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समो ऽत्थुणे समणस्स भगवओ णायपुसमहावीरस्स
(११ अगसूत्र 22 उपागसूज मूकसुज घदसुज आवश्यक
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पप्फभित्रचू
स्वप्नसार समुच्चय
संस्कृत-हिन्दी और अंग्रेजीमें अनुवादित प्रकाशक-श्रीसूत्रागमप्रकाशकसमिति, (रजिस्टर्ड) गुडगाँव केण्ट E.P.
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णमोऽत्थु णं समणस्स भगवनो णायपुत्तमहावीरस्स स्वप्नसार समुच्चय ..
हिन्दी-अंग्रेजी
अनुवादक मास्टर-दुर्गाप्रसाद जैन बी.ए.बी.टी. अवकाश प्राप्त(पाटोदीवाले)
प्रकाशक श्रीसूत्रागमप्रकाशकसमिति, जैनस्थानक, रेल्वे रोड,
गुडगाँव-केंट (E. P.)
अर्थसहायक श्रीसरस्वती देवी-धर्मपत्नी श्रीमुनीलाल जज, पिस्तोदेवी- सीदीपुरा, लाला छन्नुमल जैन पहाड़ी धीरज,
श्रीमहावीर संवत् । विक्रमाब्द पहला संस्करण क्राइष्ट सन् २४८७
२०१६ - १००० । १९५६ - मूल्य २१)
. सर्वाधिकार समिति द्वारा सुरक्षित ।
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प्रकाशकीय श्रीसूत्रागमप्रकाशकसमितिने अपने स्वावलम्बीय भगीरथ प्रयत्न द्वारा अबतक पवित्र सर्वज्ञवाणीसे समृद्ध बत्तीस आगमों को (मूल पाठ ७२००० गाथाओंको २६०० पेज में) 'सुत्तागमे' के रूप में दो भागों में प्रकाशित किया है और इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय प्रदेशोंमें अमूल्य पहुँचाकर इसका पुष्कल प्रचार किया है। वहांके उद्भट विद्वानोंने इसका चाव और भावसे स्वाध्याय करके तात्विक योग्यता वृद्धिका लाभ प्राप्त किया हैं। मि० डेनाल -H. H. इंगाल, डाक्टर-F. R. हाम, डा० नोरमन ब्राउन, प्रोफेसर युङ सो.उ.कावनाकुरा,डा० H. V. ग्लासनप्प, प्रोफेसर शिनको. उ. शै. की, डा० एलस्ड्रोफ, डा० गुस्टाव रोथ, प्रोफेसर ऐस. माटसुनामी, डा० हेज बेचर्ट, प्रोफेसर हा. जी.ई. मे. नाकामुरा, मि० जुङ, की. ची. ईमी. निशी, जैसे प्राकृत भाषा प्रवीण महाकोविदोंने इसकी मुक्तकण्ठसे खूब प्रशंसा की है। कइनोंने तो यहां तक कहा है कि 'सुत्तागमे' हमारे लिए तीसरी आंख के समान ज्ञान नेत्र सिद्ध हुअा है। किसीने यह दावेसे कहा है कि इस 'सुत्तागमे' को आभूषणकी तरह हम अलमारीमें बन्द न रक्खेंगे, बल्कि इसका स्वाध्याय करेंगे और इसके तत्वोंको समझ कर औरोंके अन्तस्तल तक पहुंचानेका सतत प्रयत्न करेंगे । उनके अभिप्रायोंने समाजका महागौरव बढ़ाया है।
इसके अतिरिक्त भरतपुर (राजस्थानके एक पुराने भंडार) से १०७ श्लोकोंवाला हमें सचित्र स्वप्नशास्त्र मिला । स्वप्न तो तीर्थंकरकी माताको भी पाते हैं, और गुजरातमें १४ स्वप्नोंके एक प्रभाती रागका स्तोत्र सुनने और पढ़नेकी परम्परा भी है,इसी
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उद्देश्यसे इस स्वप्नशास्त्रको स्वप्न के प्रेमियोंके लाभार्थ छपवाकर आपके करकमलोंमें अर्पण कर रहे हैं ।
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ग्रन्थ पुराना जँचता है, और चित्र भी । परन्तु इसके रचयिताने न कहीं अपना नाम दिया है, न मंगलाचरण किया है, न प्रशस्ति ही दी है । परन्तु १०७ चित्रों में मुनिका चित्र मुखवस्त्रिका सहित है, इससे जान पड़ता है कि इसका निर्माता कोई जैन महानुभाव है । श्लोकोंकी रचना में पुनरावृत्ति भी बहुत है, श्लोक गूढ और मार्मिक न होने के कारण यह भी जँचता है कि निर्माता साधारण योग्यता प्राप्त है । कुछ भी हो स्वप्नोंको गीर्वाणवाणी और चित्रोंमें चित्रित करके जनता जनार्दन पर उसने बड़ा उपकार किया है । यह स्वप्ननिर्देश साधारण पढ़े लिखे प्रादमियोंके लिए बड़े काम की चीज बन गई है । अगर हम नहीं भूलते हैं तो इस विषयका स्वतन्त्र पुस्तक हमारी समाज में यह पहली ही बार प्रगट हो रहा है ।
हम प्रत्येक श्लोकके साथ चित्र भी लगाने वाले थे । इसी श्रावश्यकताको पूरा करनेकेलिए हमने देहलीके कई ब्लाककारों से बातचीत की, तो उन्होंने कई हजार रुपएका खर्चा बताया । घोडे से पूँछ भारी समझकर हमने सचित्र प्रकाशन रोक दिया तथा मूल- हिन्दी और अंग्रेजी अनुवादसे अलंकृत करके इसे आपके हाथों सौंप रहे हैं । आशा है आप अपने वरद करयुगल में लेकर इसकी कदर करेंगे । यदि पठित समाजने इसे अपनाकर लाभ कमाया, साथ ही चित्रोंकी भी मांग आई तो हम अगले सस्करण में आपके सम्मुख चित्रावली सहित प्रस्तुत करने की चेष्टा करेगे ।
समिति के सब कार्यकर्ता, श्रीसुमित्त भिक्खू का अत्यन्त आभार मानते हैं । आपने वर्षोंके श्रुतज्ञानसागर मन्थन से यह प्रस्तावना
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साररत्न हमें प्रदान किया। यद्यपि मूलसे व्याज अधिक है, परन्तु छोटेसे बडके बीजसे महाबोधिवृक्ष बनता देखा गया है, इस उक्तिके अनुसार प्रस्तावना में अनेक पुराने इतिहासकी साख भरकर मूल ग्रन्थमें अमृत-संजीवनीका संचार किया है । मुनिश्री ने इसमें कई पुस्तकों और लेखकोंका सहयोग प्राप्त करके उनका आभार माना है। ___ अपने समितिके प्रमुख श्री दुर्गाप्रसाद जैन B. A. B. T. द्वारा हिन्दी-अंग्रेजी अनुवादसे स्वप्नसार समुच्चय को चार चाँद लग गए हैं । इसलिए हम आपके बडे उपकृत हैं। और पाशा करते हैं कि आगे भी अपनी नाना सेवाओं द्वारा समितिको शोभा बढायेंगे। _ 'समाजके प्रत्येक भाई बन्धुसे प्राशा रखते हैं, कि इस स्वप्नसार समुच्चय नामक पुस्तक रत्नको अपने गृहपुस्तकालयकेलिए मँगवाकर सपरिवार इसका स्वाध्याय करके अपनी योग्यता बढायेंगे।
मंत्री--
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प्रस्तावना देहधारी मात्र के जीवन की चार अवस्थाएँ हैं, जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय! योगीजनोंको तुरीय अवस्था की बड़ी झंखना रहती है, और उनकी जाग्रत अवस्था कुछ निराली ही है। इसके सम्बन्ध में श्री आचाराँग का मत है कि 'मुनि-ज्ञानी सदा जागता है, और प्रमुनि-अज्ञानी सदैव सोया पड़ा रहता है। इन्हीं भावों का अनुकरण श्रीगीता-उपनिषद्में भी किया है
या निशा सर्वभूताना, तस्यां जागति संयमी। यस्यां जापति भूतानि, सा निशा पश्यतो मुनेः ॥६६ ॥१०२ ॥ इसके बाद स्वप्नकी बात शेष रह जाती है। आगे के पृष्ठपटोंमें इसीकी चर्चा की गई है।
आदमीको सो जाने पर अधिकांश यथा समय सबको स्वप्न पाते हैं । पशुओंको भी आते हैं, परन्तु वे अपने स्वप्न को किसी अन्यके सामने बताने की शक्ति नहीं रखते। लोगोंकी किंवदन्ती है कि बिल्लीको चूहों के स्वप्न ही पाया करते हैं। अपने सपनों का हाल आदमी जानता है, औरोंको बताता भी है, पशु नहीं। ___ सपनोंके आनेका कारण हमारा अपना मन ही है जब इन्द्रियाँ सो जाती हैं और मन जागता है तब वह देहकी सुषुप्ति में सारे विश्व में दौड़-दौड़कर बे रोक टोक चक्कर काटा करता
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है। योगी प्रानन्दधन के शब्दों में वह मन आकाश पाताल करता है, वह साँप की भांति निरर्थक-क्रियाएँ करता है, परन्तु सार्थक नहीं होता। जैसे सांप दश प्रारिणोंको खाता है पर उसकी तृप्ति नहीं होती। मन वैसे ही सब जगह जाता है-घूमता है. पर कहीं से कुछ लाता नहीं। मन के चक्कर से मनकी तृप्ति भी नहीं होती। परन्तु जब कोई विशेष घटना मस्तक और मन में उलझन पैदा करती है तब वह स्वप्न कहलाता है। उसका फल होना न होना उसके प्रारब्धके हाथ पर निर्भर है । साथ ही सपनोंका फल लोगोंने अपनी बुद्धिके अनुसार भी निश्चित किया है। पुरानी ऐतिहासिक घटनाके अनुसार हमें यही ठीक जंचता भी है। ____एक बार मूलदेव राजकुमार अपने दुर्दिनोंके फेर में पड़कर संकट के समय किसी धर्मशाला के दालान में एक कापडीके साथ सो रहा था । सूर्य-उदय होते होते दोनों को एक दम समान स्वप्न पाया, कि मानो पूणिमा का चांद आकाशमें चक्कर काटता हुआ नीचे उतरा और मुहमें प्रवेश कर गया।
कापड़ीने सवेरे जागते ही एक खाकी बाबा से इसका फल पूछा, उसने कहा कि घी-खाण्डसे सना हुआ तुझे अभी एक सवा सेर अन्न का रोट मिलेगा, वह गेहूं के आटे का होगा, और वही हुआ। ... इधर मूलदेव ने पान-फूल-फल लेकर एक स्वप्नपाठकसे पूछा तो उसने कहा, सातवें दिन तुम्हें इस नगरका राज्य मिलेगा, और वैसा ही हुआ।
एक को रोटी मिली और दूसरे को राज्य ! दोनों का स्वप्न एक ही भांति का था और फल दोनों का अलग-अलग ! बताने
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वाले भी भिन्न-भिन्न मस्तक के आदमी थे । इससे यह सिद्ध होता है कि लोग जैसा निश्चित करके फल कायम करते हैं, उनकी धारणा के अनुसार फल भी वैसा ही हो सकता है । लोंगों से उन का अनुमान सही उतरा माना जाता है । यदि इसका कर्मसे संबंध है तो इसे अधिक महत्व देने की आवश्यकता नहीं रहती । कुछ भी हो' फल ठीक उतरता है और नहीं भी ।
पुराणकालीन लोगों का मत है कि स्वप्न स्वस्थ श्रवस्था और प्रस्वस्थ अवस्था में आते हैं ।
धातुओं की समानता रहते हुए दिखने वाले स्वप्न स्वस्थ अवस्था के माने जाते हैं, और धातुम्रोंकी विषमता न्यूनाधिकता रहते हुए जो स्वप्न आते हैं वे अस्वस्थ अवस्थाके स्वप्न होते हैं । स्वस्थ अवस्था के स्वप्न सही और दूसरे प्रकार के निरर्थक ! स्वप्नों के और भी दो प्रकार हैं, एक दोष (वायु-पित्त-कफ) से होने वाले, प्रोर दूसरे दैव ( अनुष्ठान ) से आने वाले । दोषों के प्रकोप से आने वाले स्वप्न झूठे और दैव से आने वाले स्वप्न सच्चे होते हैं । इनके अतिरिक्त इस विषयके विशेषज्ञोंने और भी कई कारण बताए हैं जिन्हें आगे कहेंगे, परन्तु इन चार कारणों में सबका समावेश हो जाता है ।
इतना तो निश्चित अनुभव हो चुका है कि स्वप्न के आनेका मूल कारण मन ही है । उस समय मन पर कैसी गुजरती है, उसकी स्थिति कैसे बनती और बिगड़ती है इस जटिल विषय को समझने के लिए पहले कुछ मन का अध्ययन किया जाना उचित है, क्योंकि स्वप्न मनोमुख्य है, और उसका धर्म अर्थावग्रह है । ब्यंजनावग्रही-धर्म की इंद्रियोंके पास उनका विषय आकर टकराने से वे अपनी तन्मात्राका अनुभव करती हैं, परन्तु मनका धर्म अर्थावग्रह है । अर्थावग्रही मन अपने विषय की तन्मात्रासे जा
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कर टकराता है और तन्मात्राको मजा लेता है । इन मात्राओं में फँसकर कभी अनेक मानसिक संघर्षों में वह जडीभूत भी हो जाता है, अतः इसे ठीक सोचा जाय कि इसका मुख्य हेतु क्या है । समुद्र मंथन चाहे हुआ या नहीं परन्तु चित्तमन्थन अवश्य होने योग्य वस्तु है ।
मनके जडीभूत होनेके चिन्ह
पाठशाला के एक विद्यार्थीको सब चक्री कहकर पुकारते हैं तब वह चिड़ता है और अप्रसन्न होता है । वह कुशाग्र बुद्धि होते हुये भी शुद्ध लेख लिखनेसे वंचित है । इसी कारण उसके अशुद्ध लेख पर उसे चक्री कहकर हँसते हैं, और वह चिगता है, साथ ही नैयायिक होनेपर भी उसमें कटुता आ जाती है । मनपर जडीभूत विचार पलास्टरकी तरह पुत जाते हैं, वे विचार जगते समय तो उसे व्याकुल रखते ही हैं पर सोते समय भी अपना विरूप दिखाते हैं और बस वह स्वप्न अवस्था है ।
यह घटना पाठशाला की है, परन्तु श्रामतौर पर समाज में भी यही बात पाई जाती है । धर्म श्रौर नीति की बातें करने वाले एक अपने मनका निरीक्षण तथा चिन्तन मनन करने वाले लोगों को सामान्य तौर पर समाज में एक दम अपनाया नहीं जाता और उन्हें कुछ रुग्ण मनसा समझा जाता है । इसका कारण यह है कि ऐसे लोग प्रायः अपने बारेमें गलत ख्याल बांधकर अपने में ही मगन रहते हैं; अपने आपको दूसरे लोगों से विरल एवं ऊँचा समझते हैं, और समाज में अपना संयोजन अच्छे प्रकार नहीं कर पाते ।
ऐसे मनुष्य भूल जाते हैं कि जिसे वे स्वज्ञान समझते हैं, वह असल में अपना ज्ञान नहीं होता, वास्तविक स्वसंवेदन'स्वज्ञान, मनुष्य के व्यक्तित्त्व की उन्नति करने वाला होता है
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परन्तु इन लोगोंका स्वज्ञान उनकी उन्नतिमें प्रन्तरायरूप होता है । अवास्तविक स्वज्ञानवाला आदमी कभी अपने से सन्तुष्ट नहीं होता, और वह समझता है कि समाज में उसके योग्य कोई स्थान नहीं है । ऐसे व्यक्ति के अन्तःकरण में विरोधी विचारोंका सदा संघर्ष चलता रहता है । वह बहुत कुछ करने की ठानता है, परन्तु अपने संकल्पों एवं विचारों पर जब अमल करनेका सवाल प्राता है, तब उसे पसीना छूटने लगता है, उसकी जीभ तुतलाने लगती है, और अपनी लाचारीके लिए वह कुछ न कुछ बहाना खोज निकालता है ।
वास्तविक और वास्तविक स्वज्ञान - वास्तविक और अवास्तविक स्वज्ञान की परीक्षा करना, ऊपरसे जितना सुगम दिखाई देता है उतना सुगम नहीं है । मनोविज्ञान की पुस्तकें पढ़ डालने से, स्वज्ञानका सम्पादन नहीं होता । इस ज्ञान के लिए अपनी निरीक्षण शक्ति का उपयोग करना चाहिए। अपने विचारों को जांचना ठीक है परन्तु सूक्ष्मवीक्षरण शक्ति का उपयोग करते हुए हमें याद रखना उचित है कि "हमारे सारे प्रत्यक्ष एवं चेतन व्यवहार का संचालन उन अप्रत्यक्ष एवं जड़ विचार शृङ्खलानों तथा अभिलाषानों द्वारा होता है, जो साधारतिया अजड़रूप में हमारे भीतर की गहराई में दबी रहती हैं; क्योंकि वे हमारे चेतन व्यवहार के आदर्शों के प्रतिकूल होती हैं ।
यहां यह भी जानना चाहिए कि विकृत जड़ मनको पहचानने का काम इस प्रयत्न में श्राने वाली रुकावट के कारण, मनको चेतन या अचेतन दो भागों में बांट सकते हैं । अवरोध की प्रतीति मनके विचारों का निरीक्षण करनेका प्रयत्न करते समय ही होती है । जिस प्रकार गहन समुद्र की गहराई में छुपी हुई प्रसंख्य वस्तुनों का पता लगाने के लिए गोताखोर की राह में अनेक रुकावटें आती हैं, उसी प्रकार अपने मनकी गंभीरता तक
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पहुँचने में भी अनेक अवरोध पाते हैं और हम सरलतासे मनकी गहराई तक नहीं पहुँच सकते । सच बात तो यह है कि हम अचेतन मनमें छुपी हुई बातों को जानना ही नहीं चाहते, क्योंकि हमें या तो यह डर लगता है कि उनके जाननेसे हमारे दिनरातके काममें विक्षेप पड़ेगा या हमारे अचेतनमनमें छुपे हुए विचार एवं अनुभव हमें अप्रिय हैं। मनके इस अचेतन भाग का निर्माण हमारे बचपनके विचारों एवं अनुभव द्वारा होता है। जिसका विस्तार बढ़जाने पर भी सदा जागृत एवं सक्रिय बने रहते हैं और हमारे व्यक्तित्वकी रचना में आवश्यक योग दान देते हैं। । उदाहरणके रूप में यदि कोई हमारा मित्र जीवन में असाधारण सफलता पा ले, और हम खुद पीछे रह जायँ तो उसकी सफलता की सराहना करने की अपेक्षा, हम उसके दोषोंको बढ़ा चढ़ाकर उसकी समालोचना एवं निन्दा करने लग पड़ते हैं। आत्मनिरीक्षणसे प्रतीत होगा कि हमारा यह व्यवहार हमारे बचपनके आचरणका पुनरावर्तन ही है। मित्रकी सफलताकी ईर्षा मनमें होते हुए भी हम उन्हें प्रगटरूप से बताना नहीं चाहते इसलिए यह असूया अचेतन रूपसे अन्तःकरण में छुपी हुई है। जिसके कारण मित्रकी प्रशंसा करने के बदले हम उसे डीगें हांकने वाला कहकर उसकी बुराई करने लग जाते हैं। और जागृत अवस्था के बाद सुषुप्तिमें हम उन ही मानसिक बुराइयों को दुहराने लग जाते हैं और वही सपना समझा जाता है । सारांश यह है कि हम सबके भीतरकी गहराई में बचपनसे ईर्षा, प्रेम घृणा, क्रोध, आदि वृत्तियोंका जीवनमें नियंत्रण करने के लिए हमें अचेतन मनको पहचानने की आवश्यकता है।
अचेतन मनके चिन्ह-उपरोक्त विश्लेष एक मनोवैज्ञानिक सत्य है, इसको समझने के लिए एक और उदाहरण दिया जा
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सकताह । एक सामाजिक कार्यकर्ता जो प्रत्यक्षरूप में सक्रिय जीवन बिताता है, किसी प्रसिद्ध सामाजिक संस्था का सभासद् बनाया जाता है। इस सस्था के सभ्य बनने में वह गर्व समझता है। यदि उसी संस्थाके सदस्यके रूपमें या प्रधानके तौर पर किसी दूसरे व्यक्तिकी, जिससे उसकी बिल्कुल न पटती हो, नियुक्ति हो जाय तो पहले सभ्यको यह बात भली न लगेगी। वह अपना त्यागपत्र देने के लिए तत्पर हो जायगा और बोलेगा कि यदि इस संस्था के प्रधान की हैसियतसे ऐसे निकम्मे आदमियों की नियुक्ति हो सकती है तो इस संस्थाका सभ्य बनने में कोई लाभ नहीं है । सामाजिक संस्थाके उच्च आदर्शों को, जिनके लिए वह सर्व साधारणमें काम कर रहा था, एक दम भल जाता है, और एक नटखट बालक के समान व्यवहार करने लग पड़ता है और यही चपलता-विकलतासे मनमें गहरा घर कर जाती है तब खाते-पीते-सोते-जागते उनही विचारोंसे वह उद्विग्न रहता है । उसे सपने भी इन्हीं बातों के प्रोया करते हैं। यह अहंभाव-अचेतन मन या जड़प्रकृतिका मेल है क्योंकि कार्मण-वर्गणाएँ-जडप्रकृति ही होती हैं। इससे स्पष्ट है कि सस्थाके उक्त कार्य में जो उत्साह था मात्र वह इसीलिए था कि संस्थाके सभ्यकी हैसियतसे उसे अपने अहंभावको सन्तुष्ट करने का अवसर मिलता था।
अचेतन मनके विचारोंको चीन्हने के लिए हमें अपने स्वप्नों का अन्वेषण करना चाहिए। हमें नाना स्वप्न आते हैं और स्वप्नको अवस्था में हम भले बुरे सुगम-असुगम सब प्रकारके काम करते हैं। इस ढंगके हमारे चेतन व्यवहारसे एक दम अलग एवं प्रतिकूल विचार जिस स्थान में आते हैं वही अचेतन मन कहलाता है। हमारे स्वप्न अचेतन मनकी गहराई तक
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पहुँचनेका राजमार्ग हैं, परन्तु इस राजमार्ग पर प्रत्येक व्यक्ति सुगमता से नहीं चल सकता। ___मनोविज्ञानके ऊँचे अभ्यासके विना एवं गूढ निरीक्षण शक्तिके विना, हम अपने तथा दूसरों के स्वप्नोंका अर्थ नहीं समझते । स्वप्नोंको समझने के लिए सबसे पहले स्वप्नके समय हमारे मनकी दशा क्या थी इसका विचार करना चाहिए। स्वप्न के समय उदासीनता, आनन्द, उल्लास, क्रोध, भय, घृणा, प्रेम, ग्लानि, व्याकुलता आदि किसी भी मनोदशासे संबंध रखनेवाली ऐसी कौनसी घटना हुई थी, यह स्मरण रखना चाहिए, परन्तु स्वप्न में आये विचारोंको याद करना सरल बात नहीं है। क्योंकि स्वप्नको याद करते समय ही हमें अनुभव होगा कि हमारे मन में कोई ऐसा भी यत्न है जो हमारे स्वप्नों को भुला देता है । रातका स्वप्न प्रातःकाल उठते ही हम भूल जाते हैं। यह भुलावा यन्त्र ज्ञानका प्रावरण स्वप्नकी भाँति हमारे मनका एक भाग है। इसे मनोविज्ञान में नियामक पुलीस की उपमा दी है, क्योंकि यह हमारे चेतन एवं अचेतन विचारोंके बीच में दीवार खड़ी करनेकी कोशिश करता है, तथा हमारे स्मरणमें से उन विचारोंको दूर करने की चेष्टा करता है, जो हमें अप्रिय होते हैं और जिन्हें स्वीकार करनेसे हम इन्कार करते हैं । इस प्रकार यह हमारी स्मृति में से अप्रिय एवं अवांछनीय विचारों को दूर करके हमारे जीवन में हमें पहले की अपेक्षा अधिक मात्म-विश्वासके साथ आगे बढ़ने में मदद करता है । इसके ज्ञानसे हमारा आन्तरिक चित्र एक दम अलग होते हुए भी हम अपने व्यक्तित्वको अधिक सङ्गठित कर सकते हैं।
सामान्यतया हम अपने आपको पहचानने से बचना चाहते हैं परन्तु अचेतन मनके विचारोंको जानकर हम अपने अन्तः
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करणका सच्चा चित्र देख सकते हैं और आत्मोन्नति कर सकते हैं। स्वप्नोंका अभ्यास करनेसे हम अपने अचेतन अन्तःकरण में दबे हुए विचारों एवं ग्रन्थियोंको जान सकते हैं और दूसरे व्यक्तियोंके सच्चे प्रश्न को भी समझ सकते हैं। स्वप्नोंका विश्लेषण मुक्त साहचर्यकी पद्धतिसे किया जाता है। इसकी सहायता से हम नियामक पुलिससे बच सकते हैं । मुक्त साहचर्य की पद्धतिमें, प्रथम शून्य मन रखकर स्वप्नके किसी एक विचारको जो हमें याद होता है, पकड़ लिया जाता है और उसके बाद विचारोंको स्वतन्त्ररूपसे इधर-उधर विचरने दिया जाता है । इसप्रकार स्वप्न में देखी हुई बिल्ली बहन का प्रतीक बन सकती है और स्वप्न में अनुभव किया गया भग्न-प्रेम किसी मपूर्ण अभिलाषाका द्योतक हो सकता है !
