Book Title: Therigatha Author(s): Jagdish Kashyap Publisher: Uttam Bhikkhu View full book textPage 8
________________ थेरीगाथा १ धीरा धीरा धीरेहि धम्मेहि भिक्खनी भावितिन्द्रिया । धारेहि अन्तिमं देहं जेत्वा मारं सवाहनं ॥७॥ . साहन ॥७॥ अञ्जतरा धीरा सद्धाय पब्बजित्वान मित्ते मित्तरता भव भावेहि कुसले धम्मे योगक्खेमस्स पत्तिया ॥८॥ मित्ता सद्धाय पब्बजित्वान भद्रे भद्ररता भव भावेहि कुसले धम्मे योगक्खेमं अनुत्तरं ॥९॥ भद्रा उपसमे तरे ओघ मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं । धारेहि अन्तिमं देहं जेत्वा मारं सवाहनं ॥१०॥ उपसमा सुमुत्ता साधु मुत्तम्हि तीहि खुज्जेहि मुत्तिया । उदुक्खलेन मुसलेन पतिना खुज्जकेन च । मुत्तम्हि जातिमरणा भवनेत्ति समूहता ॥११॥ मुत्ता छन्दजाता अवसाये मनसा च फुटा सिया । कामेसु अप्पटिबद्धचित्ता उद्धंसोता ति वुच्चति ॥१२॥ धम्मदिना करोथ बुद्धसासनं यं कत्वा नानुतप्पति । खिप्पं पादानि धोवित्वा एकमन्ते निसीदथ ॥१३॥ विसाखा धातुयो दुक्खतो दिस्वा मा जाति पुनरागमि । भवे छन्दं विराजत्वा उपसन्ता चरिस्ससि ॥१४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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