
है |
इन गुणों के अनुसार ही प्रति समय भावों के उत्पाद-व्यय के परिणामस्वरूप पर्याय बनते हैं । जीव के योग और उपयोग नामक पर्याय अनादि हैं तथा रूपी द्रव्य पुद्गल के पर्याय' हैं । इस प्रकार - "गुण और पर्याय के आश्रय को द्रव्य कहते हैं" यह परिभाषा निर्दोष सिद्ध होती है । ये द्रव्य भी तत्त्व को समझने में अर्थ का कार्य करते हैं अतः निक्षेपों के अन्तर्गत द्रव्य- निक्षेप को कहा गया है ।
(४) भाव - निक्षेप - - छहों द्रव्यों के भिन्न-भिन्न गुणों के अनुसार भावों का उत्पाद व्यय होता रहता है । उन्हीं के विपाक रूप पर्याय होते हैं, जो दो प्रकार के होते
(१) अर्थ पर्याय
( २ ) व्यञ्जन पर्याय ।
पर्याय में अवक्तव्य भावों का जो अवग्रह होता है उसे ईहा, अवाय और धारणा के क्रम से जाना जा सकता है, जिससे वह वक्तव्य हो जाता हैं, किन्तु व्यंजन पर्याय द्वारा विषय के व्यंजन मात्र का बोध होता है, जो अवक्तव्य ही रहता है ।
इस प्रकार चारों निक्षेपों द्वारा तत्त्व के निक्षेप तत्त्वान्तरों का भी ज्ञान कराते हैं, अतः
अर्थ का ज्ञान होता है, किन्तु ये चारों सही तत्त्वार्थ क्या है - इसका निर्णय
१. " ब्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः " तत्त्वार्थसूत्र ५.४० २. " उपयोगो लक्षणम्" तत्वार्थ सूत्र २.८ ३- "रूपिणः पुद्गलाः” तस्वार्थसूत्र ५.५
१३६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
तुलसी प्रज्ञा
www.jainelibrary.org