स्वप्न अटपटी वस्तु है और ये इच्छानुसार भी आते हैं और नहीं भी। साथ ही किसी अकस्मात्की सूचना भी करते हैं। स्वप्नानुसार उत्थान और पतनका इतिहास भी बनता है। तब इसके बारे में कुछ विचारोंको वितानके साथ मागेकी पंक्तियोंसे जाननेका प्रयत्न करेंगे। स्वप्नोंका गंभीर रहस्य
संसारमें ऐसा कौन व्यक्ति होगा जिसने स्वप्न न देखा हो। प्रायः प्रत्येक व्यक्ति दो-एक दिनमें या कभी नित्य ही स्वप्नोंकी अचरज भरी दुनिया में घूम लेता है। मनुष्यको स्वप्न कभी गहरी नींदमें दिखलाई नहीं देते, क्योकि यह अवस्था उसकी पूरी शान्ति तथा स्वप्न रहित अवस्था होती है और मनुष्यका संबन्ध जाग्रत संसारसे छूट जाता है। यों कहना चाहिए कि जबतक वह नींदरूपी गहरे कुएँ में रहता है तब तक तो उसे स्वप्न दिखाई नहीं पडते, किन्तु जब आदमी उस तलसे ऊपर
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उठने लगता है, अर्थात् "सुत्तजागरो प्रोहीरमाणो" कुछ सोता और कुछ जागता हो तो उसे स्वप्न दिखाई देने लगते हैं। ___ अतीतकालकी घटनायें तो मनुष्योंको सदैव ही दिखाई देती रहती हैं, पर अगले कालमें घटनेवाली बातें भी स्वप्नमें अधिकांश दिखाई दे जाती हैं। कहा जाता है कि ऐसे स्वप्न मनुष्यों को पूर्वाभास देने के लिए ही दिखलाई देते हैं। मनोवैज्ञानिकोंका यह मत है कि स्त्रियां पुरुषों की अपेक्षा, विचारवान् आदमी जंगली आदमियोंकी अपेक्षा और बीमार प्रादमी स्वस्थ आदमी की अपेक्षा अधिक स्वप्नं देखते हैं।
साधारणतासे प्रत्येक व्यक्तिके स्वप्न अलग अलग प्रकारके होते हैं । जिसप्रकार हमारी जाग्रत अवस्थाके अनुभव अलगअलग होते हैं, हमारी इच्छाएँ अलग-अलग होती हैं उसी प्रकार हमारे स्वप्न अनुभव भी भिन्न-भिन्न प्रकारके होते हैं।
हमारे स्वप्नों के देशकाल जाग्रत अवस्थाके देशकालोंसे सर्वथा अलग होते हैं। क्योंकि वह थोडेसे कालमें ही लम्बे देखे जा सकते हैं । यही नहीं, स्वप्नावस्था में कुछ ही समयमें ऐसे अनुभव भी प्राप्त किए जा सकते हैं जो जाग्रत अवस्थाके वर्षों के अनुभवके बराबर ही। ____ एक दिन मिस्टर मौरे फ्रांसकी राज्य-क्रान्तिकी एक पुस्तक पढ़ रहे थे। उसे पढ़ते-पढ़ते ही वह सो गए। सुप्तावस्थामें उन्हें फ्रांसकी राज्य-क्रान्तिका स्वप्न दिखाई देने लगा। अपने स्वप्न में मिस्टर मौरे ने देखा कि क्रान्तिकारी व्यक्तियोंने उन पर भी कुछ भीषण आरोप लगाए हैं। फलस्वरूप उन्हें पकड़ लिया गया। तत्काल उन्हें न्यायाधीशके सन्मुख पहुंचाया गया। श्रीमौरे द्वारा अनेक यत्न करनेके अतिरिक्त भी न्यायाधीशने उन्हें दोषी ठहराया। इसके बाद न्यायाधीशने आज्ञा दी कि उनका
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सिर ग्युलिटन द्वारा कटवा दिया जाय । इस आज्ञाके अनन्तर मिस्टर मोरेको ग्युलिटन मशीनके पास ले जाया गया और उन का सिर ग्युलिटन यंत्र के नीचे रख दिया । न्यायाधीशने श्राज्ञा दी - “ सिर काटो ।" आज्ञा देते ही ग्युलिटनका चाकू यंत्रसे निकलकर मिस्टर मौरेकी गर्दन पर फिर गया । चाकूके गर्दन पर फिरते ही उन्हें कुछ ठण्डा ठण्डा अनुभव हुआ । तुरन्त उन की नींद खुल गई | नींद खुलते ही उन्होंने देखा कि जिस पलंग पर वे सो रहे थे उसकी मच्छरदानीकी पाटी उनकी गर्दन पर पड़ी थी। उन्होंने उस मच्छरदानीकी पाटीको अपनी गर्दन से हटा दिया । यही पाटी रात्रिकी शीतसे ठंडी हो गई थी, जिसका शीत -स्पर्श मिस्टर मौरेको हुआ था ।
जनसाधारणका यह विचार हैं कि स्वप्न में हम जो कुछ देखते हैं, उसका उलटा प्रभाव होता है या यह कि प्रातःकाल के समय देखे गये स्वप्न सच्चे होते हैं । यद्यपि इन मतोंमें कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है, किन्तु फिर भी हमारे बहुतसे स्वप्न सच्चे होते हैं, तथा हमें आने वाले रोगों तककी खबर भी दे देते हैं । कारण यह है कि श्रादमीके बाहरी स्वास्थ्य के बिगड़ने से पहले भीतरकी विषमता उत्पन्न होती है और आनेवाले रोग विशेष प्रकारके स्वप्न उत्पन्न करते हैं । यही अवांछनीय स्वप्नों का कारण है । मनोवैज्ञानिक विद्वानोंके अनुसार स्वप्न चेतन मनके कार्य हैं | मनुष्यका चेतन मन अचेतन मनकी अपेक्षा भावी घटनाओंका अधिक ज्ञान रखता है, अत: कितनी ही भावी घटनायें स्वप्न द्वारा अपने आनेका संकेत कर देती हैं । इस प्रकार देखा गया है, अक्सर हमें अपने निकट सम्बन्धियों की मृत्युके समाचार प्राप्त होनेके पूर्व ही उनका ज्ञान स्वप्न द्वारा हो जाता है । इस प्रकारके स्वप्न देखने के अनेक उदाहरण मिले हैं ।
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जिस दिन ज्यूलियस सीजर मारा गया, उस दिनकी पहली रात्रिको उसकी स्त्री केलीयरानियांको स्वप्न हुआ कि उसके प्रतिको शत्रु मार रहे हैं। इसलिए दूसरे दिन सबेरे उठकर उस ने अपने पति ज्यूलियस-सीजरसे विनीतभावसे प्राग्रहपूर्वक प्रार्थनाकी कि वह उस दिन सीनेट न जाय। किन्तु ज्यूलियस सीजरने इसे केवल ढोंग समझकर अपनी पत्नीका कहना न माना और वह मारा गया।
एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकने स्वप्नोंमें पूर्वसूचना सम्बन्धी अपनी पुस्तकमें एक उदाहरण देते हुए लिखो है कि एक नवयुवतीने एक दिन स्वप्न देखा कि उसका चाचा सड़कके किनारे मरा हुप्रा पड़ा है। बाद में उसका शव एक गाड़ीमें लाया गया है पौर दो व्यक्ति उसे दुतल्लेपर ले जा रहे हैं। यह स्वप्न उस युवतीने दो वर्ष के अन्तरसे दो बार देखा । दूसरी बार वही स्वप्न देखनेपर नवयुवतीने अपने चाचासे घुड़सवारी छोड़ देनेका प्राग्रह किया। अन्तमें एक दिन नवयुवतीका चाचा सड़कके किनारे मरा पाया गया। यही नहीं स्वप्न में देखेगये दृश्यके समान ही दो व्यक्ति उसके चाचाको गाड़ी में रखकर घर लाये और दुतल्ले पर ले गये । इसप्रकार पूर्वसूचनाका स्वप्न अमरीकाके राष्ट्रपति मिस्टर अब्राहिम लिंकनको दिखाई दिया। १४ अप्रैल १८६५ को अमरीकाके राष्ट्रपति श्रीअब्राहिम लिंकनने उच्च सरकारी पदाधिकारियों की एक बैठक बुलाकर कहा कि उन्हें कोई महत्त्वपूर्ण सूचना अवश्य ही सुनने को मिलेगी। मिस्टर लिंकनने बतलाया कि उन्होंने एक स्वप्न देखा है कि यह एक ऐसी नावमें बैठे हैं जो पतवार हीन है। कहा जाता है कि इस स्वप्नकी बात बताने के लगभग पांच घन्टे बाद ही एक व्यक्ति के द्वारा बंदूकसे उनकी हत्या हो गई।
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इसीप्रकार लार्ड डफरिनने स्वप्न देखा कि वह मर गए ह और उनकी लाश कब्रिस्तान तक एक गाड़ीमें पहुंचाई जा रही है। लार्ड डफरिनने गाड़ी लेजानेवाले व्यक्तिके चेहरे को ध्यान में रक्खा । एक दिन कार्यवश वह पेरिसके एक होटल में ऊपरकी मंजिलको जानेकेलिए "लिफ्ट" पर चढ़ने लगे। अचानक उनकी दृष्टि लिफ्ट ड्राइवर के चेहरे पर गई और यह देखकर वह तुरन्त नीचे उतर गये। उतरनेका कारण यह था कि ड्राइवरका चेहरा बिलकुल स्वप्नमें देखेगये चेहरेके समान था। लिफ्ट ऊपर जाने लगी। किन्तु वह बीच में ही टूट गई और उस पर सवार सभी व्यक्ति मर गये। . पूर्वसूचनाका एक और अनोखा उदाहरण देखिये, सन् १९४२ में बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय में जोधसिंह नामक एक छात्रको एक रात अपने पिताकी मृत्युका आदेश देनेवाला स्वप्न दिखाई दिया। और उसस्वप्नके लग-भग दश घण्टे बाद जोधसिंहको अपने पिताकी मृत्यूका तार द्वारा समाचार प्राप्त हो गया। छात्रके पिताकी मृत्यु उस स्वप्न के समय ही हुई थी।
वास्तविकता यह है कि जिसप्रकारका अनुभव हम अपनी जाग्रत अवस्थामें करते हैं, या सोते सयय जो कुछ विचार किया करते हैं उसीके अनुरूप हम स्वप्न भी देखा करते हैं। यों कहना चाहिये कि हमारे स्वप्न जाग्रत अवस्थाके अनुभवोंकी पुनरावृत्तिमात्र हैं।
किन्तु हमारे इन स्वप्नोंकी पुनरावृत्ति स्वप्नावस्था में बिलकुल नये ढंगसे होती है। कभी-कभी हमारे कुछ स्वप्न साधारणतया बहुत ही ऊट-पटांग और अर्थहीन होते हैं । परन्तु वास्तव में वे हमारे अचेतनमनकी अनुभूत्तियोंके ही प्रतिरूप हैं।
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इसका कारण यह है कि हमारा अचेतनमन स्वप्नोंकी सृष्टि करता है इस सृष्टिके कार्यमें जाग्रत अवस्थाके अनुभव तथा अचेतनमनकी इच्छायें दोनों ही सम्मिलित होती हैं।
कई बार स्वप्नों द्वारा अपराधियों तक का पता चल जाता ह। एक बार मरडाक ग्रांट नामक एक ट्रैवलिंग कनवेंसरकी लाश एक झील में मिली । यह व्यक्ति एक बड़ी रकम लेकर किसी दूसरे स्थान को जा रहा था मार्गमें उसे मार कर उसका सारा घन छीन लिया। बाद में जांच होनेपर गृहस्थ ह्य मैकलाड पर सन्देह हुप्रा । इस सम्बन्ध में उससे प्रश्न पूछे गये, किन्तु कोई ठोस प्रमाण न मिला। कुछ दिनोंके पश्चात् वहीं के एक दर्जीको मृतात्माने स्वप्न में बताया कि हत्या मैकलाड ने ही की है। तथा उसके पासके सब रुपये मैकलाड के घर में कुछ पत्थरों के नीचे दबे पड़े हैं। जांचके अनन्तर स्वप्नके दृश्यके अनुसार सारा धन पत्थरके नीचे मिल गया। बादमें मैकलाडने स्वयं अपना अपराध मान लिया।
असल में स्वप्नोंका महत्व साधारण नहीं, बडा ही अद्भुत और विस्मयकारी है। अभी तक मनोवैज्ञानिक लोग स्वप्न दिखाई देने के कारणोंकी खोज नहीं कर पाए हैं कि स्वप्न में भविष्य की सूचना क्यों और कैसे मिलती है । अमेरिकाकी डयूक यूनीवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक परीक्षणशालामें प्रोफेसर जे० बी० राइनने कई वर्षों के प्रयोगके बाद यह सिद्ध किया है कि एक व्यक्तिपर विना किसी प्रत्यक्ष माध्यम रूप से प्रत्यक्ष के प्रगट हो सकते हैं और मुहसे बोले विना अथवा विना इशारे या अन्य साधन के एक मस्तिष्कमें उठनेवाले विचार दूसरे के मस्तिष्क तक रहस्यमय ढंगसे पहुँच जाते हैं ।
वास्तवमें स्वप्नॊका रहस्यमय क्षेत्र इतना विस्तृत है कि
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इसके अस्तित्व तथा प्रभावको मिटाया नहीं जा सकता, फिर भी इनके बारे में इनके गुप्त कारण जाननेका आगे यत्न होगा। हम स्वप्न क्यों देखते है ?
स्वप्न तो सभी देखते हैं, पर अधिकतर लोग यह जाननेके लिए उत्सुक रहते हैं कि स्वप्न क्यों आते हैं ?
