Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ पहुँचने में भी अनेक अवरोध पाते हैं और हम सरलतासे मनकी गहराई तक नहीं पहुँच सकते । सच बात तो यह है कि हम अचेतन मनमें छुपी हुई बातों को जानना ही नहीं चाहते, क्योंकि हमें या तो यह डर लगता है कि उनके जाननेसे हमारे दिनरातके काममें विक्षेप पड़ेगा या हमारे अचेतनमनमें छुपे हुए विचार एवं अनुभव हमें अप्रिय हैं। मनके इस अचेतन भाग का निर्माण हमारे बचपनके विचारों एवं अनुभव द्वारा होता है। जिसका विस्तार बढ़जाने पर भी सदा जागृत एवं सक्रिय बने रहते हैं और हमारे व्यक्तित्वकी रचना में आवश्यक योग दान देते हैं। । उदाहरणके रूप में यदि कोई हमारा मित्र जीवन में असाधारण सफलता पा ले, और हम खुद पीछे रह जायँ तो उसकी सफलता की सराहना करने की अपेक्षा, हम उसके दोषोंको बढ़ा चढ़ाकर उसकी समालोचना एवं निन्दा करने लग पड़ते हैं। आत्मनिरीक्षणसे प्रतीत होगा कि हमारा यह व्यवहार हमारे बचपनके आचरणका पुनरावर्तन ही है। मित्रकी सफलताकी ईर्षा मनमें होते हुए भी हम उन्हें प्रगटरूप से बताना नहीं चाहते इसलिए यह असूया अचेतन रूपसे अन्तःकरण में छुपी हुई है। जिसके कारण मित्रकी प्रशंसा करने के बदले हम उसे डीगें हांकने वाला कहकर उसकी बुराई करने लग जाते हैं। और जागृत अवस्था के बाद सुषुप्तिमें हम उन ही मानसिक बुराइयों को दुहराने लग जाते हैं और वही सपना समझा जाता है । सारांश यह है कि हम सबके भीतरकी गहराई में बचपनसे ईर्षा, प्रेम घृणा, क्रोध, आदि वृत्तियोंका जीवनमें नियंत्रण करने के लिए हमें अचेतन मनको पहचानने की आवश्यकता है। अचेतन मनके चिन्ह-उपरोक्त विश्लेष एक मनोवैज्ञानिक सत्य है, इसको समझने के लिए एक और उदाहरण दिया जा

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100