Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 38
________________ २६ २२. उत्तराध्ययन, २५, २९-३१; १२.३७; कषायप्राभृत, १.८; प्रवचनसार, १.७. २३. उत्तराध्ययन, २५.१९-२७. २४. देखिए, लेखक की पुस्तक “मूकमाटी : चेतना के स्वर”, नागपुर, १९९६. २५. सन्मतिप्रकरण, १.१२; तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, १.६.४; प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ० ६७६; आप्तमीमांसा, २०८; तत्त्वार्थवार्तिक, १.६.४. २६. प्रवचनसार, १.७. २७. उवासगदसाओ, १.४३; आदिपुराण, ३९.१४७; उपासकाध्ययन, ३२०. २८. उत्तराध्ययन, २५.२९-३१. २९. उत्तराध्ययन, बारहवाँ अध्याय. ३०. उत्तराध्ययन, २२.२३. ३१. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ६२; दशवैकालिक, ४.१५. ३२. देखिये, लेखक की पुस्तक जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास, पृ० ३२३-४१. ३३. कल्पसूत्र, १३३.१४४; उत्तरपुराण, ७४.३७३-७८; तिलोयपण्णत्ति, ४.११६६-७६; हरिवंशपुराण, ६०.४३२-४०. ३४. Studies in South Indian Jainism, p. 110-11. ३५. महावंस, ३३.७९. - ३६. बृहत्कल्पभाष्य, भाग १, पृ०७३-७५; आवश्यकनिर्युक्ति, गाथा, ३३६-३७; Journal of the Royal Asiatic Society of Bangal, Jan. 1885. ३७. देखिए लेखक का आलेख - उपनिषदों पर जैनधर्म का प्रभाव, ऋषभदेव फाउण्डेशन, दिल्ली. ३८. देखिए, लेखक का ग्रन्थ- 'जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास', जैन पुरातत्त्व, पृ० ३४२-८१ और तीर्थङ्कर महावीर और उनका चिन्तन, धूलिया १९७७. ३९. आचारांग, शस्त्रपरीक्षा. ४०. रत्नकरण्डश्रावकाचार, ५७, तत्त्वार्थसूत्र, ७.१५; सागारधर्मामृत, ५१; रत्नकरण्ड श्रावकाचार ६७, चारित्रप्राभृत, २२. ४१. यः शस्त्रवृत्ति समरे रिपुः स्याद्यः कण्टको वा निजमण्डलस्य । तमैव अस्त्राणि नृपाः क्षिपन्ति, न दीनकानीन कदाशयेषु ।। यशस्तिलकचम्पू. ४२. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ५. १; सर्वार्थसिद्धि, ७.२२; भगवती आराधना, १९२२. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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