स्वप्न हमारा एक सामान्य अनुभव है । यह हमें प्रत्येक दिनमें ही होता रहता है। किन्तु बहुत-से स्वप्न हमें याद नहीं रहते। हम जागते ही उन्हें भूल जाते हैं। इस लिए बहुत से लोगों को प्रतिदिन स्वप्न होने का ज्ञान नहीं रहता। स्वप्न पर विचार करना अपने आप को जानने के लिए आवश्यक है। इसके द्वारा अवचेतन मन की क्रियाओं का पता चलता है। ___ मनुष्यके मन में स्वभाव-जन्य अनेक प्रकार की इच्छाएँ होती हैं। इन में से अधिकतर इच्छाओं की पूर्ति हमारी जागरित अवस्था में हो जाती है। जिन इच्छाओं की पूर्ति हमारी जागरित अवस्था में हो जाती हैं, वे शान्त हो जाती हैं, और किसी प्रकार की उत्तेजना मनमें पैदा नहीं करती। लेकिन जिन इच्छाओं की तृप्ति नहीं होती, वे शान्त नहीं होतीं, बल्कि अनेक प्रकार की मानसिक उत्तेजनाओं का कारण बनती हैं । उत्तेजनाएँ मनुष्य के अचेतन मन (Uncorsciousmind) में स्थिर रहती हैं । और उसकी अवचेतन अवस्था (Sub-conscious state)में प्रकाशित होने की चेष्टा करती हैं, जिसके फलस्वरूप हम स्वप्न देखते हैं। किसी भी प्रकारके स्थायी भाव हमारे स्वप्न के कारण बन जाते हैं। जिन स्थायी भावों का प्रकाशन जागरित अवस्था में होता रहता है, उनकी शक्ति क्षीण होती रहती है,
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प्रतएवं वे अंधिक उद्वेगात्मक स्वप्नोंका कारण नहीं बनते, किन्तु जिन स्थायी भावों का प्रकाशन प्रतिकूल परिस्थिति के कारण अथवा चेतन मन के नैतिक प्रतिबंध के कारण नहीं हो पाता, वे बड़े उद्वेगात्मक स्वप्नों के कारण बन जाते हैं।
स्वप्न के देश, काल जागरित अवस्था के देश, काल से भिन्न होते हैं। हमारा शरीर एक ही स्थान पर पड़ा रहता है, किन्तु स्वप्नावस्था में हमारा मन संसार भर में विचरण करता रहता है, और वह कितनी ही नई सृष्टियाँ रच लेता है। कभी-कभी एक मिनट में ही हम इतना लम्बा स्वप्न देखते हैं, कि मालूम होता है, जैसे कई वर्ष बीत गये। स्वप्नावस्था का अनुभव मनोराज्य के अनुभव के समान होता है। यदि कोई मनुष्य अपने विस्तर पर लेटकर अपने विचारों का चेतना-द्वारा नियन्त्रण करना बन्द कर दे मोर मन जो कुछ करता है, उसे करने दे तो वह शीघ्र ही अपने-आप को मनोराज्य की सृष्टि करते पायेगा। इस अवस्था के बाद स्वप्नावस्था आती है। जिसका अन्त सुषुप्ति अवस्था में होता है।
जब हम किसी गन्दे और बदबूदार कमरे में सोते हैं, अथवा गन्दे कपड़ों को प्रोढ़ कर सोते हैं,तो अप्रिय स्वप्न देखते हैं । मुंह ढंक कर सोने से बुरे स्वप्न पाते हैं। हमारी साँस से निकली दुर्गन्धे फिर हमारे दिमाग में आ जाती है,और बुरे स्वप्नोंको पैदा करती है । सोने के कमरे में यदि बाहर का हल्ला-गुल्ला सुनाई पड़ना एक विशेष प्रकारके स्वप्नोंका कारण बन जाता है। इसी प्रकोर सोने के कमरे में यदि बाहर से आने वाली आवाज कर्णप्रिय अथवा मन्त्र मुग्ध करने वाली हो, तो स्वप्न सुन्दर आते हैं और यदि यह आवाज अरोचक और दुःखदायी हो तो स्वप्न
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दुःखदायी पाते हैं। इस प्रकार के स्वप्न हमारी शारीरिक उत्तेजनाओं के कारण बनते हैं।
कभी-कभी आनेवाली बीमारी स्वप्न में दिखाई देती है। यह बीमारी सम्भव है कि उसी रूप में न दिखाई दे, जिस रूप में वह आनेवाली है । हम देखते हैं कि कोई बड़ा राक्षस हमें त्रास दे रहा है, या कोई भूत हमें सता रहा है। इस प्रकार के स्वप्न आनेवाली बीमारियों के सूचक होते हैं। इन स्वप्नों का कारण शारीरिक उत्तेजनाएँ होती हैं।
हमारे अचेतन मन की शक्ति चेतन मन की शक्ति से कहीं अधिक है। हम मन की अचेतन अवस्था में शरीर के उन अनेक विकारों को जान लेते हैं, जो भविष्य में बीमारी के रूप में प्रगट होते हैं।
अपने सम्बन्धी की मृत्यु, किसी राक्षस से लड़ना, ऊपर से गिरना आदि भयंकर स्वप्न अवांछनीय मानसिक ग्रन्थियों के परिणाम होते हैं। जिस व्यक्तिके मन में पिता के प्रति वैर-भाव होता है, वह ऐसे स्वप्न देखता है, जैसे किसी बड़े आदमी के मरने का स्वप्न, शिक्षक के मरने का स्वप्न आदि । मन दूषित होने पर इस प्रकार के अनेक स्वप्न पाते हैं। इसी तरह जिस व्यक्ति के मन में किसी व्यक्ति के प्रति प्रेबल द्वेष-भाव होता है, अथवा जो किसी से ईर्ष्या या घृणा करता है, वह ऐसे स्वप्न देखता है, जिन में उसके भावों का प्रकाशन होता है । एक व्यक्ति को कुछ वर्ष पूर्व बार-बार हिन्दू-मुसलमानों के दगों के स्वप्न हना करते थे। इन दंगों में व्यक्ति अपने आप को बड़े संकट की अवस्था में पाता था। इस स्वप्न को एक बार उसने एक मनोवैज्ञानिकसे कहा । उसने बताया,कि इसका कारण उसकी मुसलमानों के प्रति द्वेष-भावन । है । लेकिन वह इस बात को स्वीकार
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करने को तैयार न था,कि वह मुसलमानों से घृणा करता है। लेकिन उसने चुपचाप रहकर ही अपने आप में परिवर्तन करने की कोशिश की। उसने मुस्लिमलीग विरोधी बातें कहना-सुनना बंद कर दिया, और रात को सोते समय सभी मुसलमानों के प्रति सद्भावना लाने की चेष्टा की। इस प्रकार के अभ्यास का परिणाम यह हुआ, कि उस समय के बाद उसे फिर कभी हिन्दू-मुसलमानों के दंगों का स्वप्न न हुआ। इतना ही नहीं, दूसरे अनेक प्रकार के भयावने अथवा दुःखद स्वप्न भी दिखाई पड़ने बंद हो गये । शत्रुओं द्वारा त्रस्त होने के तथा दूसरे दुःखदायी स्वप्न भी मैत्रीभावना के अभ्यास से कम किये जा सकते हैं। पानी में तैरना, हवामें उड़ना, पहाड़ों पर चढ़ना, खोहोंमें घुसना, पीड़ित होकर भागना और बच्चों के साथ खेलना आदि सभी स्वप्न अतृप्त काम-वासना की तृप्ति के सूचक होते हैं।
वैर का स्थायी भाव हमारी जागरित अवस्था में हमें शत्रुके नाश के लिये अनेक योजनाएं बनाने के लिये प्रेरित करता है। हम उसका विनाश चाहते हैं । हम अपने मन में किसी से वैर के कारण अपने विनाश की कल्पना नहीं करते, पर स्वप्न में हमारा मन शत्रुओं द्वारा त्रस्त होने का अनुभव हमें कराता है, अर्थात् स्वप्न में हमारी कल्पना कभी-कभी हमारे ही प्रतिकूल होती है । जागरित अवस्था में हम दूसरों से घृणा करते हैं, स्वप्नावस्था में दूसरों को अपने प्रति करते पाते हैं। जागरितअवस्था में धन-संचय की कल्पना हमारे मन में आती है तब स्वप्नावस्था में धन के चुराये जाने अथवा उसके विनाश की कल्पना हमारे मन में प्राती है। जागरितावस्था में हम दूसरे को मृत्यु चाहते हैं, स्वप्नावस्था में अपनी ही मृत्यु देखते हैं ।
यदि किसी मनुष्य को किसी विशेष प्रकार की पीड़ा है' तो
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उसे दुःखदायी स्वप्न होते हैं । ज्वर की अवस्था में अच्छे स्वप्न नहीं आते, जिस प्रकार रोगी की कल्पनाएँ अस्वस्थ होती हैं,उसी प्रकार उसके स्वप्न भी अस्वस्थ होते हैं । जब शरीर रोगग्रस्त हो जाता है, तो मनुष्य भयंकर मानसिक चित्रों को अपने सामने देखने लगता है। वे मानसिक चित्र उसे स्वप्न में भी दिखाई देते हैं। इसलिये सुन्दर स्वप्न देखने के लिये शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता है।
कुछ स्वप्न हमें आदेश के रूप में आते हैं। वे वास्तव में हमारी अन्तरात्मा के आदेश मात्र होते हैं। कभी-कभी हम देखते हैं कि कोई महान् पुरुष हमें कोई आदेश दे रहा है। इस प्रकार के स्वप्न हमारी आन्तरिक इच्छा के सूचक होते हैं । जब हम किसी विकट परिस्थिति में पड़ जाते हैं, जिसमें हम नहीं जानते कि हमें क्या करना उचित है, और क्या नहीं, और जब विचार करते करते हमारा मन शिथिलसा हो जाता है, तो हम किसी बाहरी प्रकाश की आशा करते हैं, जब इस प्रकार की इच्छा प्रबल हो जाती है, और उसकी पूति किसी बाहरी साधन से नहीं होती, तो वह हमारे आदेशात्मक स्वप्न का कारण बन जाती है। इस प्रकार के आदेशात्मक स्वप्न कभी-कभी वास्तव में सही रास्ते दर्शाते हैं । जिस निष्कर्ष तक हम अपनी जागरितावस्था में नहीं पहुँचते, वह निष्कर्ष कभी-कभी स्वप्न में ज्ञात होता है । इसका कारण यह है, कि हमारा साधारणज्ञान हमारी विचार-शक्ति पर निर्भर होता है । हमारी चेतन मन की युक्तियाँ चेतन मन के ज्ञान से परिमित रहती हैं। वस्तुस्थिति में ऐसी अनेक बातें होती है, जिनका ज्ञोन हमारी चेतना को कभी नहीं होता। अचेतन मन ही हमारे जीवन के अधिक काम निश्चित करता है। अचेतन मन का आदेश जब जागरित
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२० अवस्था में हमें प्राप्त नहीं होता, तो वह स्वप्न में प्राप्त होता है।
हमारा साधारण विश्वास है, कि स्वप्न हमारी नींद को भंग करता है। यह विश्वास भ्रान्त है। स्वप्न तो दैनिक जीवनके अंग हैं । बहुतसे लोग कहा करते हैं, कि हमें स्वप्न नहीं होते। इस कथनको प्रामाणिक न समझना चाहिये । वास्तवमें हम अनेक स्वप्न जागते ही तुरन्त भूल जाते हैं। जो व्यवस्था स्वप्नों के अनेक रूपोंके बननेका कारण होती है वही व्यवस्था स्वप्नोंके अनुभव को भुलानेका कारण भी बन जाती है। ___स्वप्न कम किये जा सकते हैं अथवा नहीं, इस विषय पर वैज्ञानिक ढंगसे बहुत कम विचार किया गया है । इतना अवश्य है कि यदि उत्तेजनाओंमें कमी हो जाय तो स्वप्नोंमें भी कमी हो सकती है । दुःखद स्वप्नकी कमी हम प्रयत्न करने पर अवश्य कर सकते हैं। दुःखद स्वप्नोंके बाहरी कारणों पर नियंत्रण करना सरल है। स्वच्छ स्थानमें सोने तथा सोते समय मल-मूत्र त्याग कर सोनेसे अप्रिय स्वप्नों में कमी हो सकती है । आन्तरिक उत्तेजनाएं धीरे-धीरे कम की जा सकती हैं। शत्रुओं द्वारा त्रस्त होने के स्वप्न तथा दूसरे प्रकारके दुःखदायी स्वप्न मैत्री भावके अभ्याससे कम किए जा सकते हैं । मैत्री भावका अभ्यास सब प्राणियोंके प्रति सद्भावनाका अभ्यास है। सोते समय इस प्रकारका अभ्यास विशेषतः लाभकारी होता है । सोते समय यदि हम अपने आपसे यह कहकर सोएँ, कि 'हम सबके मित्र हैं और सभी हमारे मित्र हैं, सबका कल्याण हो; संसारके सभी प्राणी सुखी हों'; तो यह भावना थोड़े ही दिनोंमें दुःखद स्वप्नोंका पाना बन्द कर देगी। एक व्यक्तिके प्रति हमारी दुर्भावना अथवा सद्भावना प्राणि-मात्र
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के प्रति उसी प्रकारकी भावनाकी प्रतीक होती है। एक विशेष व्यक्ति के प्रति अपना विचार बदल कर, अमैत्री भावनाके बदले मैत्री भावना लाकर हम संसारके सभी प्राणियोंके प्रति अपनी भावनाओंकों उसी प्रकार बदल देते हैं, जिस प्रकार हम उस विशेष व्यक्तिके प्रति बदलते हैं। इस प्रकारकी भावनाका मनुष्यके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। प्रतिदिन सोते समय मैत्री भावनाका अभ्यास करनेसे मनुष्यके आचरणमें मौलिक परिवर्तन हो जाता है।
+ परन्तु आदमी सतृष्ण अवस्थामें जब वासना और लालसा के चक्कोंके साथ घूमने लगता है तब उसे जाग्रत-अवस्थामें भी धन-स्त्री-व्यवसाय आदिके स्वप्न आते हैं। सोने की खानमें काम करनेवाले या उसके धंधेमें रचे पचे रहनेवालोंके मन उसी व्यवसायमें बसनेके कारण जागते हुए भी सोनेके ही स्वप्न पाते हैं । तथा जो हीरोंकी खानमें काम करते हैं या हीरोंकी खोजमें लगे होते हैं उन्हें हीरों के स्वप्न पाते हैं । ब्राजील में रहनेवालों को अधिकतर जागते हुए भी हीरोंके ही स्वप्न आते हैं । वे हरदम हीरोंकी टोहमें रहते हैं। कभी कभी हर्षसे खिलखिला कर हँस पड़ते हैं और कभी प्राश-निराश होनेपर शोकसे बुच जाते हैं I. T. एकल्जने अपना अनुभव इस प्रकार प्रगट किया है, थोड़ेमें पढ़िये ! हीरोंके सपनोंका देश
ब्राजीलके नक्शे पर आपने "बहुमूल्य हीरोंका प्रदेश' देखा ही होगा। एक बार इस प्रेदेशमें मैं जल-यात्रा कर रहा था। पाश्चर्यसे देखा कि इस प्रदेशकी एक मटमैली नदीमें घुटने-घुटने और कमर-कमर पानीमें खड़े हजारों इंसान हीरोंका सपना देख
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रहे थे। पता नहीं उनमेंसे कितनोंका सपना चरितार्थ हो सकेगा ? जब मैंने अपने एक सहयात्री पर अपना संदेह प्रकट किया, उसने प्रस्तावित किया कि क्यों न हम अपनी भी किस्मत आजमायें ? मैं तुरन्त मित्रके प्रस्ताव पर तैयार हो गया और हीरोंकी इस खोज तथा उनके खोजियोंके संबंधमें मनोरंजक तजुर्वे हासिल किये।
ब्राजील में कोई तीन लाख इंसानोंको हीरोंकी खोजका बुखार चढ़ा रहता है । दूर-दूरके देशों, यहाँ तक कि दूसरे भू-भागों से, लोग अपनी किस्मत आजमाने ब्राजील आते हैं । ब्राजीलके अछोर और अगम वन प्रदेशसे बहनेवाली नदियोंमें ये लोग या तो सामूहिक रूप से या अकेले ही, हीरोंकी शोधमें फैल जाते हैं । ये अपनी मनचाही जगह खोज लेते हैं और लखपती बननेकी रंगीनी में डूब जाते हैं। जो, अपने इस अभिमानके लिए पर्याप्त भोजन और धन लाते हैं, वे तो अकेले ही हीरोंकी खोज में लग जाते हैं। किन्तु जो लोग पर्याप्त साधनसम्पन्न नहीं होते, वे किसी 'पूँजीवादी' द्वारा आयोजित समूहके अंग बन जाते हैं। इस 'पूजीवादी' की ओरसे उसे झोंपड़ी और खान-पानकी सुविधा मिलती रहती है, सिर्फ इसी एक मात्र शर्त पर कि इस सुविधाके दौरान में प्राप्त होनेवाले हीरोंमें, पूजीवादी का निश्चित हिस्सा होगा। ___ सूर्योदयसे सूर्यास्त तक, घुटने-घुटने पानी में हाथोंमें चलनी लिये हुए, कमर झुकाकर खड़े रहना होता है । पहले बड़े छेदों वाली चलनीसे बड़े-बड़े पत्थर छांट दिये जाते हैं,फिर क्रमशःतीन चलनियोंसे छोटे-छोटे कंकड़ छाने जाते हैं । अन्तमें बिलकुल छोटी कंकड़ियाँ रह जाती हैं, जिन्हें पानीके बहावकी प्रक्रिया में छोड़ दिया जाता है । इस प्रक्रिया द्वारा इन कंकड़ोंके छोटे-बड़े घेरे जैसे बन जाते हैं हल्के कंकड़ बाहरी घेरों और अपेक्षाकृत भारी कंकड़
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भीतरी घेरों के वृत्त निर्माण करते हैं। बिलकुल केन्द्र में लाल रंगवाले, सबसे भारी कंकड़ों का वृत्त बनता है जिसे 'वैक्स' कहते हैं। अब हीरेके शोधकों की नजर इस लाल वैक्स के केन्द्र पर जम जाती है। यदि कोई छोटा-सा नगण्य-सा सफेद, पारदर्शी कंकड़ नजर आ गया, तो खुशी से पागल, हीरे का खोजी उछल पड़ता है और अपनी पिस्तौल से छः हवाई फायर करता है। हां दुनियां जान ले कि उसका सपना चरितार्थ हो गया है। पर पिस्तौल फायर करने का मौका शायद माह में, या वर्ष में एकाध बार ही किसीको मिलता है और किसी को कभी नहीं । अपनी-अपनी किस्मत का खेल है । बाकी समय ये खोजी, दिन भर तो कंकड़ों के वृत्त बनाया करते हैं और रातों को अंडे के बराबर और उससे भी बड़े-बड़े हीरे खोज लेने के सपने देखते हैं। ___ मैं अपनी किस्मत के दिन तक न रुक पाया। कुछ ही दिन की खोज के बाद, मेरे शरीर की हड्डी-हड्डी दुखने लगी । मैं कठिनाई से ही हाथ-पैर हिला सकता था। दिल जैसे बैठा जाता था। मैंने तो इस काम से सदा के लिए विदा लेने का निश्चय किया, परन्तु मेरा सहयात्री, मुझ से ज्यादा आशावादी सिद्ध हुमा । हो सकता है अब तक वह लखपति बन चुका हो। हो सकता है, बेचारा बीमारी और निराशा का शिकार ! कौन जाने क्या हो !
इस अवतरणसे स्पष्ट है कि लोगोंको इच्छाओं द्वारा प्रेरित होने पर जागते सोते सपने ही सपने आया करते हैं। किसी निस्तृष्ण-प्रात्मानन्दी को न भी पाते हों यह बात अलग है, परन्तु सपने आने में देहधारी मानवकी मानवी नहीं बल्कि दानवी प्रकृति की तृष्णा या मांग इसका मुख्य हेतु बन जाता .
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ह । किन्तु कुछ स्वप्नज्ञ-अनुभूत लोगों ने इसके संक्षेपमें बहुत से अलग-अलग नौ कारण इस प्रकार गिनाये हैं। जिन्हें अनुभव द्वारा द्रव्य तथा भाव के रूप में जानने की अपेक्षा है। ___ स्वप्न पाने के नौ कारण-मनुष्योंको नौ तरहसे भी स्वप्न आते हैं, जानी हुई बात १, देखी हुई बात. २, सुनी हुई बात ३, वातपित्त और कफ के विकार से ४, सहजभाव से अथवा मल मूत्र के वेग को रोकने से ५, चिन्ता करने से ६, इन छः कारणों से आये हुए स्वप्न निष्फल जाते हैं, इनसे किसी प्रकार का शुभाशुभ फल नहीं होता।
तब देवके अनुष्ठान या सान्निध्यसे ७, धर्म कर्म में सावधान रहने वाले प्राणीको अधिक धर्मभावस्थ रहने से, अधिक पुण्य के योग से ८, अधिक पापके द्वारा तीव्र पापोदयसे ६, इन पिछले तीन कारणोंसे आये हुए स्वप्न शुभाशुभ फल देते हैं । यथासंभव वृथा नहीं जाते। तथा धातु प्रकोपसे, वायु का बल बढ़ने से उसे वृक्ष, पर्वत या टीलोंपर चढ़ना, आकाश में उड़ना, आदि ऐसे-ऐसे अनेक जाँजालिक स्वप्न आते हैं । पित्तके प्रकोप से सोना, रत्न, सूर्य, अग्नि आदिके नाना स्वप्न देखता है । तथा ऐसे ही कफकी बहुलताके योगसे अश्व, नक्षत्र, चन्द्रमा, शुक्लपक्ष, नदी, सरोवर, समुद्र इत्यादि का लांघना देखता है, ये सब निरर्थक और निष्फल हैं।
सार्थक स्वप्न-वृषभ, हाथी, महल, पर्वत, या टीलोंपर अपनेको चढ़ा देखे तो बड़प्पन मिलने का लाभ होता है । विष्टे से लिपा सना शरीर देखे तो निरोगता पाता है। स्वप्न में रोने पर हर्षका संयोग पाता है। राजा, हाथी, घोड़ा, सोना, बैल, गाय, अपना कुटुम्ब आदि का स्वप्न देखे तो कुलवृद्धिका रूपक बन जाता है। प्रसादके ऊपर चढ़कर भोजन करना, समुद्र में
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तैरना आदि देखे तो नीच कुल में जन्मा हुया व्यक्ति भी राजा बनता है । दीपक, माँस, फल, कन्या, पद्म, छत्र और ध्वजा
आदि देखे तो विजय प्राप्त करता है । तथा पूर्वजोंकी आकृति देखे तो आयु बढ़ने का कारण बनता है एवं कीर्ति-यश और धन बढ़ता है । कपास, भस्म, अस्थि, मथी हुई छाछ, इन चार वस्तुनोंको छोड़कर बाकी सब सफेद वस्तुयें अच्छी होती हैं । हाथी, देवता, घोड़ा और राजाके अतिरिक्त और सब काली चीजें बेठीक होती हैं । स्वप्नमें गायन करे तो रोनेका प्रसंग पाता है। नाचने पर बंदीखाना भोगता है । हँसे तो शोकातुर होता है। पढ़े तो कलह या विग्रह होता है। देवता, राजा, साधु ब्राह्मण, अपना पूर्वज, वृषभ-ये आकर कुछ बात करें या कहें तो सत्य उतरती हैं । सफेद साँप भुजा पर डसे तो सोने की धातु का लाभ मिलता है। फले-फूले वृक्ष या खिरनीके वृक्ष पर चढ़ा देखे तो अधिक धनलाभ होता है। गधा,ऊँट,भेस या भैंसे पर चढ़कर दक्खन में जाता देखे तो मृत्युलाभ होता है। यदि पुरुष सफेद चन्दनके विलेपनसे युक्त धौले कपड़े वाली स्त्रीसे आलिंगन भाव देखे तो धनकी प्राप्ति होती है। काले चन्दनके लेपन युक्त लाल कपड़े पहने हुए स्त्रीसे आलिंगन-भाव देखे तो खून सूखनेकी बीमारी होती है। सोना,रत्न, या सीसा धातु के ढेर पर चढ़ा देखे तो सच्ची श्रद्धा-समकत्व का निमित्त पाकर मोक्ष गमन करता है। शराबके घडे को उठाकर फोड़ने की घटना देखे तो आत्मसमाधि पाकर मुक्ति पाता है।
असंख्य स्वप्नों में-१४ स्वप्न सर्वोत्तम होते हैं,तीस स्वप्न मध्यम और ४२ स्वप्न जघन्य कक्षा के होते हैं।
४२ जघन्य स्वप्न-गन्धर्व, राक्षस, भूत पिशाच, बुक्कस, महिष, साँप,वानर, कंटकवृक्ष, नदी, खजूर, स्मशान, ऊँट,खर
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बिल्ली, श्वान, दौस्थ्य, संगीत, अग्निपरीक्षा, भस्म, अस्थि, वमन, तम, दुःस्त्री, चर्म, रक्त, अश्म, वोमन, कलह, विविक्तदृष्टि, जलशोष, भूकम्प, गृहयुद्ध, निर्वाण, भंग, भूमंजन, तारापतन सूर्यचंद्रस्फोट, महावायु, महाताप, विस्फोट, दुर्वाक्य, ये ४२ स्वप्न शुभसूचक माने गये हैं ।
३० उत्तम स्वप्न – अर्हन्, बुद्ध, हरि, कृष्ण, शंभु, नृप, ब्रह्मा, स्कंध, गणेश, लक्ष्मी, गौरी, हाथी, गौ, वृषभ, चन्द्र, सूर्य, विमान, भवन, अग्नि, समुद्र, सरोवर, सिंह, रत्नोंका, ढेर, गिरि, ध्वज, जलपूर्णघट, पुरीष, मांस, मत्स्य, कल्पद्र ुम, ये तीस स्वप्न उत्तम फल देनेवाले गिने जाते हैं । दोनों प्रकार के स्वप्नों का योग ७२ होता है ।
स्वप्न फल किसे मिलता है— जो आदमी स्थिर चित्त, जितेन्द्रिय, शान्तमुद्रा, धर्मभाव में रुचि रखनेवाला, धर्मानुरागी, प्रामाणिक, सत्यवादी, दयालु, श्रद्धालु और गृहस्थोचित उत्तम २१ गुरण समृद्ध है, उसे जो स्वप्न आता है, निरर्थक नहीं जाता, कर्मानुसार अच्छा या बुरा फल यथासमय तुरंत पाता है ।
यदि रातके पहले पहर में स्वप्न देखा गया है तो उसका फल एकवर्ष में प्राप्त होता है। दूसरे पहर में देखे तो छ मास, तीसरे पहर में देखे तो एक मास, रातके चौथे पहर में देखे तो एक मास, रात्री अन्तिम दो घड़ीके तड़के देखे तो दश दिन, और सूर्य उदय होते-होते स्वप्न देखे तो उसका तत्काल फल मिलता है । बुरा स्वप्न आनेपर सोया पडा रहे तो बुरा नहीं और उसे किसी के आगे न कहे, यथासंभव उसे भूल जाना चाहिये । उत्तम स्वप्न होनेपर गुरुजनोंके सम्मुख विनयावनत होकर निवेदन करे । यदि कोई योग्य आदमी न मिले तो गायके कान में सुना देना उचित है । प्रच्छा स्वप्न देखकर सो जानेकी भूल कर बैठे
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तो उसका फल निष्फल हो जाता है । अच्छा स्वप्न मूर्खको कभी न बताये, यदि कहेगा तो उसका फल जैसा वह बतायेगा वैसा ही अव्यवस्थित-अनिच्छित फल होगा। उत्तम स्वप्नज्ञके सामने कहनेसे उत्तम फल पाता है । अयोग्यको बतानेकी अपेक्षा मनमें रखना या गौ के कानमें कहना उचित है। कुछ प्राचार्योंका मत है, यदि स्वप्न किसोको न कहा जाय तो उसका फल नहीं होता। यदि पहले अच्छा स्वप्न देखकर फिर बुरा स्वप्न दीख पड़े तो बुरेका ही प्रभाव स्थिर रहता है।
सिंह, घोड़ा या वृषभ रथमें जुता हो और उसपर बैठकर प्रवास करनेका स्वप्न देखना राजयोग समझा जाता है । घोडा, वाहन, वस्त्र और घरको कोई ले जाय तो राजभय, स्थान भ्रष्ट, शोक, बध, बंधन, विरोध, और अर्थ हानि हो । सूर्य और चन्द्रके प्रतिबिम्बको निगलने या पीनेका स्वप्न देखे तो समुद्र पर्यन्त पृथ्वीका अधिपति बने । सफेद हाथी पर बैठकर नदीके किनारे रायता बनाता देखे तो जनपद पतिका पद मिलता है। अपनी स्त्रीका अपहरण धननाश का सूचक है । श्वेत-सर्पने दहनी भुजा पर डंख दिया हो तो सुवर्णलाभ सूचक है। आदमी अपने चरण, मस्तक और भुजाको खाता देखे तो राज्यपद प्राप्तिका सूचक है। कालीगाय, घोडा, हाथी और पूर्वजकी आकृति देखना शुभसूचक और शेष काली वस्तुयें अशुभ-सूचक हैं । बुरा स्वप्न देखकर फिर पूर्वज-पुरुषको स्वप्न में देखे तो उत्तम वस्तुका लाभसूचक है। दूब, चावल, चन्दन और गन्ना मांगलिक हैं। राजा, हाथी, घोडा,सोना, वृषभ, गाय आदिका देखना कुटुम्बवृद्धि सूचक है। रथमें बैठकर जाना राजपदप्राप्ति का सूचक है। तांबूल, दही, वस्त्र, चन्दन, जाति, बकुल, कुंद, मुचकुंद, कुसुम-क्षुप आदिका देखना धनलाभ सूचक है। दीपक, पान,
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फल, पद्म, कन्या, छत्र, ध्वज और हार आदिका देखना लक्ष्मीप्राप्तिका सूचक है । हरण, प्रहरण, भूषण, मणि, मोती, सोना, चाँदी, तथा कांसी आदिके बर्तनों का स्फोट होना धनहानि सूचक है । दर्वाजा, संकल, कुडा, पागल, भोगल, हिंडोला, खडायू, घर प्रादि टूटे फूटे देखना स्त्रीमृत्यु सूचक है । जूता, छत्री और पैनी धारकी तलवार कहीं से स्वप्नमें मिले तो प्रवास की सूचना समझे । सवारीके जहाज पर चढा है या वाहन टूट गया है, पानी में डुबकियाँ खाकर पार होना देखे तो प्रवासका सूचक है, धनार्जन करके पुनः सुखसे घर लौटे। अंजन, नेत्ररोग और रोमच्छेद धनक्षय जनक हैं । भेसा, ऊँट और गर्दभ पर चढकर दक्खनमें जाना शीघ्र यमलोक प्राप्ति सूचक है। कमलाकर, रत्नाकर, पानीसे परिपूर्ण नदी तथा मित्रमरण देखना बहुत प्रायका सूचक है। काढा पीना अतिसार रोग द्वारा मरण सूचक है। यात्रा और पूर्वजोंका बहुमान करना कुलवृद्धि सूचक है । सरोवरमें कमल खिले देखे तो गलित कुष्ट होकर मरनेकी सूचना है। हाथी, घोडा, गद्दी, सिंहासन, घरके कपड़े लत्ते गुम हुये देखना राजभय सूचक है । अपने हथियार आभरण, मरिण, मोती, सुवर्ण, चाँदी और पादुका आदिका चोरी जाना धन, मान और आन, बान, नाशक है। अपनी स्त्रीका अपहरण देखना घर-सम्पदा नाशक है। अपनी स्त्रीकी किसी द्वारा दुर्दशा देखे, परिवार या गोत्रज स्त्रीका अपहरण क्लेश और परिवारके लोगों के लिये कारावास के संकटका सूचक है। अपने बिस्तर सफेद वस्त्र का गुम होना पीडा और संकट कारक है। स्वपाद भक्षी बड़ा पद पाता है। पद्मसरोवर, समुद्र, और नदीको पार करना धनलाभका सन्देश दायक है, गर्मपानी और छाछ मिलाकर पीनेका स्वप्न अतिसार द्वारा मृत्यु सूचक है
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पूर्वज पूजा और यात्रा करना सब प्रकारकी वृद्धिका सूचक है । हृदयपर कमल उगा देखना गलित कुष्टसे शरीर पात होनेकी खबर देता है । चाँद 'पूणिमाको' और सूरजको निगलना या पी जाना दरिद्री के लिये भी उत्थान या राजपद पानेका सूचक है ।
[ स्वप्नों का प्रकरण वीतराग सर्वज्ञ भगवान् द्वारा सूत्रों में भी वर्णित है, जैसे भगवती सूत्रके सोलहवें शतकके छठवें उद्देशक में ज्ञातपुत्र- महावीर भगवान् से उनके बड़े शिष्य इन्द्रभूति ( गोतम गणधर ) ने स्वप्न सम्बन्धी चर्चा उठाकर इस प्रकार प्रश्न किये हैं । ]
प्रश्न
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- भगवन् ! स्वप्न कितने प्रकार से कहे गये हैं ?
