Book Title: Tantra Adhikar Author(s): Prarthanasagar Publisher: Prarthanasagar Foundation View full book textPage 7
________________ तन्त्र अधिकार मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर वशीकरण- किसी को दास के समान वश में करना, उससे मनचाहा काम लेना या साधक जो चाहे वह वैसा ही करे, उसे वशीकरण कहते हैं। नोट-शान्ति, पौष्टिक, स्तंभन, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, वृंभण, विद्वेषण, मारण आदि तंत्र की परिभाषा देखें पेज न. ( 33 ) पर । तांत्रिक प्रयोगों में कई जगह छाल, फल, पत्ते, बन्दा, फूल, मूल, पंचमैल, पञ्चांग आदि काम में लाए जाते हैं। जहां तांत्रिक प्रयोग किए जाते हैं, वहां औषधि को नियत समय पर विधि-पूर्वक लाया जाना चाहिए। वही औषधि शक्ति-सम्पन्न होती है। कल्प व औषधियों को बाजीकरण प्रयोग भी तंत्र शास्त्र का ही अंग है। एतदर्थ वे दोनों ही इस विभाग में दिए हैं। जो सामान्यतया ध्यान देने योग्य बातें हैं, वे नीचे दी जा रही हैं:१. जिस दिन औषधि लानी हो उससे पहले दिन शुद्ध, पवित्र होकर निमंत्रण दे आए। २. निमंत्रण वाले दिन व औषधि लाने वाले दिन एक समय भोजन करें, ब्रह्मचर्य से रहें, अभक्ष्य पदार्थ न खाएं। जो समय नियत हो, उसी में औषधि लानी चाहिए। ४. कुएँ, बिल, देवमन्दिर, श्मशान व मार्ग में पड़ने वाले वृक्ष के नीचे उगने वाली व सड़ी-गली औषधि नहीं लेनी चाहिए। एकान्त स्थान, बगीचे व अच्छे वन में उगी हुई औषधि प्रयोग में लेनी चाहिए। मूल यानी जड़ लेते समय काष्ठ-शस्त्र ही काम में लेना चाहिए(धातु के औजार नहीं) । ७. अपने समय और वर्षा में वृक्ष बलवान रहा करते हैं। जड़ सूख जाने पर आधा बल रहता है। ग्रीष्म, वर्षा व शरद ऋतु में सम्पूर्णता रहा करती है. वृक्षों के जब फल व बीज आते हैं, तभी उन्हें प्रयोग में लेना चाहिए। वन के वृक्ष रात में व जल के वृक्ष दिन में बली होते हैं। ८. औषधियों के नाम भिन्न-भिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न रूपों में बोले जाते हैं अतः निघंटु-ग्रन्थों या आयुर्वेदज्ञों से उन्हें जान लेना चाहिए। (कुछ पर्यायवाची नाम इसी ग्रन्थ में पृष्ठ 521 पर देखें)। __ तंत्र में जिन औषधियों का प्रयोग किया जाता है, उन औषधियों के भिन्न-भिन्न शक्ति अधिष्ठाता देव हैं। इसलिए अधिष्ठाता देव को सर्वप्रथम नमस्कार कर लेना चाहिए। हर प्रयोग के लिए विश्वास व श्रद्धा रखना आवश्यक है। चंचलता व अविश्वास से प्रयोग निष्फल होता है। 10. पंचांग- फल, फूल, जड़, पत्ते व छाल को पंचांग कहते हैं। 11. पंच मैल- कान का मैल, दांत का मैल, आँख का मैल, जिव्हा का मैल व 3 429Page Navigation
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