Book Title: Tulsi Prajna 1991 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 55
________________ (२६) नालन्दा (२७) मिथिला (२८) मिथिला (२६) मिथिला (३०) पावा १२३१ १२३० १२२६ १२२८ १२२७ १२२६ कालिय पर्वत (१८) कालिय पर्वत (१६) राजगृह (२०) श्रावस्ती (२१) श्रावस्ती (२२) श्रावस्ती (२३) १२११ श्रावस्ती (३८) इस शृंखला में आठ वर्षावासों की कटौती हो जाएगी जो २१ से ३८ श्रावस्ती के वर्षावास में कम किए जा सकते हैं । (५) जहां तक 'राजगह' में दोनों युगपुरुषों के अनुसंगिक सह-वर्षावास का जिक्र है, दोनों में समानता है । अर्थात् केवल दो बार 'राजगृह' में दोनों ने वर्षावास बिताया। यथापरम्परागत संशोधित प्रथम वर्षावास १२५३ ई० पूर्व प्रथम वर्षावास १२४५ ई० पूर्व; द्वितीय वर्षावास १२४० ई० पूर्व; द्वितीय वर्षावास १२३२ ई० पूर्व । आश्चर्य का विषय है-यदि परम्परा को सामने रखें तब "राजगह' में व्यतीत वर्षावासों में १४ वर्षों का व्यवधान है और यही स्थिति संशोधित वर्षावासीय इतिहास की भी है । सत्य उभयत्र सुरक्षित है । (६) राजगृह में सम्पन्न महावीर स्वामी के वर्षावास में अथवा राजगृह में हुए महात्मा बुद्ध के वर्षावास में जहां तक अजातशत्रु की भूमिका का प्रश्न है; वह सर्वथा विश्वसनीय नहीं है। कारण, अजातशत्रु का अभिषेक १२२० ई० पूर्व में हुआ था। महावीर स्वामी के १२५३ अथवा १२४० ई० पूर्व में [संशोधित १२४५/१२३२ ई० पूर्व] सह-वर्षावास में सम्राट् अजातशत्रु की उपस्थिति अविचारणीय है । अलबत्ता राजकुमार अजातशत्रु की चर्चा संभव है । बिम्बसार ने अनुमानत: ६० वर्ष राज्य किया था : १३१० ईसवी पूर्व में १२२० ईसवी पूर्व तक। यदि अजातशत्रु का जन्म १२७० ई० पूर्व [अनुमानत:] मान लें तो संशोधित वर्षावासीय इतिहास में राजकुमार अजातशत्रु की भूमिका स्वीकार्य हो सकती है। परन्तु परम्परागत वर्षावासीय इतिहास में केवल एक बार [१२४० ई० पूर्व] अजातशत्रु उपस्थित रहा होगा? उपसंहार डॉ० परमेश्वर सोलंकी ने जिस संक्षिप्त शैली से महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध के वर्षावास क्रम को रेखांकित किया है, वह आप्त सूत्रों पर आधृत है, पर हम उनके इस निष्कर्ष से सहमत नहीं है । महात्मा बुद्ध की २७ वर्षीय वरिष्ठता न तो पुराण शास्त्रों से अनुप्राणित है, और न ही 'राजतरंगिणी' से अनुमोदित है । विद्वद्वर विजयेन्द्र खण्ड १७, अंक ३ (अक्टूबर-दिसम्बर ६१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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