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(३) हाथोके पालान (बोझ) को उठानेवाला घोडा-पंचम काल के साधु तप के सारे गुणों को धारण न कर सकेंगे । मूल गुण
और उत्तरगुण में मालसी रहेंगे। कोई मूल गुणको भंग कर देंगे।
(४) सूखे पत्ते खाने वाल बकरे-आदमी सदाचारको छोड़कर दुराचारी हो जायेंगे।
(५) हाथी पर चढ़े बंदर-क्षत्रियवंश नष्ट हो जायेंगे । नीच कुलवाले पृथ्वीका पालन करेंगे।
(६) कव्वों द्वारा उल्लूको त्रास-मनुष्य धर्मकी इच्छासे मुनिओंको छोड़कर अन्यमतके साधुअोंके समीप जायंगे। .
(७) नाचते हुए भूत-प्रजाके लोग नामकर्म आदि के कारणों से व्यन्तरोंको देव मानकर उनकी उपासना करेंगे। ... (८) बीचसे सूखा हुमा तालाब-चारों ओर से पानी भरा
और बीच में सूखे तालोबके देखनेका फल-धर्म आर्यखण्ड से हटकर प्रत्यन्तवासी म्लेच्छखंडोंमें चला जायगा।
(E) धूलमट्टोसे सने हुए रत्नोंकी ढेरी-पंचम कालमें ऋद्धिधारी उत्तम मुनि न होंगे।
(१०) कुत्तोंको नैवेद्य खाते देखना-व्रतरहित ब्राह्मण, गुणीपात्रोंके समान सत्कार-सन्मान पायँगे।
(११) डकराते हुए जवान बैलका विहार-लोग तरुण अवस्था में ही मुनिपदमें ठहरेंगे, अन्य अवस्थामें नहीं।
(१२) परिमण्डलमें घिरा हुमा चन्द्रमा-पंचमकाल में मुनियों को अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान न होगा।
(१३) प्रापसमें मिलकर जाते हुए दो बैल-पंचमकालमें मुनिजन साथ-साथ रहेंगे । अकेले विहार करनेवाले न होंगे।