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२३. बौद्ध संस्कृति का इतिहास-डॉ० भागचन्द्र जैन, आलोक प्रकाशन,नागपुर,
१९७२ २५. आवश्यक नियुक्ति, मलयगिरिकृत वृत्ति, बम्बई, १९२८-३२ २६. आचारांग चूणि, रतलाम, १९४१ २७. निशीथ चूणि, आगरा, १९५७-६० २८. सूत्रकृतांग, राजकोट, वि० सं० १९६३-६५ २६. पंचास्तिकाय, बम्बई, १६०४ ३०. अभिधम्मत्थ संगहो (बौद्ध मनोविज्ञान) डॉ० भगचन्द्र जैन, नागपुर, १९८५
पाद टिप्पणी १. विशेष देखिए-लेखक का ग्रन्थ "Jainism in Buddhist Literature", अध्याय
पहला, PP-३१. आलोक प्रकाशन, नागपुर, १९७२ २. मज्झिम निकाय, रोमन संस्करण, भाग-I, P-७७-अचेलको होति, मुत्ताचारो...."न इतो बहिद्धा । देखिए लेखक का उपयुक्त ग्रन्थ, pP-११६
११८. ३. भगवती सूत्र, Viii, ८.३०; ठाणांग, V-२.२४; व्यवहारसूत्र, १०.३, यहां आगम
और सूत्र समानार्थक प्रतीत होते हैं पर अन्तर यह है कि आगम का सम्बन्ध चौदह पूर्वो तथा बारह अंगों से है जबकि 'सूत्र' पूर्वो और अंगों पर आधारित
ग्रन्थों के लिए प्रयुक्त हुआ है। ४. दीघनिकाय, महापरिनिब्बाण सुत्त, Vol. ii. PP. 96-97 ५. विसुद्धिमग्ग, P.३२४, अभिधम्मत्थसंगहो, सप्तम अध्याय; बोधिचर्यावतार,
द्वितीय-तृतीय अध्याय ६. रत्नकरण्डश्रावकाचार, ३५ ७. ज्ञानार्णव, ४.१०; दीघनिकाय, सा० भाग १, पृ-५५ ८. दीघनिकाय, महालिसुत्त, १.६ ६. दीघनिकाय, सामञफल सुत्त, नालन्दा, भाग १, पृ० ५४ १०. स्थानांगसूत्र, अभयदेव टोका, पत्र ४४६; दीक्षा के कुछ और भी प्रकार यहां
दृष्टव्य हैं-(i) तोदयित्वा-कष्ट पूर्वक ग्रहीत प्रव्रज्या, (ii) प्लायित्वा-अन्यत्र ग्रहीत प्रवज्या, (iii) वाचयित्वा-वार्तालाप के माध्यम से ग्रहीत प्रव्रज्या (iv) अवपात प्रव्रज्या-गुरु सेवा से प्राप्त प्रव्रज्या, (v) आख्यात (उपदेश से
प्राप्त) प्रवज्या, (vi) संगार (प्रति जाबद्व होकर ग्रहीत) प्रव्रज्या । ११. स्थानांग, ३,४,२०१; निशीथ भाष्य, ११.३५०६-७; योगसार, ८.५२; बोध
पाडुड टीका, ४६; १२. महावग्ग, १.३१.८८,P-७५७६ १३. पंचास्तिकाय, तात्पर्यवृत्ति, १७३; निशीय भाष्य, 11,२५३७-३६. १४. भगवती सटीक, भाग I,५.४.१८८, पत्र २१६-२ १५. आचारांग गि, २-७२; सूत्र तांग, १.३.३; १.१४.१३; भगवती, ८.२९८; १३०
तुलसी प्रक्षा
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