Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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विशिष्ट घटनाएँ
गोपालक का उपसर्ग
१. महाभिनिष्क्रमण कर साधक महावीर कूर्माग्राम पहुँचे और उसके बाहर जंगल में एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ होकर आत्मसाधना करने लगे । साधना में इतने लीन हो गये कि दृष्टिपथ में आयी वस्तु का भी संस्कार उनके चित्र को प्रभावित नहीं कर
सका।
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उसी समय एक घटना हुई। गाँव के किसी ग्वाले (गोपालक) ने अपने बैल चरने के लिए वहीं छोड़ दिये और स्वयं कहीं निकल गया । वापिस आने पर उसे बैल वहाँ नहीं दिखाई दिये। बैल तो चरते चरते कुछ दूर निकल गये थे। ग्वाले ने ध्यानस्थ महावीर से पूछा - "हमारे बैल कहाँ हैं?" उत्तर न पाकर वह स्वयं उन्हें खोजने चल पड़ा। दैवयोग से वे बैल प्रातःकाल वापिस आकर महावीर के पास ही बैठ गये । इतने में ग्वाला आया और वहाँ अपने बैल पाकर महावीर के प्रति क्रुद्ध हो गया। उन्हें चोर समझकर वह मारने दौड़ा। अकस्मात् कोई भद्र पुरुष सामने से आ रहा था। उसने उस ग्वाले को रोका और कहा— "इस निष्परिग्रही व्यक्ति को तुम्हारे बैलों से क्या प्रयोजन ? यह तो आत्मकल्याण के साथ जगत् का कल्याण करने के लिए साधना में लीन है । '
इस भद्र पुरुष का उल्लेख साहित्य में शक्रेन्द्र के रूप में किया गया है। उसने महावीर से कहा यदि आप चाहें तो मैं आपको अपनी सेवायें देने के लिए सहर्ष तैयार हूँ । महावीर ने उत्तर दिया- व्यक्ति दूसरों के बल पर केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं कर सकता। उसे अपने ही बल पर उसे प्राप्त करना पड़ता है
नापेक्षं चक्रिरेऽर्हन्तः परसाहायिकं क्वचित् ।
केवल केवलज्ञानं प्राप्नुवन्ति स्ववीर्यतः । । स्ववीर्येणैव गच्छन्ति जिनेन्द्राः परमं पदम् ।
यह उत्तर सुनकर वह मनुष्यरूपी इन्द्र बड़ा प्रभावित हुआ। महावीर के न चाहते हुए भी त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के अनुसार उसने अपने सिद्धार्थ नामक एक सहायक को उनके संरक्षण के लिए नियुक्त कर दिया। इस सिद्धार्थ को वहाँ एक व्यन्तर देव कहा है । १०
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आचाराङ्ग और कल्पसूत्र में इसके बाद की गई उनकी तपस्या का विस्तृत वर्णन मिलता है। महावीर अचेलक अवस्था में थे इसलिए उन्हें शीत, उष्ण, दंशमशक आदि की बाधायें होना स्वाभाविक थीं । भोगवासना से पीड़ित महिलाओं का भी उनकी ओर आकर्षित होना सहज ही था । निर्मोही महावीर इन सभी प्रकार की बाधाओं को निद्वेष
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