Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 37
________________ २५ ३. पउमचरियं, १.१-७. यहाँ तीर्थङ्करों की आयु, ऊँचाई आदि की प्रतीक पद्धति को समझना होगा। ४. देखिए, मध्यदेश- धीरेन्द्र वर्मा, पटना, १९६७; An Encyclopaedia of Indian Archaeology, 2 Volumes, edited by A. Ghosh, Delhi, 1989; Indian Archaeology 1962-63 - A Review, edited by A. Ghosh, Delhi, 1965; Ayodhya – Archaeology after Demolition by D. Mandal, Orient Longman, Hyderabad, 1993. ५. वर्द्धमानचरित्र, १७.५८; सूत्रकृतांग २.३; कल्पसूत्र ११. ६. आचारांगचूर्णि, भाग १, पत्र २४६, वर्धमानचरित्र, ७.९५. ७. जयधवला, भाग १, पृ० ७८, तिलोयपण्णत्ति, ४.६६७; उत्तरपुराण, ७४.३०३-४. ८. आवश्यकचूर्णि, पृ० २७५ - ९२; आचारांग, ९.१.९-२०; ९.३-४-५ः त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, १०.३.२९-३३; कल्पसूत्र, ११६, आवश्यकचूर्णि, भाग १, पृ० ३२०-२२. ९. जयधवला, भाग १, पृ० ८०; तिलोयपण्णत्ति, ४. १७० - १; कल्पसूत्र, १४७: लेखक का ग्रन्थ देखिए Jainism in Buddhist Literature, नागपुर, १९७२ प्रथम अध्याय. १०. षट्खण्डागम, भाग ९, पृ० १२९; विशेषावश्यकभाष्य, १५४०-१९४७ ११. उत्तरपुराण, ७४.३७३-७४. १२. आवश्यकचूर्णि, उत्तर भाग, पृ० १६९; उवासगदसाओ, पृ० २५; त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, १०.६.४०८-३९. - १३. उत्तरपुराण, कल्पसूत्र १२६, १४७; दीघनिकाय. १४. दीघनिकाय, सामञ्ञफलसुत्त, भाग १, पृ० ५७. १५. उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन २३, नेमिचन्द्रटीका, पत्र २९७.१; मज्झिमनिकाय (रोमन), भाग १, पृ० २३८; भाग २, पृ० ७७. १६. दशवैकालिकसूत्र, १.१. १७. पंचास्तिकाय, ९२८ - ९३० सूत्रकृतांग, २.५.१६. १८. आप्तमीमांसा, ५९; उपासकाध्ययन, २४६-४९. १९. तत्त्वार्थसूत्र, ९.९; तत्त्वार्थवार्तिक, ९.९-५१; सूत्रकृतांग, १.१२.११. २०. उवासगदसाओ, १-४७; रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ३.६; चारित्रप्राभृत, १३. २१. समयसार, आत्मख्याति; मोक्खपाहुड, ५.६; परमात्मप्रकाश, १.१३-१७. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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