Book Title: Tantra Adhikar Author(s): Prarthanasagar Publisher: Prarthanasagar Foundation View full book textPage 8
________________ तन्त्र अधिकार मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर स्ववीर्य को पंचमैल कहते हैं। 12. मूल- किसी भी पौधे व वृक्ष की जड़ को मूल कहते हैं। 13. बन्दा- किसी भी वृक्ष पर कोई दूसरा पौधा उग आए, उसे बन्दा कहते हैं उदाहरणार्थ, जैसे एक वट वृक्ष है, उस पर धूल के साथ कोई बीज गिर गया हो, वह उग आए, उसे बन्दा कहते हैं। त्राटक के मुख्य तीन भेद है: 1. आन्तर त्राटक, 2. मध्य त्राटक, 3. बाह्य त्राटक। आन्तर त्राटक- नेत्र बन्द कर भ्रूमध्य, नासिका का अग्रभाग, नाभि तथा हृदय आदि स्थानों पर चक्षु वृत्ति की भावना करके देखते रहना आन्तर त्राटक हैं। मध्य त्राटक- धातु अथवा पत्थर निर्मित वस्तु, काली स्याही के धब्बे आदि पर खुले नेत्रों से टकटकी लगाकर देखते रहना मध्य त्राटक है। बाह्य त्राटक- दीपक, चन्द्र, नक्षत्र व प्रातः उदित होते हुए सूर्य तथा अन्य दूरवर्ती दृश्यों पर दृष्टि स्थिर करने की किया को बाह्य त्राटक कहते हैं। वशीकरण तंत्र- मंत्र प्रयोग से पहले त्राटक को सिद्ध कर लेना जरूरी है। इसको सिद्ध करने के बाद ही व य आदि का प्रयोग करने चाहिए। मध्यम विधि से ही त्राटक करना चाहिए। उसके लिए सामान्य तथा निम्नांकित बातों का ध्यान रखना आव यक हैत्राटक के अभ्यास से नेत्र और मतिष्क में गर्मी बढ़ती है, अतः इस क्रिया के करने वालों के लिए त्रिफला व गुलाब जल से आखों को धो लेना आवश्यक है। फिर धीरे-धीरे दृष्टि को दाएं-बाएं, ऊपर नीचे घुमा लें ताकि तनाव निकल जाए। उच्चाटन विधि- सर्वप्रथम घण्टाकर्ण मूलमंत्र का जाप्य करें। उस समय पश्चिम दिशा की ओर मुँह करें, पीले वस्त्र पहनें पीले रंग की माला लें और 42 दिन में 44000 जाप्य करें। नित्य जाप लगभग 1000 करें। प्रातः काल 250,दोपहर 250, सायं काल 250, व अर्धरात्रि में 250 इस प्रकार विभाग कर लेवें। और जितने दिन जाप्य करना है उतने दिन नियम व कम से करें। तथा प्रत्येक दिन अष्ट द्रव्य से पूजा करें और जाप हो जाने के बाद हवन करें। हवन सामग्री- सरसों, बहेड़ा कड़वा तेल (सरसों का तेल) को मिलाकर देवदत्त (जिसका उच्चाटन करना हो, ) उस का नाम लेते जावें और हवन में सामग्री डालते जावें। ऐसा करने से देवदत्त को विघ्न व निग्रह होते हैं। इस प्रकार देवदत्त का उच्चाटन होता है। 430Page Navigation
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