उत्तर- गोतम ! स्वप्नदर्शन पांच प्रकार के होते हैं, जैसे— यथातथ्य स्वप्नदर्शन १. प्रतान स्वप्नदर्शन २. चिन्तास्वप्नदर्शन ३. तद्विपरीत स्वप्नदर्शन ४. और अव्यक्त स्वप्नदर्शन ५ ।
स्वप्न क्या हैं ? सुषुप्ति अवस्था में किसी अर्थ के विकल्पका अनुभव करना, स्वप्न कहलाता है, और उसके पांच प्रकार हैं।
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१ यथातथ्य – सत्य अथवा तात्विक, उसके दृष्टार्थ-विसंवादी और फलविसंवादी के भेदसे दो प्रकार हैं । स्वप्न में देखे हुए अर्थके अनुसार जाग्रत अवस्था में जो घटना होती है वह दृष्टार्थ विसंवादी है । जैसे किसी आदमीने स्वप्न में देखा कि 'मुझे किसीने हाथ पर फल रखकर अर्पण किया है' और वह जग कर उसीप्रकार देखे । स्वप्न के अनुसार जिसका फल तुरंत मिले वह फल विसंवादी है । जैसे कोई गौ, बैल, हाथी आदि के ऊपर अपनेको स्वप्न में चढ़ा देखता है, और कालान्तर में वह वैसी ही सम्पत्ति को पा जाय ।
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२. प्रतान स्वप्न-लंबे चौड़े विस्तार वाला स्वप्न, वह यथातथ्य (सही) भी होता है और अन्यथा भी हो सकता है , इन दोनों स्वप्नों का परस्पर भेद मात्र विशेषण कृत है। __३. चिन्ता-जाग्रत अवस्थामें जिस अर्थका चिन्तन किया गया है, उसे स्वप्नमें देखना।
४. तद्विपरीत प्रश्न-जैसा स्वप्न देखा है, उससे विरुद्ध वस्तुकी जाग्रत अवस्था में प्राप्ति होना। जैसे स्वप्न में अशुचि पदार्थसे अपने पापको सना हुआ देखना और जाग्रत अवस्थामें किसी शुचि पदार्थका प्राप्त होना।
५. अव्यक्त दर्शन-स्वप्नमें किसी अस्पष्ट प्रर्थका अनुभवकरना।
६. स्वप्न कब देखा जाता है ? गोतमने फिर पूछा कि भगवन् ! जो प्राणी स्वप्न देखता है वह जाग्रत अवस्थामें देखता है या . सोई हुई अवस्था में ? ____गोतम ! सोया हुआ प्राणी स्वप्न नहीं देखता, जाग्रत ही देख सकता है, किन्तु कुछ सोते हुए और कुछ जागते हुए प्राणी स्वप्न देखता है।
७. जीव सोते हैं या जागते हैं या सोते जागते हैं ?-भगवन् ! जीव सोते भी हैं या जागते हैं या सोते जागते हैं। ..
गोतम ! जीव सोते भी हैं, जागते भी हैं और सोते जागते भी हैं।
सोना जागना द्रव्य और भावकी अपेक्षा दो प्रकारसे होता है, इसमें निद्रायुक्त द्रव्यसे सोया कहा जाता है, और विरत रहित अवस्थामें भावसे सोया कहलाता है। पूर्व के सूत्रों में स्वष्नकी बात नींदकी अपेक्षासे कही गई है, विरतिकी अपेक्षासे
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जीवादि दंडकका उद्देश्य रखकर भावसे सोया और जाग्रतका कथन किया गया है। जो जीव सर्वविरतिरूप नैश्चयिक जाग्रति के विना अविरत हैं वे सोये पड़े हैं, और जो सर्वविरतिरूप जाग्रतियुक्त हैं वे भावजागरण में जाग्रत हैं, और जो.अविरतवाले
और फिर किसी अंशमें विरत हैं वे सोते जागते कहलाते हैं, ऐसा मत टीकाकार का है ,x x x ।
८-स्वप्नोंके प्रकार-भगवन् ! साधारण स्वप्न कितने प्रकारके होते हैं, ? वे स्वप्न ४२ प्रकारके हैं। c-महास्वप्नोके प्रकार-महास्वप्न कितने होते हैं ? गोतम ! महास्वान तीस प्रकारके होते हैं। (१०) सब स्वप्नोंके प्रकारभगवन् ! सब मिलकर कितने स्वप्न हैं ? गोतम ! सब ७२ स्वप्न हैं। तीर्थंकरको माता कितने स्वप्न देखती है ?
११-भगवन् ! जब तीर्थंकरके जीव गर्भ में प्रवतरित होते हैं सब तीर्थंकरकी माता कितने स्वप्न देखकर जाग्रत होती हैं ? ___ गोतम ! जब तीर्थंकरके जीव गर्भ में अवतरित होते हैं तब सीयंकरकी मातायें तीस महास्वप्नोंमें से १४ स्वान देखकर जाग्रत होती हैं वे ये हैं-हाथी १.वृषभर,सिंह३,लक्ष्मी४, फूलों की माला५.चन्द्रमा ६,सूर्य ७,ध्वजा८,कलश ६,पद्मसरोवर १०,क्षीरसमुद्र ११,देवविमान१२,रत्नोंका ढेर१३,अग्नि-शिखा १४ ।
१२-चक्रवर्तीकी माता-भगवन् ! जब चक्रवर्तीका जीव गर्भ में अवतरित होता है तब चक्रवर्तीकी मातायें कितने स्वप्न देखकर जाग्रत होती हैं ?
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३२ गौतम ! जब चक्रवर्तीका जीव गर्भ में अवतरित होता है तब चक्रवर्तीकी मातायें इन तीस महास्वप्नों में से १४ महास्वप्न तीर्थकर की माताओं की तरह ही देखकर जाग्रत होती हैं।
१३-१४-१५- इसीप्रकार वासुदेव, बलदेव और माण्डलिक राजाओंकी मातायें इन ४० महास्वप्नोंमें से क्रमशः ७-४-और १ महास्वप्न देखकर जाग जाती हैं।
छमावस्थामें ज्ञातपुत्र महावीर प्रभुने भी १० स्वप्न देखे थे-जब श्रमण भगवान महावीर देव छद्मावस्था- ज्ञानादि आत्मगुणोंकी अपूर्ण अवस्था में थे,तब आप एक बार रातके अन्तिम पहर में १० महास्वप्न देखकर जग गये थे। वे १० स्वप्न इसप्रकार हैं
१-'एक बड़े भयंकर और चमकीले रूप वाले ताड़ जैसे लम्बे पिशाचको हराया, ऐसा स्वप्न देखकर सजग हुए थे। __२-एक बड़े सफेद पाँखवाले पुस्कोकिल (नर जाति के कोयल) को देखा।
३-एक बड़े चित्रविचित्र पाँखवाले पुस्कोकिलको स्वप्न में देखा।
४-एक बड़ी सर्वरत्नमय मालाका जोडा। ५-एक बडे और सफेद गायका गोल । ६-चारों ओर से खिले फलोंका पद्म सरोवर ।
७-हजारों तरंगों और कलोलोंसे व्याप्त एक महासागरको अपने दोनों हाथों से तैर कर पार करना ।
८-तेज से चमचमाट करते सूर्यको देखना।
६-एक बड़े मनुष्योत्तर पर्वतको नील वैडूर्यवर्ण जैसे अपने प्रान्तों द्वारा सब ओर से आवेष्टित और परिवेष्टित देखना।
१०-एक बड़े मन्दर (मेरु)पर्वतकी मन्दर चूलिकाके ऊपर अपनेको सिंहासनस्थ देखकर जगना ।
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१७ – १ – इन वश महास्वप्नोंका फल - श्रमरणभगवान् महावीरने स्वप्न में जिस भयकर और तेजस्वी रूपवाले ताड जैसे लम्बे पिशाच को हराया था ( उसके फलस्वरूप ) श्रमरण भगवान् महावीर ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट किया ।
भगवान् महावीर शुक्लध्यानको पाकर
२- श्रमरण
विचरे ।
३ – विचित्र स्वसमय और परसमयके ( नाना विचार युक्त) द्वादशांग गरिपिटकका वर्णन किया, प्रतिपादन किया, दर्शाया, निदर्शन कराया, उपदर्शन कराया, ( आचरण शास्त्रसे दृष्टिवाद तक )
४ - ज्ञातपुत्र महावीरने दो प्रकारका धर्म (गृहस्थधर्मं मौर मुनिधर्म ) कहा ।
५ – साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध संघ कायम किया ।
६ – भुवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक मोर वैमानिक देवोंको प्रतिबोध दिया ।
७ – इस तरुण तपस्वी श्रमरणने श्रनादि अनन्त संसाररूप वनको पार किया ।
८- भगवान् महावीरको अनन्त, अनुत्तर, निरावरण, निर्व्याघात, समग्र, श्रौर परिपूर्ण केवलज्ञान- केवलदर्शन प्राप्त हुआ ।
६ - भगवान् की देवलोक, मनुष्यलोक और प्रसुरलोक में 'यह श्रमण भगवान् महावीर हैं,' ऐसी उदारकीर्ति, स्तुति, सन्मान और यश व्याप्त हुआ ।
१० - भगवान्ने केवली होकर देव मनुष्य और असुरोंकी परिषद् में धर्मका यथार्थ स्वरूप कहा ।
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. १८--यदि कोई स्त्री या पुरुष स्वप्नके अन्तमें एक बड़ी प्रश्वपंक्ति, गजपंक्ति, या वृषभपंक्तिको देखे और उसपर चढ़े, ऊपर चढ़ गया माने और झट जाग पड़े तो उसे यह फल होगा कि वह उसी जन्ममें मोक्ष प्राप्त करे और सब दुःखोंका अन्त करे।
१६-...-..."समुद्रके दोनों ओर अड़ा हुआ तथा पूर्व और पच्छिमकी ओर लम्बा एक बड़ा सा दामन-रस्सा देखे, और उसे लपेटे या लपेटता हुआ माने तो वह · · 'मोक्ष... . । * २०-......दोनों ओर से लोकांतको स्पर्शित तथा पूर्व
और पच्छिम में एक लंबी रज्जु देखकर उसे काट डाले तो वह मोक्ष.......। . ... २१–......"एक बडेसे काले सूत या सफेद सूतको सुलझावे तो.... मोक्ष.....।
२२-... "एक बडेसे लोह, तांबा, रांग, सीसेके ढेर पर चढे तों-...मोक्ष.........।
२३-...-.."चांदी, सोना, रत्न और वज्रके ढेर पर चढे...."मोक्ष......।
२४-........ घासके ढेरको तेजोनिसर्ग नामक अग्निसे उसे भस्म करके बखेरे... - मोक्ष......। . २५-...शरस्तंभ, वीरणस्तंभको देखे और उसे उखाड़ डाले....."मोक्ष' ।
२६-दूध, दही, घी और मधुके घड़ेको देखकर उठावे... " मोक्ष.......। ____२७-... मदिरा, सौवीर, तेल, चर्बीके घड़ेको देखकर
उसे फोड़ डाले.... मोक्ष. ...। - २८---खिले फूलोंसे समृद्ध पद्मसरोवरको देखे और उसमें प्रवेश करे.. • मोक्ष......।
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२६-... तरंग और किलोलोंसे व्याप्त एक बड़े समुद्रको देखकर उसे पार करे..... मोक्ष ...।
३०-...-- रत्नजडित एक बडे भवनको देखकर उसमें प्रवेश करे- "मोक्ष ......। ____३१-... सब प्रकारके रत्नोंसे जड़े हुए एक बड़े चमकीले विमानको देखकर उसमें बैठे और प्रवास करे..... मोक्ष ......।
इन शास्त्रीय और सौत्रिक अवतरणोंसे तो यह स्पष्ट समाधान मिलता है कि दर्शक यदि इस भाँतिके स्वप्न देखकर जग पड़े तो यथासमय उसी जन्ममें मोक्ष पा सकता है। भगवान् महावीर के १० स्वप्नोंका फल उन्हें भी मिला और जानपदीयोंको भी। इस से जान पड़ता है कि नाना प्रकारकी विभूतियोंमें से स्वप्न भी बड़े महत्त्वकी विभूति और अलौकिक वस्तु है, पर यदि ये स्वप्न शुभाशुभ कर्मकी प्रेरणामोंसे पाते हों और उनका फल भी तद्नुसार ही मिलता हो तो स्वप्न कुछ अधिक महात्म्य विधायक वस्तु नहीं ठहरता । कुछ भी हो इन बातोंको कोई पूरा
और सयाना ही समझ सकता है अधूरे और बेसमझका यह विषय नहीं है।
स्वप्न और जैनशास्त्र-जैन सूत्रोंमें कहा है कि जिस माताको १४ महास्वप्न स्पष्ट आते हैं, उसकी कुक्षिसे तीर्थंकरदेव उत्पन्न होते हैं। ये ही स्वप्न जिन्हें अस्पष्ट पाते हैं उनकी माताके पदरसे चक्रवर्ती होता है। वे स्वप्न ये हैं-हाथी, वृषभ, "सिंह, लक्ष्मीदेवता, पचरंगे फूलोंकी माला, चन्द्रमा, 'सूर्य, 'ध्वजा, कलश, 1 पद्मसरोवर, 11क्षीरसमुद्र, 1 देवविमान, 1"रत्नोंकी राशि, और धुएँसे रहित 1 *अग्निशिखा।
तब श्रीजिनसेनाचार्य (दिगम्बरीय)महापुराणमें मरुदेवी को १६ स्वप्न आये बताते हैं । इन १४ स्वप्नोंसे अलग दो मछलियाँ, सिंहासन और नागेंद्र भवन तीन स्वप्न निराले लिखे हैं ।
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इसमें ध्वजाका स्वप्न नहीं रक्खा है। प्रागे यह भी कहा है कि श्रीमरुदेवीने स्वप्न देखकर श्रीनाभिराजाके पास आकर स्वप्नों का फल पूछा तो उन्होंने अपने अवधिज्ञानसे उनका फल इस प्रकार बतलाया। उनके फलोंका क्रम इस प्रकार है ।
(१) सफेद-ऐरावत हाथी-पुत्रप्राप्ति । (२) बैल-लोकमें ज्येष्ठ कहलायँगे। (३) सिंह-अनन्तबल युक्त । (४) पचरंगी फूलमालाएं समीचीनधर्मके तीर्थ ( आम्नाय )
चलायगा। (५) लक्ष्मी-सुमेरु पर्वत के मस्तकपर देवों द्वारा अभिषिक्त
किया जायगा। (६) पूर्ण चन्द्रमा-सब लोगों को परमानन्द देगा। (७) सूर्य-देदीप्यमान प्रभाका धारक होगा। (८) कलश-अनेक निधियां मिलेंगी। (e) मछली का जोड़ा-सुख होगा। (१०) सरोवर-अनेक लक्षणों से शोभित होगा। (११) समुद्र-केवली होगा। (१२) सिंहासन--जगत्का गुरु होकर साम्राज्य करेगा। (१३) देवविमान-स्वर्ग से आयेगा। (१४) नागेन्द्र भवन-अवधिज्ञानरूपी लोचन सहित होगा। (१५) रत्नोंकी राशि-गुणों की खान होगा। (१६) निर्धू मअग्नि-कर्म रूपी ईंधनका जलाने वाला होगा।
श्री नाभिराजा द्वारा ये वचन सुनकर मरुदेवी का शरीर रोमांचित हो गया और उसे बड़ी प्रसन्नता हुई।
महापुराण-१२वां पर्व, पृ० २५६ से २६४ तक भरत को प्राए हुए १६ स्वप्न-महापुराण (उत्तरपुराण) के २१वें पर्वके ३१७ पृष्ठ से ३३० तक यह भी वर्णन है कि भरत
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चक्रवर्तीको भी एक बार रातके पिछले पहर में १६ स्वत पाए थे। वे इस प्रेकार हैं
१ सिंह, २ सिंह का बच्चा, ३ हायी के लबादेसे लदकर लचका हुअा घोड़ा, ४ सूखे पत्ते खाने वाले बकरे, ५ हाथी पर बढ़ा बानर, ६ उल्लूको सताने वाला कौवा, ७ नाचते भूत, ८ बीचमें सूखा हुआ, और किनारों पर भरे पानीका तालाब, ६ धूलसे भरे हुए रत्नों का ढेर, १० नैवेद्य खानेवाला कुत्ता, ११ जवान बैल, १२ मण्डलसे युक्त चन्द्रमा, १३ आपसमें दो मिले हुए बैल, १४ मेघोंसे ढंका हुआ सूर्य, १५ छाया रहित सूखा हुआ वृक्ष, १६ पुराने पत्तों का समूह (ढेर)।
श्रीभरतके पूछा जानेपर श्रीऋषभदेव भगवान द्वारा स्वप्नोंका फल बताना- भगवान्ने स्वप्नोंके दो भेद कहे हैं । स्वस्थ पौर अस्वस्थ अवस्थामें दिखने वाले । धातुओंकी समानता रहते हुए दिखनेवाले स्वप्न स्वस्थ हैं, और धातुओं की विषमता न्यूनाधिकता रहते हुए जो स्वप्न पाते हैं वे अस्वस्थ अवस्थाके स्वप्न होते हैं । स्वस्थ अवस्था के स्वप्न सच्चे होते हैं। मोर दूसरे प्रकार के निरर्थक !
