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तक महावीर देवानन्दा के गर्भ में रहे बाद में त्रिशला के गर्भ में पहुँच गये। महावीर ने मरीचि भव में नीच गोत्र कर्म का बन्ध किया था। इसीलिए उन्हें ब्राह्मणी के गर्भ में कुछ समय तक रहना पड़ा। इस घटना का उल्लेख ठाणांग (सूत्र ७७०), समवायांग (सूत्र ८३), आचारांग (२.१५), भगवतीसूत्र (शतक ५, उद्देश ४), आदि श्वेताम्बरीय आगम साहित्य में उपलब्ध होता है। मथुरा में प्राप्त एक प्लेट क्रमांक १८ पर भी डॉ० बुहलर ने भगवानेमेसो पढ़ा है जो भगवान् महावीर के गर्भ परिवर्तन का सूचक है। २ यह चित्रण आगम परम्पराश्रित रहा है। परन्तु दिगम्बर परम्परा इस प्रकार के गर्भापहरण की बात स्वीकार नहीं करती। पं० सुखलाल जी, पं० बेचरदास जी दोसी और पं० दलसुख मालवणिया आदि श्वेताम्बर विद्वान् भी प्रस्तुत घटना पर विश्वास नहीं करते।३
पावन धरा पर : ई०पू० ५९९ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के समय नन्द्यावर्त राजप्रासाद में रात्रि के अन्तिम प्रहर में त्रिशला ने पुत्र को जन्म दिया। पुत्र-जन्म के पूर्व त्रिशलादेवी को चौदह (श्वेताम्बर परम्परानुसार) स्वप्न, सोलह (दिगम्बर परम्परानुसार) दिखाई दिये थे जिनका जैन साहित्य में विविध प्रकार से विश्लेषण किया गया है। ये स्वप्न पुत्र के प्रभावक व्यक्तित्व के दिग्दर्शन माने जाते हैं। माता-पिता और परिजनों ने बालक का नाम वर्द्धमान रखा। इस नामकरण के पुनीत अवसर पर राज्य-स्तर पर विभिन्न उत्सव हुए। वैशाली का प्रत्येक घर दीपक की चमकती हुई ज्योति से जगमगा उठा, मानो अज्ञानान्धकार को दूर हटाने के लिए तेजस्वी सूर्य का उदय हुआ हो। जैनशास्त्रों में इन शुभ अवसरों का नामकरण गर्भ कल्याणक एवं जन्म कल्याणक के रूप में हुआ है।
बाल्यावस्था : बालक वर्द्धमान का लालन-पालन राजशाही ठाठ-बाट से हुआ। पञ्चधात्रियों की देखरेख में उसका शारीरिक और मानसिक विकास अहर्निश वृद्धिगत होने लगा। उसकी बालक्रीड़ायें भी हृदयहारी और सौम्य थीं। वह निर्भय और साहसी था। ___ एक बार बालक वर्द्धमान अपने समवयस्क मित्रों के साथ संकुली (आमली) खेल-खेल रहा था। मित्रों में काकधर, चलधर और पक्षधर नामक राजकुमारों का उल्लेख आता है। इस खेल में जो बालक सर्वप्रथम वृक्ष पर चढ़ जाता है और नीचे उतर आता, वह पराजित बालकों के कन्धों पर बैठकर उस स्थान तक जाता है जहाँ से दौड़ प्रारम्भ होती है। उस समय बालक वर्द्धमान खेल खेल रहा था कि अचानक एक विकराल भीमकाय सर्प वृक्ष पर आ गया। सभी बालक तो भयभीत होकर भाग खड़े हुए पर वर्धमान ने उसकी पूँछ पकड़कर उसे बहुत दूर फेंक दिया। इसे 'आमलय खेड' कहा गया है। यह घटना राजा के कानों तक पहुंची। बालक की निर्भयता और वीरता का यह एक विशिष्ट प्रमाण था इसलिये राजा ने वर्धमान का अपर नाम 'महावीर' रख दिया। महावीर के अतिरिक्त वर्द्धमान के सन्मति, वीर और अतिवीर नाम भी मिलते हैं। इन नामों के पीछे
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