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१५. आसादना दोष १६. गुरु-शिष्य विनय
२०. शबल
२१. निर्ग्रन्थ तथा सवस्त्र । वस्त्र हों तो जंगिय, भंगिय, साणिय, पोत्तग, खोय, तूलक । बहुमूल्य वस्त्र निषेध
२२. मांसग्रहण पूर्णत- वर्जित २३. इर्यापथगामी ( इसका क्षेत्र
अपेक्षाकृत विस्तृत है ) 1
२४. विभजवादी
२५. एक पात्र, और वह भी अलाबू, या मिट्टी का
२६. उपकरणों से वस्त्र, पात्र, कंबल
२४. आभूषण, साजसज्जा वर्जित है । २५. परक्रिया निषेध
२६. संखडिभोजन निषिद्ध
मिट्टी व लोहे का पात्र विहित है, काष्ठादि का नहीं ।
पादपुच्छन, अवग्रह, तथा कटासन विहित हैं ।
उपकरणों में कैंची, वस्त्र, खण्ड, सुई, नाली, नलिका, गोंद, जलगालन, मसहरी, उदकपात्र आदि विहित है ।
२७. आहार-विहार में प्रतिबंध अधिक है प्रतिबद्ध है, पर उस सीमा तक नहीं । २३. स्नान वर्जित है
स्नान की मात्रा अधिक न हो । चूर्णादि का उपयोग न हो ।
वर्जित है ।
परक्रिया निषेध
संखडिभोजन निषिद्ध
२७. औद्देशिक भोजन वर्जित
२८. उपसर्गों की तीव्रता तथा कठोर व्रतों का पालन
२६. उपानह तथा छते का उपयोग वर्जित है ।
३०. परिग्रह तथा आरम्भ वर्जित है ३१. शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए
कष्टसहन या तप आवश्यक है । ३२. आहार दोषों का सूक्ष्म विश्लेषण ३३. अधर्म क्रिया - स्थानों का सूक्ष्म विश्लेषण
सेखिय धम्म, ५७-७२ गुरु-शिष्य विनय
खण्डकारी, चिद्दकारी, सबलकारी, कम्मस्स
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कारी ( अंगुत्तर ii -६५) सवस्त्र | वस्त्र हों - कौशेय कोजव, शाप, भंग, कंबल, क्षौम । बहुमूल्य वस्त्र ग्रहण निषेध नहीं | तीन संद्माटी विहित है ।
ग्रहण त्रिकोट परिशुद्ध हो । ईर्यापथगामी ( स्थान, गमन, निषद्या और शयन में ] विभज्जवादी
३४. विद्या, मन्त्र-तंत्र का निषेध फिर भी उनका यदा-कदा अहिंसक प्रयोग प्रचलित है ।
खण्ड १७, अंक ३ (अक्टूबर-दिसम्बर, ६१ )
वर्जित नहीं ।
कठोर व्रत और तप आवश्यक नहीं । अतः उपसर्गों की तीव्रता भी कम है । वर्जित नहीं ।
सीमित है ।
आवश्यक नहीं । मध्यममार्ग अनुमत है ।
स्थूल विश्लेषण
अकस्मात् अनर्थदण्डादि को हिंसामय नहीं
माना गया ।
गर्हित प्रयोग हुआ । पंच मकारों का भी प्रयोग प्रारम्भ हो गया ।
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