स्वप्नोंके और भी दो प्रकार हैं, एक दोष (वायु-पित्त-कफ) से होने वाले और दूसरे देवसे आनेवाले। दोषों के प्रकोपसे आने वाले स्वप्न झूठे और देव(अनुष्ठान)से दिखनेवाले सच्चे । भगवान्ने उन १६ स्वप्नों के फल ये कहे हैं--
(१) पहाड़ पर चढे २३ सिंह-महावीरको छोड़कर २३ तीर्थकरोंके समयमें दुष्टनय पैदा न होंगे।
(२) सिंह के बच्चेके पीछे चलने वाले हरिणोंका वर्ग-महावीर के तीर्थ में परिग्रहधारी कुलिंगी होंगे।
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(३) हाथोके पालान (बोझ) को उठानेवाला घोडा-पंचम काल के साधु तप के सारे गुणों को धारण न कर सकेंगे । मूल गुण
और उत्तरगुण में मालसी रहेंगे। कोई मूल गुणको भंग कर देंगे।
(४) सूखे पत्ते खाने वाल बकरे-आदमी सदाचारको छोड़कर दुराचारी हो जायेंगे।
(५) हाथी पर चढ़े बंदर-क्षत्रियवंश नष्ट हो जायेंगे । नीच कुलवाले पृथ्वीका पालन करेंगे।
(६) कव्वों द्वारा उल्लूको त्रास-मनुष्य धर्मकी इच्छासे मुनिओंको छोड़कर अन्यमतके साधुअोंके समीप जायंगे। .
(७) नाचते हुए भूत-प्रजाके लोग नामकर्म आदि के कारणों से व्यन्तरोंको देव मानकर उनकी उपासना करेंगे। ... (८) बीचसे सूखा हुमा तालाब-चारों ओर से पानी भरा
और बीच में सूखे तालोबके देखनेका फल-धर्म आर्यखण्ड से हटकर प्रत्यन्तवासी म्लेच्छखंडोंमें चला जायगा।
(E) धूलमट्टोसे सने हुए रत्नोंकी ढेरी-पंचम कालमें ऋद्धिधारी उत्तम मुनि न होंगे।
(१०) कुत्तोंको नैवेद्य खाते देखना-व्रतरहित ब्राह्मण, गुणीपात्रोंके समान सत्कार-सन्मान पायँगे।
(११) डकराते हुए जवान बैलका विहार-लोग तरुण अवस्था में ही मुनिपदमें ठहरेंगे, अन्य अवस्थामें नहीं।
(१२) परिमण्डलमें घिरा हुमा चन्द्रमा-पंचमकाल में मुनियों को अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान न होगा।
(१३) प्रापसमें मिलकर जाते हुए दो बैल-पंचमकालमें मुनिजन साथ-साथ रहेंगे । अकेले विहार करनेवाले न होंगे।
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(१४) बादलोंमें छुपा हुमा सूर्य-पंचमकालमें सूर्यके समान केवलज्ञान न होगा।
(१५) सूखा वृक्ष-स्त्री-पुरुष चरित्रभ्रष्ट हो जायेंगे।
(१६) पुराने पत्तोंका देखना-महा मौषधियोंका रस नष्ट हो जायगा।
भरत ! इनस्वप्नोंको तू दूरविपाकी अर्थात् बहुत समय के बाद फल देनेवाला समझ ! इसलिए इन स्वप्नोंका इस वर्तमान समयका कोई दोष न होगा। इनका फल पंचमकालमें होगा। भरत चक्रवर्तीने अयोध्या में जाकर इन खोटे स्वप्नोंसे होनेवाले अनिष्टकी शान्तिके लिए कुछ दानपुण्य करवाया। ___ इन स्वप्नोंका फल भरत को न होकर कलियुगीन लोगोंको हुमा और भगवान्ने स्वयं यह भी कहा कि ये दूरविपाकी फल देंगे। वैसे इनका कोई फल तुझे न होगा। वैसे भी स्पष्ट है, इसका फल देखनेवाले को कुछ भी न हुमा । अतः स्वविपाकी न होकर पर विपाकी स्वप्न भी हो सकते हैं। .. ..'
[सींघी जैनग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित ११ वीं शती के श्रीदुर्गदेव प्राचार्य कृत प्राकृत ग्रन्थ में उनके अपने मतसे स्वप्न द्वारा मरणका समाधान इसप्रकार किया जाता है ] ।
वाय-कफ-पित्तरहिमो. समधाऊ जो जवेइ इयमंतं।
सुत्तो निसाए पेच्छइ, सुमिणाई तत्थ पभरणेमि १०८ स० छा०-वातकफपित्तरहितः समधातुर्यो जपतीमं मंत्रम् ।।
सुप्तो निशायां पश्यति, स्वप्नांस्तान् प्रभणामि ।।१०।। भावार्थ-जिसके शरीरकी सब धातुएँ सम हैं, वात, पित्त और कफका प्रकोप नहीं है, यदि वह आरोग्य व्यक्ति यह मंत्र पढे और सोते हये रात्रि में जो स्वप्न देखता है उस पर विचार करता हूं ॥१०८।। अंगोपांगोंकी शुद्धि पूर्वक सफेद कपड़े पहनकर
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भों ह्रीं परहसवणे क्ष्मीं स्वाहा, यह मंत्र जपकर सफेद कपड़े में ही सो जाय ॥ १०६ ।। मौन रहकर उपवास करे, उसदिन पापारम्भ सेवन न करे । विकथा और क्रोध, मान, माया तथा लोभकी प्रवृत्ति को अन्तर से हटाकर स्थिर चित्तसे प्रसन जमाकर बैठे । १०००० जप एक चित्त होकर करे । तब उसे स्वप्न दो प्रकार से होते हैं. 'देवका कथन' और साहजिक स्वप्न । परन्तु जहाँ मन्त्र जाप या अनुष्ठान किया जाता है वही देवता वरदान देता है, और वह जैसा भावी बताता है वैसा ही ठीक उतरता है ।११२ जो मंत्रहीन स्वप्न निर्भ्रान्ति अवस्था में देखता है, जबकि साधक निश्चिन्त है, उसके शरीर की सब धातुएं अपने-अपने स्थानपर ठीक तरह काम करती रही हैं । उस समय आया हुआ स्वप्न 'सहज' कहलाता है । इसरीतिसे स्वप्न दो कारण से आते हैं । पहले पहर में देखे गये स्वप्नका फल दश वर्ष में होता है दूसरे पहर में देखे गये स्वप्न का फल पांच वर्ष में होता है । तीसरे पहर में देखेगये स्वग्नका फल छः मास में होता है । निशान्त की दो घडीरात शेष रहने पर देखे गये स्वप्न का फल दश दिन में, और सूर्योदय होते-होते देखे गये स्वप्नका फल तत्काल होता है । सोते हुये रातमें जो आदमी अपने पूर्वजकी प्राकृति हाथ, पैर, घुटने, मस्तक, जंघा, कन्धे, और पेट आदिको आकृति रहित देखे तो उसका फल क्रमश: इस तरह होता है— हाथ न हों तो चार मास जीवित रहे, पैर न हों तो तीनवर्ष, घुटने न हों तो एक वर्ष, शिर न हो तो पांच दिन, जंघा न हो तो दो वर्ष, कंधे न हों तो एक महीना, पेट न हो तो आठ मास तक जीवित रहता है । ११६ छत्र न हो तो राजाका मरण कहा जाता है । परिवार न हो तो परिवारकी अल्पमृत्युकी सूचना समझी जाती है । यदि स्वप्न में कव्वे और
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गि उसे खा रहे हैं या उन्होंने उसे अपने घेरे में ले लिया है, अथवा अपनेको वमन करता हुपा देखे तो वह दो महीने तक जीवित रहता है । भेसा, ऊंट, और गधे पर चढकर दक्खन में जा रहा है, या तेल, घी से सना हुआ शरीर देखे तो वह एक मास जीवित रहता है ।।१२३॥ सूर्य और चन्द्रका ग्रहण, या वे धरती पर गिरे जा रहे हैं, ऐसा देखे तो महीनेसे कुछ अधिक दिन जीवित रहता है। लाखके रसको हाथ पैर में लगाता है या उससे हाथ पैर धोता है या उस पर फिसल पडता है तो सात दिन जीवित रहता है। काले रंगका अादमी उसे घर में से खेंचकर बाहर निकालकर ले जाता है, वह एक मास जीवित रहता है ।।१२६॥ मानो शस्त्र द्वारा काटा जा रहा है, या उससे कटकर मर गया है, तो वह बीस दिन जीवित रहता है । लालरंगके फूलोंको अपने पैरोंसे बांध कर स्वप्नमें नाचता है तो उसे कालकी दिशा में एक मासके पश्चात् जाना पड़ता है। यदि स्वप्नमें खून, चर्बी, राध, चमडा, घी, तेलसे भरे गढे में डूबा है ऐसा देखने पर वह एक मास पर्यन्त जीवित रहता है ।।१२६॥ बुद्ध-सम्प्रदायके क्षणिक-वादको दृष्टिसे स्वप्नका वर्णन
भन्ते नागसेन इमम्मि लोके नरनारीयो सुपिण पस्सन्ति कल्याणम्पि, पापकम्पि, दिट्ठपुब्बम्पि अदिट्ठपुब्बम्पि, कटपुब्बम्पि, अकटपुब्बम्पि, खेमम्पि, सभयम्पि, दूरेपि, संन्तिके पि, बहुविधानि पि, अनेकवएणसहस्सारिण दिस्सन्ति । किञ्च एतं सुपिणं नाम को च एत पस्सतीति ।-निमित्तमेतं महाराज सुपिणं नाम यं चित्तस्स आपाथमुपगच्छंति च य इमे महाराज सुपिणं पस्सन्ति वातिको सुपिणं पस्सति, पित्तिको सुपिण पस्सति, सेम्हिको सुपिण पस्सति, देवतूपसंहारतो सुपिण पस्सति,
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समुदाचिएणतो सुपिणं पस्सति, पुब्बनिमित्ततो सुपिणं पस्सति तत्र महाराज यं पुब्बनिमित्ततो सुपिणं पस्सति तं येव सच्चं अवसेसं मिच्छाति । __ भन्ते नागसेन ! यो पुब्बनिमित्ततो सुपिणं पस्सति, किं तस्स चित्तं सयं गत्वा तं निमित्तं विचिनाति तं वा निमित्त चित्तस्स प्रापाथमुपागच्छति, अञ्यो वा आगत्वा तस्स प्रारोचेतीति ।न महाराज तस्स चित्तं सयं गत्वा तं निमित्तं विचिणाति, नापि अञ्यों कोचि आगत्वा तस्स प्रारोचेति, अथ रवो तं येव निमित्त चित्तस्स आपाथमुपागच्छति यथा महाराज प्राडासो न सयं कुहिञ्चि गत्वा छायं विचिनाति, नापि प्रज्यो कोचि छायं प्रानेत्वा पाडास आरोपेति, अथ रवो महाराज न तस्स चित्तं सयं गत्वा त निमित्तं विचिनाति, नापि अञ्यो कोचि आगंत्वा पारोचेति, अथ रवो यतो कुताचि निमित्तं प्रागत्वा चित्तस्स आपाथमुपागच्छतीति ।
भन्ते नागसेन, य तं चितं सुपिणं पस्सति, अपि नु तं चित्तं जानातिः एवं नाम विपाको भविस्सति खेमं वा भयं वाति ।नहि महाराज तं चित्तं जानातिः एव विपाको भविस्सति खमं वा भयं वा ति; निमित्त पन उप्पन्न अञ्य्येसं कथेति, ततो ते प्रत्थं कथेन्तीति । इद्य भन्ते नागसेन कारणं दस्सेहीति । यथा महाराज सरीरे तिलका पिलका ददनि उट्ठहन्ति लाभाय वा अलाभाय वा यसाय वा अयसाय वा निन्दाय वा पसंसाय वा दुक्खाय वा, अपि नु ता महाराज तिलका (पिलका) जानित्वा उप्पज्जन्तिः इमं नाम मयं अत्थं निप्फादेस्सामाति ।-नहि भन्ते, यादिसे ता अोकासे पिलका संभवन्ति, तत्थ ता पिलका दिखा नेमित्तका ब्याकरोन्ति; एवं नाम विपाको भविस्सतीति । एवमेव रवो महाराज यन्तं चित्तं सुपिणं पस्सति न तं चित्त
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जानाति एवं नाम विपाको भविस्सति खेमं वा भयं वाति; निमित्ते पन उप्पन्ने अञ्येसं कथेति, ततो ते अत्थं कहेन्तीति ।
(PP. 297-301)
मिलिन्दपण्हो "भन्ते नागसेन ! सभी स्त्री-पुरुष स्वप्न देखते हैं, अच्छे भी और बुरे भी, पहलेका देखा हुअा भी और पहलेका नहीं देखा हुआ भी, पहलेका किया हुआ भी और पहलेका नहीं किया हुना भी, शान्ति देने वाला भी और घबड़ा देने वाला भी, दूर का भी और निकट का भी, और भी अनेक प्रकारके हजारों तरहके । ये स्वप्न हैं क्या चीज ? कौन इनको देखा करता है ?
महाराज ! स्वप्न चित्तके सामने आनेवाला निमित्त' मात्र है। महाराज ! छ प्रकारके स्वप्न पाते हैं :-(१) वायु भरजाने से स्वप्न आता है. (२) पित्तके प्रकोपसे स्वप्न आता है, (३) कफ बढ़ जानेसे स्वप्न पाता है, (४) देवताओंके प्रभावमें प्राकर कितने स्वप्न पाते हैं, (५) बार-बार किसी कामको करते रहनेसे उसका स्वप्न आता है, (६) भविष्यमें होनेवाली बातोंका भी कभी-कभी स्वप्न पाता है । महाराज ! इन छः में जो अन्तिम भविष्यमें होनेवाली बातोंका स्वप्न पाता है वही सच्चा होता है बाकी दूसरे झूठ ।
भन्ते नागसेन ! भविष्य में होनेवाली बातोंका भला कैसे स्वप्न आता है ? क्या उसका चित्त बाहर जाकर भविष्यमें होनेवाली घटनाओंकी खबर ले आता है ? या भविष्यमें होने
निमित्त-रायसडेविड महोदय इसका अनुवाद 'Suggestion' करते हैं । यह आधुनिक मनोविज्ञानके बिल्कुल ही अनुकूल मालूम होता है ।
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बाली बात स्वयं उसके चित्तमें चली माती हैं ? या कोई दूसरा आकर उसे बता जाता है ?
महाराज ! न तो उसका चित्त बाहर जाकर भविष्य में होनेवाली घटनाओंकी खबर ले आता है, और न कोई दूसरा पाकर उसे बता जाता है । भविष्यमें होनेवाली बातें स्वयं उस के चित्तमें चली आती हैं।
दर्पण-महाराज ! दर्पण स्वयं बाहरके बिबको खोजकर अपने में नहीं लेता; और न कोई दूसरा दर्पणमें बिंब डाल देता है किन्तु, बाहर की चीजोंकी छाया स्वयं जाकर दर्पण में प्रतिबिंबित बनाती है। महाराज ! इसी तरह न तो उसका चित्त बाहर जाकर भविष्यमें होनेवाली घटनाओंकी खबर ले पाता है, और न कोई दूसरा आकर उसे बता जाता है। भविष्यमें होनेवाली बातें स्वयं ही जहां कहीं से पाकर उसके चित्त में प्रतिबिंबित हो जाती हैं। ___भन्ते नागसेन ! जो चित्त स्वप्न देखता है, क्या वह जानता है कि इसका फल कैसा होगा, शान्तिकर या भयप्रद ? ____ महाराज ! वह नहीं जानता कि इसका फल कैसा होगा? शान्तिकर या भयप्रद । कुछ ऐसा वैसा स्वप्न देखकर वह दूसरों को बताता है । वे उसका अर्थ लगाते हैं।
भन्ते नागसेन ! बहुत अच्छा, कृपया एक उदाहरण देकर समझा तो सही।
महाराज ! मनुष्य के शरीरमें तिल, फुसी, या दाद हो जाता है उसके लाभ के लिए या घाटे के लिए, नामके लिए या बदनामीके लिए, तारीफके लिए या शिकायत के लिए, सुख के लिए, या दुखके लिए होता है महाराज ! तो क्या वे दाद, फुसी
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पा तिलवा जानकर उठते हैं कि मैं ऐसा फल निकालू गा ? - नहीं भन्ते ! बल्कि ज्योतिषी लोग ही फुन्सी उठने के स्थान के अनुसार देख भाल कर बताते हैं इसका ऐसा-ऐसा फल होगा।
महाराज ! इसी तरह, जो चित्त स्वप्न देखता है वह नहीं जानता है कि इसका फल कैसा होगा-शान्तिकर या भयप्रद ? कुछ ऐसा वैसा स्वप्न देखकर वह दूसरों को बताता है । वे उसका अर्थ लगाते हैं। ।
भन्ते नागसेन ! जो स्वप्न देखता है, वह सोते हुए देखता है या जागते हुए?
महाराज ! जो स्वप्न देखता है वह तो सोते हुए देखता है पौर न जागते हुए। किन्तु गाढ नींदके हलका हो जाने पर जो एक खुमारी की सी अवस्था होती है उसी में स्वप्न आते हैं। महाराज ! घोर नींद पड़ जाने पर चित्त विस्मृत (भवङ्ग गत) हो जाता है, विस्मृत चित्त काम नहीं करता, और तब उसे सुख दुखका पता भी नहीं होता । जब चित्त कुछ नहीं जानता है तो उसे स्वप्न भी नहीं पाते । चित्तके काम करने ही पर स्वप्न पाते हैं। ___ महाराज ! काले अंधेरेमें स्वच्छ दर्पण पर भी परछाँही नहीं पड़ती। महाराज ! वैसे ही, गाढ़ नींदमें चित्तके विस्मृत हो जानेपर शरीर बने रहने पर भी चित्त काम नहीं करता; जब चित्त काम ही नहीं करता तो स्वप्न भी नहीं पाते। महाराज ! जैसा दर्पण है वैसो शरीरको समझना चाहिए; जैसा प्रकाश है वैसा चित्त को समझना चाहिए।
महाराज ! खूब कुहरा छा जानेपर सूरज की चमक कुछ काम नहीं करती, सूरजकी किरणें दब जाती हैं, सूरज की किरणें दब जाने पर रोशनी ही नहीं होती। महाराज ! इसी
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तरह, गाढ़ी नींदमें चित्त विस्मृत हो जाने से काम नहीं करता; चित्तके काम नहीं करने से स्वप्न भी नहीं पाते । महाराज ! जैसा सूरज है वैसा शरीरको समझना चाहिए; जैसा कुहरा है वैसा गाढी नींदको समझना चाहिए; जैसी सूरज की किरणें हैं वैसा चित्त को समझना चाहिये।
महाराज ! दो अवस्थाओं में शरीरके बने रहने पर भी चित्त रुक जाता है :-(१) गाढी नींदमें चित्तके विस्मृत हो जाने (भवङ्ग गत) से शरीरके बने रहने पर भी चित्त बन्द हो जाता है। (२) निरोध-अवस्थामें शरीर के बने रहने पर भी चित्त बंद हो जाता है। . महाराज ! जाग्रत अवस्थामें चित्त चंचल खुला हुआ, प्रगट
और स्वच्छन्द होता है। इस अवस्थामें कोई निमित्त नहीं पाता। ..महाराज ! जैसे अपनेको छिपाकर रखने की इच्छा करने बाला पुरुष किसी खुले स्थानमें सबके सामने चुपचाप बैठकर दूसरे पुरुष से नजर बचाकर रहना चाहता है। महाराज ! इसी तरह, जागते हुये चित्त में दिव्य अर्थ नहीं पाते । इसीलिए जागता पुरुष स्वप्न नहीं देखता।
महाराज ! जिस प्रकार बुरी जीविकावाले, दुराचारी, पाप मित्र, शील--भ्रष्ट, कायर और उत्साहरहित भिक्षुके पास ज्ञानी लोगोंके गुण नहीं आते उसी प्रकार जागते हुए के पास दिव्य अर्थ नहीं आते । इसीलिये जागता हुआ पुरुष स्वप्न नहीं देखता।
भन्ते नागसेन ! क्या गाढी नींद के आदि, मध्य और अन्त होते हैं ?
हां महाराज ! गाढी नींदका आदि होता है, मध्य होता है, और अन्त भी होता है।
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उसका आदि क्या है, मध्य क्या है और अन्त क्या है ?
