Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 39
________________ ३ महावीर और उनकी परम्परा पर्युषण पर्व आष्टाह्निक पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इसे अठाई महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है— अट्ठाहिता रूवाओ महामहिमाओ करेमाणा (जीवाभिगमसूत्र, नन्दीश्वर द्वीप वर्णन ) । इन्हीं दिनों कल्पसूत्र का सामूहिक वाचन किया जाता है। इसके स्थान पर कहीं-कहीं अन्तगडसूत्र का उपयोग किया जाता है। कल्पसूत्र छेदसूत्रों में दशाश्रुतस्कन्ध का आठवाँ उद्देश है। इसे पर्युषण कल्प कहा जाता है। पर्युषणपर्व में इसी का सामूहिक वाचन होता है । कहीं-कहीं इसके स्थान पर अन्तगड सूत्र का भी उपयोग किया जाता है। कल्पसूत्र की रचना परम्परानुसार आचार्य भद्रबाहु द्वारा की गई है। पहले इसका वाचन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के बाद श्रमण संघ में ही होता था पर उत्तरकाल में इसे चतुर्विध संघ के बीच पढ़ा जाने लगा। इसका प्रारम्भ आचार्य कालक ने राजा ध्रुवसेन के कल्याणार्थ किया था। कल्पसूत्र प्राकृत भाषा में लिखित गद्यात्मक ग्रन्थ है जिसमें १२१५ अनुष्टुप प्रमाण सूत्रों में तीर्थङ्कर महावीर तथा उनकी पूर्व और उत्तरवर्ती परम्परा का आलेखन हुआ है। इसके मूल २९१ सूत्रों का वाचन संवत्सरी के दिन होता है और इसके पहले पर्युषण के दिनों में उसकी विस्तृत व्याख्या की जाती है। इसमें तीन अधिकार हैं- तीर्थङ्कर चरित्र, स्थविरावली और साधु समाचारी | तीर्थङ्कर चरित्र के कुल २३२ सूत्रों में से १५२ सूत्रों में भगवान् महावीर का चरित, ८० सूत्रों में शेष २३ तीर्थङ्करों के चरित्र का वर्णन किया गया है और बाद में स्थविरावली तथा समाचारी को प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि पीछे हम एक विशेष उद्देश्य से तीर्थंकर महावीर के सन्दर्भ में संक्षिप्त विवरण लिख चुके हैं पर यहाँ कुछ विस्तार से उसे कल्पसूत्र के आधार पर दे रहे हैं। साथ ही आचाराङ्ग, महावीरचरित, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि ग्रन्थों का भी यथास्थान उपयोग करते हुए उपलब्ध सामग्री को तुलनात्मक रीति से पुष्ट करने का प्रयत्न कर रहे हैं। इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि कल्पसूत्र में विलोम पद्धति का उपयोग कर सर्वप्रथम महावीर का और अन्त में ऋषभदेव का व्याख्यान किया गया है चमत्कारात्मक ढंग से। इस पद्धति का उपयोग कदाचित् इसलिए हुआ है कि चौबीसों तीर्थङ्करों में निकटतम तीर्थङ्कर महावीर रहे हैं। इसलिए प्रथमतः उन्हीं का स्मरण किया गया है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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