महाराज! शरीर थका मांदा और टूटता हुआ सा मालूम होता है, कमजोरी मालूम होने लगती है, शरीर मन्द और ढीला पड जाता है-यही उसका आदि है। महाराज ! बन्दरकी नींदकी तरह प्राधा जागता है और प्राधा सोता है-यह उसका मध्य है। महाराज ! अपनेको बिल्कुल भूल जाता है, विस्मृत हो जाता है (भवङ्गगत)-यह अन्त है। महाराज ! इसमें मो मध्यकी अवस्था है उसी में स्वप्न आते हैं।
महाराज ! कोई संयम-शील, अपनेको वशमें रखनेवाला, शान्तचित्त वाला, धर्मधीर तथा दृढविचारी लोगोंके हल्ले गुल्लेसे बहुत दूर जंगल में जाकर गहरी बातोंका अनुसन्धान करे। वह वहाँ सो नहीं जावे, वह वहाँ एक मनसे उसी गहरी समस्याको सुलझाने में लगा रहे । महाराज! इसीतरह सोने और जागने की बीच की अवस्था में पडा बन्दरकी नींद लेता हुअा पुरुष स्वप्न देखता है। महाराज ! जो लोगोंका हल्ला गुल्ला है वैसे ही जाग्रत अवस्थाको समझना चाहिये। जो एकान्त जंगल है वैसे ही बन्दरकी नींदको समझना चाहिये । जो हल्ले गुल्ले से हट, नींदको रोक, बीच की अवस्थामें रहकर गहरी बातका मनन करना है, वैसी ही बन्दरकी नींद वाली हालतमें स्वप्न माते हैं। . [संवेगरंगशाला ग्रन्थके प्रायुज्ञानाधिकारमें ११ कारण शेष प्रायुका ज्ञान प्राप्त करनेके बताये हैं, उस में आठवाँ द्वार (प्रकरण) स्वप्नके द्वारा प्रायुका माप प्राप्त करनेके बारे में लिखा है, उसके कुछ अवतरण ।
तिल-मसिलित्तअंगों- विलुलियकेसो य विसएगो सुविणे। खर-करहनो जमदिसीगामी जइ तो कि लहु मरणं १२७
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तेल और काले रंगसे शरीर लिपा हो, केश बिखरे हुये देखे, गधे और ऊँट पर चढकर दक्षिण दिशामें अपनेको स्वप्नमें जाता हुआ देखे वह मरण सूचक जानना चाहिये । लाल कपडे, पहने हुए, किसी नंगे व्यक्ति पर चढकर जानेका स्वप्न फल अवश्य मरणफल दायक है ।।१२८।। नंगा हो और घी को चुपडे हये हो तो मरण शरण जानना चाहिये ॥१६५।। लाल पुष्प धारण किये, लाल कपडे, पहने हुये कुछ स्त्रियां हँसती हुई दिखाई पडें तो रक्तपित्तके दोषसे मरण निष्पन्न होता है ॥१३७॥ चाण्डालसे स्नेह करनेका फल प्रमेह से मरण उत्पन्न करनेका प्रसंग आता है। यदि पानी में डूबनेका स्वप्न आवे तो राक्षस दोषसे मरता है। उन्मादसे भटक कर स्वप्नमें मादकपेयका पान करे तो उन्माद दोषसे जीवन-लीला समाप्त करता है ॥१३९।। चांद-सूरज के पतनसे आँख दुःखकर मरे। चान्द सूरज का ग्रहण देखे तो मरण सूचक जानना चाहिये ॥१४० स्वप्न में यदि कोई नंगा या मस्तक मूडा हो, चाण्डालों के घरों की ओर या दक्षिण दिशामें जाता हो ॥१४३।। गढे में पड़ गया हो, स्मशानमें सोया पडा हो, ठोकर खाई हो, खार या धूल में लोटता हो, पानी या कीचडमें फंसगया हो, अपहरण हुअा हो, शोक का वेग बढा हो, लाल फूलोंकी माला पहने लाल विलेपन किये हुए हो, सजे हुये विमानमें गाना-बजाना-नाच और कूदफांद करता हो ॥१४७॥ पकवान भक्षण, दस्त, लोहका धंधा इन सब स्वप्नोंका देखनेवाला रोगी मरण शरण होता है। ॥१४६।। इन परम दारुण स्वप्नोंको देखनेवाला रोगी का बचना असम्भव है ।।१६०॥
रातके पहले पहरमें देखे गये स्वगनका फल एक वर्ष में मिलता है, दूसरे पहरका स्वप्नका फल तीन मासमें फल देता
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। तीसरे पहर में आया हुप्रा स्वप्न, दो महीने में फलता है, रात के चौथे पहर में देखा गया स्वप्न एक मासमें फलता है । अन्तकी दो घडी शेष रहे देखा गया स्वप्न दश या सात दिनमें फलप्रद होता है ॥ १६६ ॥
स्वप्नं सुत्वा यदि पश्यासि पापं मृगः सृति यति धावादजुष्टाम् । परिक्षवाच्छकुनेः पापवादाद्यं मरिणर्वरणा वारयिष्यते ॥६॥ अरात्यास्त्वा निऋ त्या अभिचारादथो भयात् । मृत्योरोजीयसो वधाद् वरणो वारयिष्यते । ( ७१०, ३, ६, ७, P.१४६)
[ अथर्ववेद ] संखपडहसद्दो य ।
पसत्थाइं ।। १०६ ।। मोयगा दहि । सिद्धमत्थं वियागरे ॥ ११०॥ (प्रोघ नियुक्ति भद्रबाहु श्राचार्य कृत) 'कालज्ञान' नामक अप्रकाशित
नन्दीतूरं पुराणस्स दंसरणं भिंगारछत्तचामरघयप्पडागा समरण संजयं दतं सुमरणं मी घटं पडागं च
[ शम्भुनाथ कृत पुस्तकके मत से स्वप्न विचार]
इष्टफल और अनिष्टफल देने वाले दो प्रकारके स्वप्न होते हैं
सामान्यतः इष्टफल कारक - नदी और समुद्रको पार करना, प्राकाश गमन करना, या उडना, ग्रह, नक्षत्र, सूर्य और चंद्रके मण्डलका देखना, किसी ऊँचे मकान पर चढना, महलकी अटारी तक पहुंचना, स्वप्न में मदिरा पीना, चर्बी और प्रामिष भक्षण करना, रत्नोंसे जड़े हुए आभूषण पहनना, ब्राह्मण, राजा प्रौर स्त्रीको अच्छे प्राभरण पहने देखना, बैल - हाथी - पहाड़ या खिरनी के वृक्षपर चढ़ना दर्पण - श्रामिष और मालाका प्राप्त करना, सफेद कपड़े और फूलोंका पहनना, इत्यादि
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स्वप्नोंको देखनेवाला धनलाभ और रोगसे मुक्ति पाता है।
प्रनिष्ट फल दायक स्वप्न-केशु, वल्मीक, या फरहदके वृक्ष पर चढ़ना, तेल-कपास, तिलकीखल, लोह आदिका पाना, विपद् कारक है । व्याह करना, लाल कपड़े और लाल माला पहनना, स्रोतको सुखाना, पका मांस खानो आदि अशुभ है। चाँद और सूर्य का निस्तेज देखना, तारे टूटना, मरण या शोक सूचक है। प्रशोक, कनेर और ढाक-टेशू को फूलोंसे समृद्ध-लदा हुअा दखना शोक सूचक है। नौका पर चढना प्रवास का निमित्त है। लाल कपड़े और लाल गंध लेपन पहने हए स्त्री का आलिंगन मृत्युफल देता है । घी और तेल स्वप्नमें मसलने से रोग, और बाल तथा दान्त गिरनेसे धन नाश और पुत्रशोकका कारण बनता है। गधा, ऊँट या भंसागाडी पर बैठना या उनपर चढनेसे मृत्यू प्रोर कान-नाक हाथ कटने, कीचड में फंसने, तेल मर्दन, विष भक्षण, प्रेतका प्रालिंगन, नंगे आदमी पर चढने और काले प्रादमीके देखनेसे जीवनलीला समाप्तिका परिणाम होता है ।
जाग्रत अवस्थाके अनिष्ट-भों, नाक, आकाश, गंगा, अपने नाकका अग्रभाग, ध्र व, अरुन्धती, चन्द्र चिन्ह, प्रादि आयुहीन व्यक्ति नहीं देख पाता। कीचड या धूलमें रक्खे गये पैरके चिन्ह के कटे-कटे टुकड़े दिखते हों, न्हाने पर पहले मुह सूखता हो, शरीर गीला रहता हो, वृक्ष सुनहले दिखते हों, अपने पैरोंको न देखता हो, कान बंद करनेपर घूघू शब्द सुनाई न देता हो, पानी में अपना शिर न देख सकता हो, अपनी छाया में अनेक छेद देखता हो, वह अधिक दिन जीवित नहीं रहता।
यदि स्वप्नमें राजा, हाथी, घोडा, सोना, बैल, और गौ दखता हो उसका कुटुम्ब बढ़ता है। बेल पर चढ़ा देखनेसे धन
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मिलता है । सफेद सौंपके दहनी भुजापर डशनेसे १००० स्वर्णमुद्रा का लाभ प्राप्त करता है । पानीका साँप और बिच्छूके डंखने से विजय, पुत्र और धन पाता है । महल और पहाड़ पर चढने और समुद्रपार करनेसे राज्यगौरव का सूचक है । तालाब के कमलपत्रों में घी-दूध पीनेसे राज्यपद पाता है । बगुली, मुर्गी, बतख देखनेसे स्त्रीरत्न प्राप्त होता है । रस्सी से बंधने या हाथ बंधने से पुत्रधन मिलता है । प्रासन, बिस्तर, सवारी, शरीर, वाहन, घर आदि जलते देखकर जाग पड़े तो चारों प्रोर से लक्ष्मी बरस पड़े । चाँद और सूर्यका मंडल देखने से रोगीका रोग मिटता है, किसी अन्यको धन और गौरव मिलता है । मदिरा और रक्त पीते हुए देखे तो ब्राह्मणको विद्या और अन्य वर्ग के लोगोंको उन्नत सुख और धन मिलता है । सफेद कपड़े और सुगंधलिप्ता सुभगाके आलिंगनभावसे सम्पत् और सद्बुद्धि प्राप्त होती है। छतरी, खडायू, जूता और तलवार मिलने पर धन, बैल जुते रथके देखने से सुख, दहीके देखनेसे ज्ञान प्राप्ति, दही और दूध पीनेपर, तथा घी मिलने पर यश, घी खाने पर क्लेश, अन्तडियोंसे भूवलय लपेटने से राज्य, आदमी अपने पदका भक्षण करता देखे तो शत मुद्राका लाभ, अपनी बाहुभक्षणसे सहस्र और स्वमस्तक भक्षणसे राज्य लाभ एवं असीम सम्पत् लाभ होता है । भागदार दूध पीने, सोमरस पीने, या गेहूँ देखनेसे धन लाभ, यव देखने से दान लाभ, सफेद सरसों देखने से धनप्राप्ति, नागपत्र, कपूर और पीले फूल स्वप्न में देखे तो चारों ओर से धनकी बाढसी आा पड़े । कपास, भस्म, चावल और छाछको छोडकर और सब वस्तुनोंका स्वप्न देखना उत्तम है । गौ, हाथी, देव, ब्राह्मण, और घोड़ेको छोड़कर शेष सब काली चीजें अच्छी नहीं हैं ।
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- फल पानेको अवधि-पहले पहरमें आये हुये स्वप्नका फल एक वर्ष तक होता है। दूसरे पहर में आये हुये स्वप्नका फल पाठ मास में, तीसरे पहरमें देखे गये स्वप्नका फल दश दिनमें और सूर्योदयके समय आये हुए स्वप्नका फल तत्काल फलदायक होता है।
श्वेतांबरीय अपेक्षासे-चन्द्रगुप्त राजाके सोलह स्वप्न--पाटलीपुत्र पटने में उससमय चन्द्रगुप्त राज्य करता था । वह बारह शाखामोंका पालन करता था। उसने एक दिन पाक्षिक उपवास (प्रौषधोपवास) किया । रातको वारहबजे बाद उसने सोलह स्वप्न देखे।
अगले दिन चौदह पूर्वधर श्रीभद्रबाहु प्राचार्य के द्वारा उन का फल इस प्रकार सुना। १-कल्पवृक्षको शाखाका टूटना-प्रबसे आगे क्षत्रिय-राजा संयम न लेगा। २-सूर्यका अकालमें अस्त-पांचवें पारेका जन्मा हुमा केवलज्ञान
न पायेगा । परमावधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञान भी न
होगा। ३-चांदमें छलनी जैसे अनगिनत छेद देखना-लोगोंके अलग-अलग
विचार होंगे । धर्मभावमें मतभेदके छेद पड़ेंगे । समाचारी
अलग रीतिकी होंगी। ४-भूत-भूतानियोंका नाचना-देवगुरु और धर्म में प्रसत्यका मिश्रण
होगा, अहिंसाके टूक-टूक होंगे। ५-बारह फनका साँप-बारहवर्षका दुर्भिक्ष पड़ेगा। ६-देव-विमान वापस लौटा -जंघाचरण-विद्याचरण-लब्धि और
वैक्रेयिक तथा आहारकलब्धि आदिका विच्छेद होगा।
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.-उत्कर-कुरडी पर कमल जमना-चारों वर्गों में से बनियेके . घर जैन धर्म रह जायगा। ५-खद्योत(जुगनु)का चमकना-लोगोंमें सम्यक्त्वका उद्योत
थोड़ासा रहकर शेष मिथ्यात्वका अंधकार व्याप्त होगी। है-तीन ओर सूखा सरोवर-तीन दिशाओंसे धर्मका लोप होकर
दक्षिण दिशामें धर्म रहेगा। १०–सोनेकी थालीमें कुत्तेका खीर खाना-उत्तम कुलकी लक्ष्मी
नटखट-चोर-ठग-धूत और हत्यारोंके हाथ लगेगी । वे
मालामाल रहेंगे और सब पर धोंस जमायेंगे। ११-हाथीके ऊपर बन्दर सवार-राजा लोग नीच की चाकरी
करेंगे, ऊँचके ऊपर नीच हुकूमत करेंगे। १२-समुद्रको मर्यादाका लोप होना-साधु-साध्वी, मां-बेटी, बहु
बेटी, अपनी-अपनी मर्यादा छोड़ देंगे। १३–रथमें बछड़ोंका जुतकर रथ खींचना-छोटी आयुके बालक
धर्ममें रस लेंगे। १४-रत्नोंकी ढेरी पर धूल पसरी हुई-साधु-साध्वियोंके जीवनपर
ईर्षा-क्रोध-द्वेष-कलह-अहंकार और अहमहमिका क्रियाकी
धूल पड़ जायगी, भेषधारी बहुत बढ़ जायेंगे। १५-राजकुमारको ऊँट पर मैले कुचले कपड़ों में-राजा लोग धर्म
छोड़कर विलास और मिथ्यात्वके कुपथ पर चढ़ेंगे । १६-बिना महावतके हाथियोंका आपसमें लड़ना-मनमानी वर्षा न
होगी, बिना सेनापतिकी सेनाकी भाँति सर्वज्ञ-केवलज्ञानी के बिना लोग मनोमुख होंगे, गुरुमुख नहीं। (नोट) रत्ननन्दी प्राचार्य और इनकी प्ररूपणामें कुछ असमानता है, शेष बातें कुछ हेर फेरसे मेल भी खाती हैं।
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दिगम्बरीय अपेक्षासे चन्द्रगुप्त राजाके सोलह स्वप्न :
[चन्द्रगुप्त राजाको सोलह स्वप्न आना,और भद्रबाहु प्राचार्य (चौदह पूर्व ज्ञान पाठक) द्वारा उनका फल बताना दोनों पक्ष मानते हैं । और इसका फल हजारों वर्ष बाद हुमा है, यह धारणा भी दोनों पक्षकी एक समान है। ] __ श्रीरत्ननन्दी प्राचार्य द्वारा रचित, स्वप्नके विषयमें, ‘भद्रबाह चरित्र' के दूसरे परिच्छेद में उन्होंने लिखा है कि
अवन्तीदेशान्तर्गत उज्जयनी नगरी में चन्द्रगुप्त राज्य करता था। वह एक बार नीरोग अवस्था में सुखकी नींद सो रहा था। उसे रातके पिछले पहर में, एक के बाद एक सोलह दुःस्वप्न अचरज से भरे हुए दिखाई दिए, जो कि उसे बड़े भयकारी अनुभूत हुए थे । वे इसप्रकार हैं:
१. कल्पवृक्षकी शाख का टूट कर गिरना। २. सूर्यंका अस्त होना। ३. छलनी के छेदोंकी तरह चन्द्रमण्डलका उदय । ४. बारह फनका साँप। ५. पीछे लौटकरजाताहुप्रादेवताओंकामनोहर विमान।
६. अपवित्र स्थान (कचार स्थान- उत्कर स्थान) कुरडी पर कमल खिले देखना।
७. नाचता हुआ भूतोंका समूह । ८. खद्योत-(जुगनु या पटबीजना) का प्रकाश। ६. अन्तमें थोडा सा जल तथा बीचमें सूखा सरोवर। १०. सोनेके बर्तन में कुत्तेका पायस-खीर भोजन करना।
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११. हाथीपर चढा हुमा बन्दर । १२. समुद्रका मर्यादा लोप करना। १३. छोटे,छोटे बछडोंका उसमें जुतकर रथ खींचना। १४. धूल से सने कपडोंवाला राजपुत्र ऊँटपर चढा हुना। १५. धूलसे सने हए रत्नोंका ढेर। १६. काले रंग के हाथियोंका परस्पर लडना।
राजा चन्द्रगुप्त इन सपनोंको देखकर अचम्भे में पड़ गयो भोर सोचने लगा कि इन का शुभाशुभ अर्थ किसी यागीराजसे पूछू तो ठीक समाधान मिले।
अचानक चौदह पूर्वधर महाज्ञानी श्रुतपारीण प्राचार्य श्रीभद्रबाहु नगरके बाहर पधार गए। बारह हजार मुनि उनके साथ थे। माली द्वारा सूचना पाकर राजा प्रसन्न होकर उनकी वन्दना करने आया, और प्रजावर्गके साथ उनका धर्मोपदेश सुना। .. अन्तमें विनय की भगवन् ! मैंने प्राज रात के अन्तिम पहर में सोलह स्वप्न देखे हैं, तब से मैं बेचैनहूं। आप जैसे मुनियोंसे इसका फल जाननेकी जिज्ञासा है। आप कृपा करें और आप इनका फल बताएँ।
___ मुनि बोले-राजन् ये खराब स्वान पाए हैं। इनका फल अच्छा नहीं होगा। फिर भी इनका फल सुननेवाले के लिये वैराग्य अनासक्तिभाव जागृत होनेका कारण हो सकता है । इसलिये इनका फल ध्यान देकर सुनिए। (१) सूर्यका प्रस्त होना-अबसे आगे केवलज्ञान और द्वादशांग
चौदहपूर्व का ज्ञान मुनियोंको न होगा।
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(२) कल्पवृक्षका तना टूटना-अबसे आगे कोई राजा जिनमुद्रा
धारक-मुनि होकर संयमवान्
न निमटेगा। (३) बहुत छेदवाला महाचन्द्रमण्डल-वीतरागके मतमें अनेक मतान्तर होंगे। संसार बहुरंगी-बहुमनमत होगा।
(४) बारहफनका साँप-एक. भयंक र बारह बरसका अकाल पड़ेगा। .. (५) देवताओं के विमान का वापस लौटना-पंचमकाल कलियुगमें भू लोक पर देवता न आयँगे । विद्याधर और चरणमुनि भी न होंगे।
६) कुरडी पर कमल उगना-हीन जाति के लोग जिनमत धारण करेंगे । क्षत्रिय आदि उत्तम कुलसे प्रायः जिनमत उठ जायगा।
(७) भूत-भूतनियोंका नाच-मनुष्य नीचजातिके देवों में अधिक विश्वास रखने लगेंगे। .
(८) खद्योत-जुगनूकी चमक-जिन सूत्र के उपदेश करने वाले मिथ्यात्वी होंगे, और जिन धर्म भी कहीं-कहीं रहेगा।
(8) जल रहित थोड़े जलसे युक्त सरोवर-जहां तीर्थंकर भगवान के पांच कल्याणक हुए हैं वहाँ जिनधर्म न रहेगा, कहीं दक्षिण में कुछ धर्म रहेगा।
(१०) सोने के पात्रमें कुत्तेका खीर भोजन करना-ऊंचकी लक्ष्मीका उपभोग नीच लोग करेंगे । ऊचकी लक्ष्मी नीचके घर जायेगी । अर्थात् कुलीन पुरुषों को लक्ष्मी दुष्प्राप्य हो जायेगी।
(११) ऊंचे हाथी पर बंदर बैठना--नीच कुलके उत्पन्न आदमी राज्य करेंगे । क्षत्रिय लोग राज्यभ्रष्ट हो जायेंगे।
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(१२) समुन्द्रका मर्यादा लाँघना - प्रजाका सारा धन राजा लोग छीन लेंगे । तथा राजोचित न्याय धर्म लांघ जायँगे ।
(१३) बछड़ों द्वारा जुतकर रथका खँचा जाना - बहुधा कुछ लोग जवानी में तो संयम लेंगे, किन्तु शक्ति घट जाने पर बुढ़ापे में धारण न कर सकेंगे ।
(१४) ऊंट पर मैले कपड़े पहने, चढ़ा राजपुत्र - राजा लोग निर्मल (न्याय) धर्म छोड़कर हिंसाका मार्ग पकड़ेंगे ।
(१५) धूल में सने हुए रत्नों का ढेर - निर्ग्रन्थ मुनि परस्पर एक दूसरे की निन्दा करेंगे ।
(१६) काले हाथियों का श्रापसमें लड़ना - मनकी इच्छा के अनुसार मेंह न बरसेंगे ।
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राजन् ! इसप्रकार इनका फल होगा । राजा स्वप्नों का फल सुनकर बहुत डरा । उसका मन संसार से उखड़ गया, प्रौर प्रपने पुत्रको राज्य देकर मुनिपद ले लिया ।
इस्लाम में
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भी रव्वाब और उसकी ताबीर (फल) माना है ।
यूसूफ बड़ा सुन्दर था, और साथ ही वह नबी भी हुआ है, उसे एक बार यह स्वप्न आया कि चाँद और सूर्य तथा दश मौर तारे उसके सामने झुक गए हैं ।
उनके पिता याकूब ने यह फल बताया कि दश भाई और मां-बाप उसके पैरोंमें झुकेंगे । अन्त में वह समय पाकर मिश्रका बादशाह बना और किसी प्रसंग में १२ विरोधी व्यक्ति उसके पैरोंकी ओर झुके थे और स्वप्न सच्चा हुआ था । मिस्र के रय्यान - बादशाहने स्वप्न देखा कि मकई के - सिट्टे को
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कुल पंछी नोच-नीच कर खा रहे हैं। इसका फल लोगोंने यह बताया कि सात वर्ष तक अकाल पड़ता रहेगा । और ऐसा ही हुमा। .. अभिप्राय यह है कि उनके यहां भी स्वप्नका सम्बन्ध अच्छे और बुरे फल से जोड़ा गया है।
उनका यह मन्तव्य भी है कि स्वप्न खुदा की रहमत(कृपा)
उनकी यह धारणा भी है कि मस्तक-शक्तिकी उपज ही स्वप्न है।
(नोट) स्वप्न कर्मानुसार पाते हैं या किसी और प्रेरणा से ? तथा उसका फल कैसे मिलता है ? इसका उत्तर कहीं नहीं दिया गया है। - यदि कर्मानुसार स्वप्न आते हैं और फल भी कर्मानुसार ही होता है तो स्वप्न कोई महत्त्वकी वस्तु नहीं ठहरती। कुछ 'भो हो बुधजन आगमके आधार पर इसे विचार की कसौटी पर कसें और इसे जनसाधारणमें प्रगट करें।
सुमित्त भिक्खू
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समोऽत्थु णं समणस्स भगवनो गायपुत्तमहावीरस्स ..
स्वप्नसारसमुच्चय गोतं वाद्यं विनोदं च, शस्त्रशास्त्रं प्रियं वदेत् । वाञ्छितं च भवेल्लाभ, सरस्वत्या निदर्शनात् ॥१॥
भावार्थ -स्वप्न में सरस्वती के देखने से इच्छित लाभ, गाने बजानेका आमोद-प्रमोद, और अस्त्र-शस्त्र-शास्त्र विद्याका लाभ होता है ॥१॥
Dream-Sarasvati (Goddess of Learning)
Effect-Desired gain, pleasure and enjoy. ment of music. advantage of arms and knowledge of religious literature. स्त्रीलाभं पुत्र लाभं च, ह्यर्थलाभं तथैव च । कन्यालाभं पुनस्तस्य, प्रासाद इनदर्शनात् ॥२॥
भावार्थ - अपना स्वामी-मालिक देखनेसे स्त्री, पुत्र, धन और कन्याका लाभ पाता है ॥२॥
Dream-master
Effect-Gain Acquisition of wife, son, wealth and daughter.
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स्वप्नसारसमुच्चय सौख्यं सर्वत्र लभ्यन्ते, यदि लक्ष्मीश्च दृश्यते । सिद्धयन्त्यारम्भकार्य च, मुनिरूपस्य दर्शनात् ॥३॥ . भावार्थ-मुनि "सब प्रकार के सुख और प्रारम्भ किया हुआ कार्य सिद्ध होता है।
Dream-Sadhu or saint.
Effect- Acquirement of all kinds of comforts success in the work begun.. अर्थहानिर्भवेन्नित्यं, विपदं च पदे पदे । स्थानहानिस्तथा क्लेशं, किबालीरूपदर्शनात् ॥४॥ . भावार्थ-किबाली (पुश्चली). स्थान हानि, क्लेश, पद पद पर आपत्ति और धनकी कमी.....है।
Dream-bad woman
Effect-Loss of residence, quarrel trouble at every step, loss of money. विजयं सर्वकार्येषु, स्वजनपुत्रसमागमः । - स्वीलाभमर्थलाभं च, गजरूपनिदर्शनात् ॥५॥ __भावार्थ-हाथी "सब कार्यों में विजय, अपने आदमियों और पुत्र का समागम, स्त्री और धनका लोभ देता है ॥५॥
Dream-Elephant. ___Effect-Success in all affairs, meeting with friends and relatives. gain of wife and wealth. धनलाभं जयलाभ, पुत्र प्राप्तिश्च वा भवेत् । प्रारोग्यं मुनिपदलाभ, पुष्पमालासुदर्शनात् ॥६॥
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स्वप्नसारसमुच्चय
भावार्थ-फूलमालाका जोड़ा से धनका लाभ, जय, पुत्रप्राप्ति, आरोग्य लाभ, मुनिपद पानेका "है ॥६॥ | Dream-Pair of garlands. F Effect-Gain of money, success, birth of a son, good health, attainment of saint hood. व्याधिः शोको भयं चिन्ता, मरणं क्षिप्रमेव च । निराशा सर्वकार्येषु, महिषस्य प्रदर्शनात् ॥७॥ | भावार्थ-महिष ‘से रोग, शोक, भय, चिन्ता शीघ्र मृत्यु का कारण और बने बनाये काममें निराशा है ॥७॥ 1 Dream-Buffalo. __Effect-disease, sorrow, fear, anxiety, early death. सफलं चिन्तितं कार्य, यशःप्राप्तिर्धनागमः । जराव्याधिप्रणाशश्च, हनुमद्रूपदर्शनात् ॥८॥ __ भावार्थ-हनुमान् से सोचा विचारा कार्य सफल, यशः प्राप्ति, धनका आगम, दुर्बलता, रोग दूर है ॥८॥
Dream-Hanuman (Hindu god) | Effect-Success in thought out plans, gain bf honour and wealth, removal of weakness ! and malady. प्रर्थनाशं महोत्पातं, दारिद्र्यरोगसंभवः । अनेकशोकसन्तापं, मर्कटस्वप्नदर्शनात् ॥६॥
भोवार्थ-बंदरों से धन्धेमें हानि, कोई अचानक बड़ा उत्पात, दरिद्र, रोगकी उत्पत्ति, तथा अनेक शोक सन्ताप... हैं ॥९॥
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स्वप्नसारसमुच्चन Dream-Monkey
Effect-Loss in business, some sudden call mity poverty disease, various kinds o troubles and griefs. सर्वत्र लभ्यते सौख्यं, पुत्रपौत्रसमागमः । सन्मानं राजलोके च लक्ष्म्याः स्वप्नदर्शनात् ॥१०॥
भावार्थ-लक्ष्मीदेवी से सब जगह सुख, पुत्र पौत्रोंक परम्परा वृद्धि, राज्यमान और सुख चैन "है ॥१०॥
Dream-Lakshmi (Coddess of wealth). ..... Effect-Joy everywhere, increase in the number of sons. and grand sons,comforts, resp. ect, and honour. वर्धन्ते धनधान्यानि, सर्वकार्येषु शोभनम् । चिन्तितं प्राप्तसन्मानं, गोवत्सस्वप्नदर्शनात् ॥११॥
भावार्थ-बछड़े समेत गऊ से धनधान्यकी वृद्धि, इच्छा नुसार कार्यसिद्धि, सोचा हुप्रा मान, सन्मान है ॥११॥
Dream-cow with calf
Effect--Increase in wealth and produce. desired Success in desired objects, respect and honour नराणामपमृत्युश्च, पुत्रपौत्रादिनाशनम् । चिन्तितकार्यहानिश्च, यमरूपस्य दर्शनात् ॥१२॥
भावार्थ-यम को आदमियोंकी अपमृत्यु, पुत्र पौत्रादि के हानि, और विचारा हुआ काम बिगड़ है ।।१२।।
काका
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स्वप्नसारसमुच्चय
Dream-Death
Effect-Sudden death of people, Loss of sons and grand sons, failure in thought out plans. पविजयं सर्वकार्येषु, लाभं सौभाग्यवर्धकम् । बुद्धिः शुभंकरी चैव, रेवतीदेवोदर्शनात् ॥१३॥ ___ भावार्थ-रेवतीका से सब कार्यों में विजय, लाभ, सौभाग्य और बुद्धि अच्छे कार्य करती है ॥१३॥
Dream-Revti (married lady with husband) | Effect-Success in all affairs, benefit, good fortune, intelligence, employed in doing good deeds. मित्रनाशं तथा दुःखं, क्लेशहानी सदा भवेत् । वैकल्यं शोकसन्तापं ग्रथिलरूपदर्शनात् ॥१४॥ ____ भावार्थ-पागल-से मित्रका नाश, दुःख, क्लेश, अनेकानेक हानि मानसिक विकलता और शोक-सन्ताप · है ॥१४॥
Dream-Insane person Effect-Ruin of friend, troubles and quarrels. all sorts of losses, anxiety, sorrow, ruin and misery. प्रर्थनाशं मनस्तापं, सुतनाशं महाभयम् । मरणं व्याधिसन्तापं, राक्षसाकृतिदर्शनात् ॥१५॥ ___ भावार्थ-राक्षस...से धनहानि, मन में चिता, पुत्र वियोग, कोई महाभय, मरण, रोग और संताप है ॥१५॥
Dream-Devil
Effect-Loss of wealth, anxiety, son'sdeath, some fearful danger, malady, calamity.
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स्वप्नसारसमुच्चर धनधान्यानि लभ्यते, पुसां सर्वत्र भूतले । प्रारोग्यं च सुखं नित्यं, निधिरूपनिदर्शनात् ॥१६॥
भावार्थ-निधि-कोष से अनेक स्थानोंसे धरतीके धन धान्य और प्रारोग्य तथा नित्य-अविनाशीयात्मिक सुख है॥१६
Dream-Treasure
Effect-Possession of underground treasure acquisition of land, sound health, and lasting happiness. महीपानां च संघर्ष, शोकसन्तापदारुणम् । कुटुम्बे कलहं दुःखं, वायसस्वप्नदर्शनात् ॥१७॥
भावार्थ-कम्वा "से राजाओंकी आपसी खींचतान, दारुए शोक सन्ताप, कुनबेकी आपसकी लड़ाई और दुःख है ॥१७॥
Dream-crow
Effect-Mutual contention disputes among countries, grief, quarrel in family, misery. विजयमर्थलाभं च, क्लेशपापप्ररणाशकः। कार्यसिद्धिमवाप्नोति मुरलीधरदर्शनात् ॥१८॥
भावाथ-मुरलीधर' से सब कामोंमें विजय, धनलाभ, क्लेश और पाप का अन्त अटका काम सिद्ध है ॥१८॥
Dream -Lord Krishna.
Effect-Success in all kinds of affairs, fina ncial gain, end of troubles and quarrels and completion of work.
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स्वप्नसारसमुच्चय मरणं तथाऽर्थहानिश्च, विदेश भ्रमणं तथा । व्यसनस्खलनं यातिः श्येनस्वप्नस्य दर्शनात् ॥१६॥
भावार्थ-बाज' से मरण, धनहानि, परदेशमें निरर्थक भ्रमण और अकस्मात् दुःख आ पड़ता है।।१९।।
Dream-Hawk
Effect-Death, loss of money profitless jou. rney to a foreign land, some sudden calamity. मंगलघ्नं स्थानभ्रष्टं, शोकसन्तापवर्धकम् । घोरदुःखमलाभं च, गृद्ध पक्षिनिदर्शनात् ॥२०॥ ___ भावार्थ-गिद्ध से कोई बड़ा प्रमंगल, स्थान भ्रष्ट, शोक सन्ताप वर्धक, घोर दुख, अलाभ "है ॥२०॥
Dream-Vulture.
Effect-A big mishap, calamity, Loss of position and honour, sorrow, anxiety, extreme distress. enormous loss of money. दारिद्रयं नश्यते शीघ्र धनधान्यसमागमः। मांगल्यं पुत्रलाभं च पुन्नागसवप्नदर्शनात् ॥२१॥
भावार्थ-पुन्नाग से शीघ्र दरिद्र से मुक्ति, धन धान्यका समागम, सब प्रकारके मंगल और पुत्र प्राप्ति ... है ॥२१॥
Dream-Red lotus
Effect-Immediate release from poverty, Gain of money and property, all kinds of enjoy ments, gain of happiness and sons.
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स्वप्नसारसमुच्चय धननाशं ध्रुवं नित्यं, मरणं शोकमेव च । मैत्रीघातं महाक्लेशं, कुक्कुटस्वप्नदर्शनात् ॥२२॥
भावार्थ-मुर्गाधनका नाश, मरण, शोक, मित्रता की हानि, और कोई बड़ा क्लेश है ।।२२।।
Dream-Cock
Effect-Loss of wealth, death, grief, loss of friends, some unexpected trouble. सुरूपं चैव सौभाग्यं, वीयं च बलवर्धकम् । तृष्णातृप्ति वेज्ज्ञानाद्वहरणस्वप्नदर्शनात् ॥२३॥
भावार्य-वरुण से चेहरे पर प्रभाव, सौभाग्य, आत्मशक्ति, बलवर्धक ज्ञान द्वारा तृष्णा की उपशान्ति है ।।२३।। '. Dream -Varun (a kind of flower) .
Effect—Glorious face, good luck, strength of mind, increase of strength, completion of learning and knowledge, कटुकश्रममवाप्नोति, कुभोजनं लभेन्नरः । धनराज्यपदहानिः, क्षेत्रपालस्य दर्शनात् ॥२४॥ ___ भावार्थ-क्षेत्रपाल से कम पैसे की नौकरी, दुख से उदर भरण, धन-राज्य और पदकी हानि है ॥२४॥
Dream-Raja
Effect-A low paid job, hard living loss of money and position.
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स्वप्नसारसमुच्चय सर्वसंकटनाशं च, शत्रुपक्षक्षयं भवेत् । धनधान्यस्य संवृद्धि बन्दिस्वप्ननिदर्शनात् ॥२५॥ . भावार्थ-वंदी से सब संकट चले जाते हैं शत्रुपक्षका बल क्षय होता है, धन धान्यकी अच्छे प्रकार वृद्धि"है ॥२५॥ ____Dream-(Bandi) A kind of willow
Effect-All difficulties removed, enemy defeated, Increase in wealth and property. विवादं कलहं चैव, धननाशं पुनस्तथा । निरर्थकं भवेत्कार्य, उलूकस्वप्नदर्शनात् ॥२६॥
भावार्थ-उल्लू से आपसका निरर्थक विवाद झगड़ा, धननाश आवश्यक कार्य में बिगाड़ करता है ॥२६॥
Dream-Owl.
Effect--Mutual quarrel for nothing, dispute, loss of money, interruption in urgent work. पुत्रलाभं स्त्रीलाभं च, धनलाभं तथैव च । सेवालाभं धर्मलाभ, जयन्तीस्वप्नदर्शनात् ॥२७॥
भावार्थ-जयन्ती' से स्त्री-पुत्रका लाभ तथा धनका लाभ परमार्थसेवा और धर्मसाधन करनेका लाभ है ॥२७॥
Dream-Flame.
_ffect-marriage, birth of son, gain of wealth, acquirement of moral virtues service for the public. विजयमर्थलाभं च, लभ्यते चिन्तितं फलम् । सर्वकार्यारिण सिद्धयन्ति राजपुत्रस्य दर्शनात् ॥२८॥
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स्वप्नसारसमुच्चय
भावार्थ - राजपुत्र से विजय, घनका लाभ, सोचा गया कार्यं सफल और अटके हुए सब कार्यं सिद्ध होते हैं ||२८|| Dream-Prince.
Effect—victory, profit, success in thought out plans and in delayed work.
fo
मरणं शोकसन्तापं, कलहं कार्यनाशनम् ।
कृष्णसर्प निदर्शनात्
प्रर्थहानिर्भवेन्नित्यं,
॥२६॥
-
भावार्थ - काला साँप से मृत्यु शोक, सन्ताप कलह कार्य हानि, और उत्तरोत्तर धन हानि है ॥२९॥
...
Dream—Black serpent.
Effect—Death, grief, trouble, quarrel, failure in affairs, loss of money every where.
सर्वकार्येषु,
विजयं
प्रसिद्धिः सर्व देशेषु,
भावार्थ - विमान से सब कार्यों में विजय, राज्यमान, और सारे देशों में ख्याति है ||३०||
...
राजमानसमागमः ।
विमानस्वप्नदर्शनात् ॥ ३०॥
Dream-Aeroplane
Effect—success in all works, honour, respect and reputation, to be gained.
स्थानं मानं जयं चैव, मित्रः सह समागमः । धन लाभं च सौख्यं च, मेरुपर्णतदर्शनात् ॥ ३१॥
भावार्थ - मेरु पर्वत से श्रात्मा का उत्थान, सम्मान,
4
विजय, मित्रोंका मिलाप, धनलाभ और सुख हैं ||३१||
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स्वप्मसारसमुच्चय
Dream-Highest mountain. Effect-Rise of soul, respect and success, mcoting with friends, financial gain and pleasure. प्रकल्याणं भयं घोरं, कार्यारंभनिरर्थकम् । मातृपितृवियोगं च, शुष्कवृक्षस्य दर्शनात् ॥३२॥
भावार्थ-सूखा ठूठ वृक्ष से प्रशान्ति, भय, कार्यहानि, पौर माता पिताका वियोग ॥३२॥ ___Dream-Dry trunk of a tree.
Effect-Want of peace, fear, failure in business, separation from parents. शत्रुनाशं समुत्थानं, पुत्रबंधुसमागमः । दृश्यन्ते शुभकार्यारिण, वृक्षस्वप्ननिदर्शनात् ॥३३॥
भावार्थ-वृक्ष... से शत्रुको हानि, पुत्रबंधु समागम, पच्छे कार्यों में मार्ग दर्शन ॥३३॥
Dream-Fruits of trees.
Effect-Harm to enemy, meeting of sons, brothers, and friends, inclination to do good deeds. सर्वमंगलमारोग्यवृद्धिर्दारिद्रनाशनम् । चिन्तितं सर्वसिद्धं स्यात, सीतायाः स्वप्नदर्शनात् ॥३४॥
भावार्थ-सीता सती के सब प्रकारके मंगलकी अनुकूलता, सोचा हुआ सब ठीक होता है ॥३४॥
Dream-Chaste Sita.
Effect-Attainment of good deeds, good health, removal of poverty, Success in plans.
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स्वप्नसारसमुच्चय सर्वपापविनिर्मुक्तो नरो भवति सर्वदा। धनधान्यसमृद्धः स्यात्, शेषनागस्य दर्शनात् ॥३५॥ ___भावार्थ-शेषनाग से सारी बुराइयोंसे मुक्ति, और धनधान्यसे समृद्ध है ॥३५॥
Dream-Cobra.
Effect-Freedom from all sorts of evils, procurement of wealth to full satisfaction. विकारपापनाशं च, क्लेशनाशं तथैव च । पुत्रलाभमर्थलाभ, पार्वतीस्वप्नदर्शनात् ॥३६॥
भावार्थ-पार्वती से प्रान्तर विकार और पाप करनेसे मन हटता है, कलहकी समाप्ति, पुत्र और धनलाभ है॥३६॥ . Dream -Parvati goddess (mate of Shiv)
Effect-Hatred for internal weaknesses and evils, end of quarrels. financial gain, birth of son, क्षेमं धनमवाप्नोति, दारिद्यव्याधिनाशनम् । सर्वकार्याणि सिद्धयन्ति, शीतलास्वप्नदर्शनात् ॥३७॥
भावार्थ-गधे पर चढी शीतला से सब प्रकारके क्षेम, धनप्राप्ति, दरिद्र और रोग नाश तथा सारे काम पूरे होते हैं ॥३७॥
Dream-Goddess of small-pox riding on a donkey.
Effect-All sorts of pleasures, gain of wealth, removal of poverty and disease, success all round.
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स्वप्नसारसमुच्चय पौरुषं वर्धते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा। कार्यसिद्धिमवाप्नोति, क्षपरणस्वप्नदर्शनात् ॥३८॥ बधबन्धमवाप्नोति, अर्थहानिस्तु निश्चितम् । लभतेऽपयशो पुंसां, क्षपरणस्वप्नदर्शनात् ॥३८॥
इति पाठान्तरम् भावार्थ-क्षपणक' से पुरुषार्थ बढ़ता है, टिकाऊ लक्ष्मी होती है, और मन चाहे कार्य ठीक होते हैं ॥३८॥
किसीका मत है कि बध-बंधन की आपत्ति भोगनी पड़ती है, धन हानि अपयश है ॥३८॥
Dream-naked, nude.
Effect-Increase in human endeavours last. ing wealth, desired aims, fulfilled. Some however interpret-slaughter, imprisonment, loss of wealth, and disgrace. पौरुषं वर्धते नित्यं, लक्ष्मीस्तु प्रविवर्धते । कार्यसिद्धिमवाप्नोति, रामलक्ष्मणदर्शनात् ॥३६॥
भावार्थ-रामलक्ष्मण से पुरुषार्थमें मन लगता है, उत्तरोत्तर लक्ष्मी बढ़ती है, बिगड़ा कार्य बनता है ।।३।।
Dream-Rama Lakshman
Effect-Aptitude to work. Increase in wealth, success in spoiled work अर्थनाशं मनस्तापं, तथा वैरिसमागमः । शोकसन्तापसम्प्राप्तिः शसकस्वप्नदर्शनात् ॥४०॥
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१४
स्वप्नसारसमुच्चय भावार्थ-खरगोश से धनहानि, मनमें बेचैनी, पद पर पर शत्रों का जोर और शोक सन्ताप है ॥४०॥
Dream -- Hare.
Effect-Loss of wealth, uneasiness of mind enemies every where, grief and troubles. कलहं च भवेन्नित्यं, विघ्नानां च विवर्धनम् । मतिहानिमवाप्नोति, नारदरूपदर्शनात् ॥४१॥
भावार्थ-नारदा स्वभावका मनुष्य से किसीसे लड़ाई, विघ्नपरम्परा, और बुद्धि में बिगाड उत्पन्न है ॥४१॥
Dream-Man having Narad's temperament.
Effect-quarrel, fight, bloodshed, perversion of intellect. स्त्रीलाभं शास्त्रालाभं च, धनधान्यं तथैव च । शीघ्रमेव भवेत्कार्य, पीतच्छत्रनिदर्शनात् ॥४२॥ . भावार्थ-सुनहरी छत्र से स्त्री, शास्त्र और धन धान्य प्राप्ति तथा प्रारंभ किया गया कार्य शीघ्र पूरा "है ॥४२॥
Dream-Golden Umbrella.
Effect-Gain of mate, religious literature, wealth and property, immediate success in the work commenced. राजाप्रजामहाक्रान्तिर्गन्धमाल्यविलेपनम् । वस्त्रालंकारसौभाग्यं नपशोभानुदर्शनात् ॥४३॥
भावार्थ-राजशोभा 'से, राजा-प्रजामें महाक्रान्ति, गंधमाला-विलेपन, अच्छे कपड़े, आभूषण और सौभाग्य है ।।४३।।
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Dream-Royal splendour.
Effect-High dignity among the authorities and public. Use of scent, garlands, rich dress and ornaments, good luck.
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दुर्भगत्वं दुर्गतित्वं, बह्वो दुःखपरम्परा | व्यसनानि विचित्रारिण, चित्रकस्वप्नदर्शनात् ॥४४॥
भावार्थ - चीता से, दुर्गत, बुरी दशा, दुःख परम्परा, न देखे सुने अनेक संकट है ॥४४॥
Dream—Pyre.
Effect—Disgrace, bad status, grief extraordinary, sudden troubles.
श्रानन्दं वस्त्रलाभं च पुत्रमित्र समागमः । धनस्यागमनं प्रोक्तं, समुद्रस्वप्नदर्शनात् ॥४५॥
भावार्थ - समुद्र - से सब प्रकार के आनन्द, वस्त्र लाभ, पुत्रमित्र समागम, धनके बढ़नेका मार्ग है ॥४५॥
Dream-Sea.
Effect-All kinds of joy, gain, society of friends and sons. Increase in wealth.
सफलं चिन्तितं कार्यं, मांगल्यं च समागमः । वध्याऽपि लभते पुत्रं, श्राम्रवृक्षस्य दर्शनात् ॥४६॥
भावार्थ - श्रामका वृक्ष से सोचा हुआ काम शीघ्र सफल, अच्छी व्यक्तिओं का समागम, बांझको भी पुत्रप्राप्ति है ॥४६॥
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स्वप्नसारसमुच्चय
R
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Dream - Mango tree.
Effect--Immediate success in thought out plans, good society, even barren woman gives; birth to a child. सौख्यहानिर्भवेन्नित्यं, विघ्नानां च विवर्धनम् । महाघोरं वियोगं च, चक्रवाकयुग्मदर्शनात् ॥४७॥ ____ भावार्थ-जोड़े समेत चकवा' से, अगले पिछले सुख मिट जाते हैं, नये विघ्न और इष्ट जनोंका दुखद वियोगः 'है ।।४७।।
Dream --Brahmini duck with its mate.
Effect --isappearance of all comforts, Fresh troubles arise. Grief from loss of friends and relatives. धनलाभं जयं चैव, सुतबन्धुसमागमः ।। जायन्ते शुभकार्यारिण, वनराजीनिदर्शनात् ॥४८॥
भावार्थ-वनराजी से धनलाभ, किसी संघर्ष में विजय, पुत्र और भाइयोंका मेल-मिलाप और शुभकार्य ठीक हैं ॥४८॥
Dream-Herbage.
Effect-Gain of money, victory in disputes, union with sons, and brothers. Success in good deeds.
आयुर्बलस्य वृद्धिश्च, ह्यारोग्यं पुष्टिकारकम् । कल्याणं सर्वसिद्धिश्च, वटवृक्षस्य दर्शनात् ॥४६॥
भावार्थ-बड वृक्ष से प्रायु और बलकी वृद्धि, टिकाऊ स्वास्थ्य, सबके कल्याणकी भावनाकी सिद्धि "है ॥४६॥
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स्वप्नसारसमुच्चय
Dream-Banyan tree.
Effect-Life prolonged Increase in physical strength Lasting health Attainment of desired happiness चंचलं कार्यं लभते, स्थिरभावमवाप्नुयात् । ज्ञानात्मसमतावृद्धिः सूर्यदेवस्य दर्शनात् ॥५०॥
भावार्थ-उदीयमान सूर्य से डिगमिग कार्य ठीक होता है, भावों में स्थिरता आती है, ज्ञानात्मामें समत्वके योगकी वृद्धि-... है ॥५०॥
Dream-Rising sun.
Effect-Success in doubtful work. Firmness in ideas. धनधान्यं गृहे नित्यं, कन्यालक्ष्मीः प्रजायते । कार्यसिद्धिमवाप्नोति, शुकराजस्य दर्शनात् ॥५१॥
भावार्थ-तोता से धनधान्यकी घरमें अक्षयनिधि रहती है, कन्या और लक्ष्मी तथा कार्यसिद्धि"है ॥५१।।
Dream-Parrot.
Everlasting wealth and prosperity. Success in business. स्थानं लाभं जयं चैव, पुत्रप्राप्तिः पुनस्तथा । गवामागमनं शीघ्र, सारंगधनुर्दर्शनात् ॥५२॥ ___ भावार्थ-सारंग धनुष-से घर और स्थान का लाभ, जय, । पुत्र प्राप्ति और गोधनकी शीघ्र वृद्धि है।॥५२॥
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स्वप्नसारसमुच्चय
Dream-Bow. ____Effect-Construction of house, success, birth of a son. Immediate increase in number of cows. मध्यमं च भवेत्कार्य, शोकरोगौ तथैव च । अर्थहानिर्भवेन्नित्यं, अंधरूपप्रदर्शनात् ॥५३॥ ___ भावार्थ-अंधा से काम बनते बनते बिगड़ जाता है। शोक, रोग तथा धन हानि है ॥५३॥
Dream-Blindman. .
Effect-Work near completion spoiled, grief, illness, loss of money. मित्रलाभं भवेत्तस्य, सर्वकार्याणि सिद्धयति । प्रायुवृद्धिमवाप्नोति, दशावतारदर्शनात् ॥५४॥
भावार्थ-दशावतार से नये मित्रका लाभ, कार्यसिद्धि, और नोपकर्मा आयुलाभ है ॥५४॥ Dream-Ten incarnations of God.
Effect-Gain of a new friend, success in every undertaking, long and uninterrupted life. परिपूर्णं भवेत्कार्य, करोति चेत्सदुद्यमम् । नरस्यासीमधनप्राप्तिश्चन्द्रदर्शनसंभवात् ॥५५॥
भावार्थ-चांद से पुरुषार्थ द्वारा कार्यकी पूर्ति होती है, आदमी असीम धन है ॥५५॥
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स्वप्नसारसमुच्चय
Dream-Moon.
Effect-Success in work through hard labour, gain of enormous wealth.
धनवृद्धिः शुभं भूयात्, प्रीतिकल्याणवर्धनः । श्रथाश्वदर्शनं वरम् ॥५६॥
सुतलाभमर्थलाभ,
..
भावार्थ - घोड़ा से धनकी वृद्धि, सब प्रकारसे ठीक ठाक, आपसी प्रेम और लाभ ं है ।।५६।।
कल्याणकी वृद्धि,
पुत्र और धनका
Dream-Horse.
Effect-Increase
१४
in
wealth, prosperity all round, mutual love, good fortune, gain of money and son.
व्याधिदारिद्रयनाशं च पापनाशं रिपुक्षयम् । सफलं चिन्तितं कार्य, चेद्भवेद्रुद्रदर्शनम् ॥५७॥
भावार्थ-महादेव- " से रोग और कंगालीका अवसान, पापविचार और शत्रुपक्षका क्षय और सोचा विचारा काम बन" है ।। ५७ ।
Dream-- Mahadev (a Supreme god.)
Effect—End of disease and poverty, destruction of enemies, expiation of sins, success in cherished desires.
श्रानन्दं च प्रमोदं च साधूनां च समागमः । वृद्धिं च विपुलं लाभ, कलशयुग्मदर्शनात् ॥५८॥
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२०
.
स्वप्नसारसमुच्चय भावार्थ-कलशका जोड़ा से सब प्रकारका आमोद प्रमोद, साधुसत्संग असीम धनवृद्धि है ।।५८॥
DreamPair of pitchers.
Effect-Gain of all sorts of enjoyments and merriments. Society of saints, enormous wealth. जायते चिन्तितं कार्य, मांगल्यानां समागमः । वन्ध्याऽपि लभते पुत्रं, शूकरस्वप्नदर्शनात् ॥५६॥
भावार्थ-सूवर से मनोरथ फलता है, अच्छे निमित्तोंका समागम होता है,बाँझ भी सन्तानका लाभ प्राप्त करती है ।।५६।
Dream-Pig. ___Effect-Fulfilment of heart's desires,attainment of sufficient resources, birth of a child to even a barren woman. अर्थलाभं च सौभाग्य, धनधान्यं विवर्धते । प्रायुरारोग्यमाप्नोति, मत्स्ययुग्मस्य दर्शनात् ॥६०॥
भावार्थ-मछलीका जोड़ा से धन लाभ, सौभाग्यवृद्धि, धनधान्यवृद्धि, आयु और आरोग्य लाभ है ।।६।। ___Dream-A couple of fish.
Effect-Gain of money, good fortune, long life, sound health. उद्यमं सर्वकार्येषु, यावज्जीवन्ति मानवाः । सफलीभूतानि कार्यारिण, मृगरूपस्य दर्शनात् ॥६॥
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'स्वप्नसारसमुच्चय
२१
भावार्थ - हिरन -~ से उद्यम में मन लगता है, अटके हुए काम
सफल···हैं ।।६१।।
Dream-Deer.
Effect-Aptitude for hard, work, ultimate success in even plans gone wrong.
सुखहानिर्भवेन्नित्यं श्रर्थहानिः पुनः पुनः । शस्यहानिर्महाचिन्ताकरो, वराहदर्शनात् ॥ ६२॥
?
"
भावार्थ – वराह अवतार से सुखकी हानि, बार-बार धन हानि, खेत में नुकसान और महाचिन्ता है ॥६२॥
Dream-Boar Incarnation.
Effect— Loss of pleasure, and money, destruction of farm produce, great anxiety. व्याधिः पापप्रणाशं च, धनधान्यं च दृश्यते । दीर्घायुश्च भवेत्पु ंसां, केदाररूपदर्शनात् ॥६३॥
भावार्थ — केदार ~ से व्याधि और तीनों तापका नाश, धन धान्यका समागम, और दीर्घायु सूचक है ॥६३॥
Dream-A farm tree.
Effect-End of disease and destruction of three fold sufferings or pains. Attainment of wealth and property, long life.
अर्थलाभं जयं चैव, प्रमोदं सुखसम्पदा । मित्रस्यागमनं शीघ्रं विघ्नराजनिदर्शनात् ॥६४॥
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२२
स्वप्न सारसमुच्चय
भावार्थ – गणेश.. से धनलाभ, विजय, मन में आनन्द, सुख सम्पदा, मित्रका आगमन और विघ्नोंका वारण ं' है ||६४|| Dream-Ganesh (a Hindu god).
Effect—Gain of money, victory, and mental bliss, enjoyment of luxurious life, meeting of friends. End of obstacles in the way of success. वधबंधपरिक्लेशश्चार्थ हानिस्तथैव
च ।
नित्यं शोकमवाप्नोति, ग्रहणविनिदर्शनात् ॥ ६५॥
भावार्थ - ग्रहरण से वध बंध और सब ओरसे क्लेश, धन हानि और आये दिन शोक है ॥६५॥
Dream-Eclipse. (solar or lunar) Effect—Troubles in one's path, difficulties from all quarters, loss of money, anxiety and sorrow from day to day.
भूलाभं पुत्रलाभं च शक्तिलाभं तथैव च । सर्वत्र जयलाभं वा, इन्द्ररूपस्य दर्शनात् ॥६६॥
भावार्थ – इन्द्र से पृथ्वी, पुत्र, शक्ति, और सब जगह विजयका लाभ होता है ॥६६॥
Dream—Indra (God of Rain).
Effect-Gain of son, land, power, and success every wherc.
पुत्रपौत्रसमायुक्तः क्षमालाभं महांस्तथा । कार्यबलध्यानलाभः सिंहासनस्य दर्शनात् ॥ ६७॥
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२३
स्वप्नसारसमुच्चय ___ भावार्थ-सिंहासन से पुत्र पौत्र समाकुल, क्षमा, कार्य, बल और ध्यानका लाभ होता है ॥६७।।
Dream-Throne. Effect-Gain of sons and grand-sons, success in business, disposition to meditction, attainment of power. मध्यमं सर्वकाद्वेषु, हृदौर्बल्यमशांतिकृत् । अर्थहानिमहोद्वेगो, मयूरस्वप्नदर्शनात् ॥६॥
भावार्थ-मोर" से सब कामोंमें मध्यमता, दिलकी कमजोरी, अशान्ति, धनहानि और महान् उद्वेग है ॥६॥ .. Dream-Peacock.
Effect-Partial success in all undertakings, weakness of heart, anxiety, loss of money, perturbation of mind. लक्ष्मीलाभं महासौख्यं, सौभाग्यमात्मतुष्टिदम् । मुनीनां संगतिर्लाभो, दर्पणदर्शनं शुभम् ॥६६॥
भावार्थ-दर्पण से लक्ष्मीकी प्राप्ति, महान् सुख, सौभाग्य, आत्मतुष्टि, मुनियोंकी संगति और अनेक लाभ हैं ॥६६॥
Dream-Mirror. Effect-Attainment of wealth, unmixed pleasures, good luck, contentment, society of saints, various benefits.
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२४
स्वप्नसारसमुच्चय शुभं च विजयं चैव, संघसेवासमागमः । प्रारोग्यमात्मसिद्धिश्च, चित्रकारस्य दर्शनात् ॥७०॥
भावार्थ-चित्रकार से शुभ, विजय, चार संघकी सेवा का विचित्र समागम और आरोग्य तथा आत्मसिद्धिका मार्ग.."है ।।७०॥
Dream-Painter. Effect-Resounding success, society of saints and monks, good health, and self satisfaction and self realization. वामे च दक्षिणे भागे, पृष्ठभागे च सन्मुखे । चतुर्दिा भवेल्लाभ, लोकोरूपस्य दर्शनात् ॥७१॥ ___ भावार्थ-लोमडी से बायें, दाहिने, पीछे आगे या चारों ओरसे लाभसूचक है॥७१।।
Dream-Fox.
Effect-Gain from all directions. अशुभमर्थहानिश्च, मृत्युदारिद्रयसंभवः । कारावासे पतनं वा, उष्ट्ररूपविदर्शनात् ॥७२॥
भावार्थ-ऊँट से अशुभ, धनहानि, मृत्यु, दरिद्रके, अतिरिक्त कारावास जानेका अवसर भी आ सकता है ॥७२॥
Dream-Camel.
Effect-Inauspicious, loss of wealth. Death. Poverty. Possibility of imprisonment.
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स्वप्नसारसमुच्चय
स्वराज्यपदमर्थं च प्रैश्वर्य मुनिसंगमः । प्रतिष्ठाज्ञानसम्प्राप्तिश्चामराभ्यां निदर्शनात् ॥७३॥
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भावार्थ–चँवरका जोडा से स्वराज्यपद, धनलाभ, ऐश्वर्य मुनियों का सहवास, प्रतिष्ठा और श्रात्मज्ञान तथा सम्यक् चरित्र लाभ-- है ।।७३।।
Dream-Pair of chauris.
Effect-Kingship, gain of wealth and prestige, society of saints, excellent reputation; knowledge of self, and right conduct. विजय मर्थलाभं च, सौभाग्यं प्रियदर्शनम् । आयुवृद्धिमवाप्नोति, यमुनास्वप्नदर्शनात् ॥७४॥
भावार्थ-यमुना नदी से विजय, धनलाभ, सौभाग्य, अच्छोंका दर्शन, और दीर्घायुका सूचक है ॥७४॥
Dream-The Yamuna river.
Effect—Good luck, victory, gain of wealth, visit of noble persons, long life. स्थानभ्रंशमनिर्वारणं, शोकसन्तापवर्धनम् ।
जाड्या
महाघोरमवरं तापसदर्शनात् ॥७५॥
भावार्थ - धूनीवाले खाखी बावा से स्थान और नौकरी से पतन, शोक; सन्ताप वर्धक, मूर्खता और ढीठता के साथ बेठीक घटना है ।। ७५ ।।
Dream-Faqir besmeared with ashes practising penance before fire.
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२६.
स्वप्नसारसमुच्चय
Effect Demotion or dismissal from service and position. grief, sorrow, occurrence of some calamity due to foolishness and obstinacy.
श्रर्थलाभं मनस्तोषं, पुत्रलाभं सदागमः । ज्ञानाप्तिः कीर्तिलाभं च राजहंसनिदर्शनात् ॥७६॥
..
भावार्थ - राजहंस से धनलाभ, मनको सन्तोष, पुत्रलाभ, अच्छोंका आगम, ज्ञानप्राप्ति और प्रशंसाका वितान होता है ॥७६॥
Dream-Swan.
Effect—Gain of wealth, peace of mind, birth of son, society of good persons, attainment of knowledge, spread of reputation far and wide.
विजयं सर्वकार्येषु, राजपुंसां समागमः । कार्यसिद्धिश्च सर्वत्र, स्वप्ने व्याघ्रस्य दर्शनात् ॥७७॥ भावार्थ- - बघेरा से सब काम बनते हैं, अधिकारियोंसे मेलजोल, और कार्य के अनुकूल होने का सूचक है ॥७७॥
-
-
Dream-Tiger.
Effect-Success in all affairs, close contact
with government officials, favourable circumstances for every initiative.
सन्तोषः सर्वथा शान्तिर्धनधान्यं न क्षीयते ।
सदिच्छापूर्णकारी च यवक्षेत्रस्य दर्शनात् ॥७८॥
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स्वप्नसारसमुच्चय
२७ भावार्थ-जौ के खेत से मनको सन्तोष, शान्ति, कान्ति, अक्षयनिधि और उत्तम इच्छा पूरक है ।।७८॥
Dream-Farm of barley.
Effect-Contentment, peace, inexhaustible wealth, fulfilment of all desires. राजपूजा जयो वृद्धिर्धवं बंधुसमागमः । पुत्रपौत्रादिसंवृद्धिर्महाध्वजनिदर्शनात् ॥७॥
भावार्थ-राष्ट्रध्वज से राजपूजा, विजय, अक्षय वृद्धि, बन्धुसमागम, और पुत्रपौत्रादि वृद्धि सूचक है ।।७।।
Dream-Country's flag. Effect-Respect in government circles,success, untold wealth, birth of sons, meeting of dear and near ones. विजयं सर्वकार्येषु, साधुसेवासमागमः। परमार्थे प्रसिद्धिः स्यात्, शुक्तिस्वप्नस्य दर्शनात् ॥८॥
भावार्थ-सीप से सब कार्यो में विजय, साधुसेवाका समागम, और परमार्थके कार्योंसे प्रसिद्धि"है ।।८०॥ ____Dream-Shell.
Effect-Success in all matters, opportunity of serving saints, reputation in humanitarian work. विजयं सर्वकार्येषु, स्थानार्थलाभदं मतम् । नित्यं वृद्धिविजानीयात्, शक्तिरूपस्य-दर्शनात् ॥१॥
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२८
स्वप्नसारसमुच्चयं - भावार्थ-शक्ति से सब कार्य बन जाते हैं, स्थान और धनका लाभदायक है, सब वस्तुओंकी वृद्धि होती है ।।८१॥
Dream-Goddess of strength.
Effect-Success in all worldly things,gain of wealth and position, opulence. अर्थनाशं मनस्तापं, बुद्धि-स्त्रीनाशमेव च। मरणं शोकसन्तापं, शोकमूर्तिप्रदर्शनात् ॥८२॥ ___ भावार्थ-शोकमूर्ति से धनहानि, मनका ताप, बुद्धि और स्त्रीका नाश, मरण और शोक सन्ताप है ।।२।।
Dream-Idol in sorrowful posture. ___Effect-Loss of wealth, uneasiness of mind, loss of intellect, and of wife, death, grief, and troubles, mental agony. सुभिक्षं क्षेममारोग्यं, शस्यवृद्धिगुणागमः । ज्ञानं धनं च सम्प्राप्तः, पद्मिनीरूपदर्शनात् ॥८३॥
भावार्थ-पद्मिनी से सब प्रकारसे सुभिक्ष, कुशल, आरोग्य, खेतीकी वृद्धि, गुणोंका आगम, ज्ञान और धन है ।।३।।
Dream-Padmani (Beautiful lady).
Effect-Peace and plenty all round, welfare, health, abundance of farm produce, concentration of al! virtues, wealth and knowledge. द्रव्यनाशं भयं रोगं, प्रवासे व्याधिमेव च । निरर्थकं भवेत्कार्य, पापव्याधस्य दर्शनात् ॥८४॥
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स्वप्नसारसमुच्चय
२६ भावार्थ-शिकारी' से धननाश, भय, रोग, परदेशमें रोग और बना बनाया काम बिगड़ जाता है ॥४॥ ... Dream-Hunter.
Effect-Loss of money, danger, disease, loss of health in a foreign land. धनधान्यं ध्रुवं नित्यं, सात्विकाहारमाप्नुयात् । सिद्धयन्ति सर्वकार्यारिण, कुबेरस्वप्नदर्शनात् ॥८॥ ___ भावार्थ: कुबेर' से धनधान्य टिकाऊ रहता है, सात्विक भोजन पाता है, सब कार्यों की सिद्धि होती है ॥८॥
Dream-God of treasure
Effect-Inexhaustible wealth, simple and wholesome food, success in all matters. ध्रुवं मृत्युभंवेदुःखं, व्यसनं च महाभयम् । शोकं बुद्धिनाशं च, रासभस्वप्नदर्शनात् ॥८६॥ ___ भावार्थ-गधा से मृत्यु, दुख, दुर्दशा, महाभय, शोक और बुद्धि का नाश है ॥८६॥
Dream-Donkey. . Effect-Death, pain, disgrace, great danger, grief, loss of intellect.. अर्थनाशं मनस्तापं, तथा शत्रुसमागमः। दारुरणं गृहकलहं, बकस्वप्नस्य दर्शनात् ॥७॥ ___ भावार्थ-बुगलासे धननाश, मनको ताप, शत्रुओंसे मुठ भेड़, और घर में भयकर कलह है ॥८॥
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स्वप्नसारसमुच्चय Dream-Heron.
Effect-Loss of wealth, uneasiness of mind, clash with enemies, horrible dissensions in the family. धर्मकामार्थसम्प्राप्तिविभूतिश्च सविस्तरा । पुत्रं शिष्यमवाप्नोति, वासुदेवसुदर्शनात् ॥८॥
भावार्थ-कृष्ण वासुदेव से धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति लंबी चौड़ी विभूति, पुत्र और शिष्य प्राप्त हैं।
Dream-Krishna Vasudeva. ____Effect-Attainment of godliness, wealth and ambition, success in business, acquisition of property, sons and pupils. दारिद्रयं व्यसनं चैव, शोकसन्तापमेव च । दासत्वमर्थनाशं च, खंजस्वप्नस्य दर्शनात् ॥८६॥ ___ भावार्थ- लंगडा से दरिद्रता, दुर्दशा, शोक, सन्ताप, दासत्व और धनहानि है ।।६।। _Dream-Cripple.
Effect-Extreme poverty, disgrace, grief, mental pain, slavery, loss of money. अर्थनाशं मनस्तापं, कलहं शत्रुविग्रहम् । महादुःखं महाचिन्ता, मेषस्वप्नस्य दर्शनात् ॥१०॥
भावार्थ-मेंढा' से धनधान्य की हानि, मनका ताप, कलह शत्रोंसे खटपट, महादुःख, और महाचिन्ता है ।।६०।
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स्वप्नसारसमुच्चय
Dream-Ram.
Effect-Loss of wealth and property, uneasi ness of mind, quarrel, clash with enemies, grief, worries. सर्वसिद्धिर्भवेन्नित्यं, तुष्टिः पुष्टिः प्रजायते । कल्याणं सर्वकार्येषु, पाटलपटदर्शनात् ॥१॥
भावार्थ-लाल और श्वेत परिधान से सब प्रकारको सिद्धि, सन्तोष, और दृढ़ता, तथा सब कार्यों में कल्याण और शुभ है ॥११॥
Dream-Red and white silken dress. Effect-Success all round, contentment, firmness, fulfilment of all desires, prosperity. नास्ति कार्यस्य सम्प्राप्तिस्तथा सुखविनाशनम् । अकस्माज्जायते हानिः, कच्छपस्वप्नदर्शनात् ॥१२॥
भावार्थ-कछुवा से काममें बिगाड, सुखकी हानि, कोई अचानक विनाश का कारण बन "है ॥१२॥
Dream-Tortoise.
Effect-Failure of plans, loss of comforts, advent of some sudden calamity or disaster.
आरोग्यं बहुलं खाद्यं, ताम्बूलं च सुगंधिकम् । कार्यसिद्धिर्न संदेहः कल्पवृक्षस्य दर्शनात् ॥१३॥
भावार्थ-कल्पवृक्ष से आरोग्य और बहुत तरहके अच्छे
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३२
स्वप्नसारसमुच्चय भोजन, पान सुपारी, सुगन्ध-पदार्थ, और अटपटे काम के बन जाने में कोई भी सन्देह नहीं रहता।।१४।।
Dream-Tree of paradise.
Effect-Sound health various kinds of sayoury dishes beetle,leaves and nuts,scented substances, sure success in difficult tasks. कषायं दीर्घरोगं च, सर्वकार्यनिरर्थकम् । अर्थस्थापगमं चैव, रिच्छस्वप्नस्य दर्शनात् ॥६४॥ --
भावार्थ-रीछ ‘से आपसी कलह,और लम्बी बीमारी भोगनी पड़ती है, काम का बिगाड़ और धनका नाश होता है ।।६४
Dream-Bear.
Effect-Mutual quarrels,long and persistent illness, plans going wrong, loss of money. तुष्टिपुष्टिस्तथा वृद्धिः सर्वसौख्यप्रदायकः । महाप्रभुत्वसम्प्राप्तिरन्नपूर्णः [भोजनमूति]प्रदर्शनात् ।६५
भावार्थ-अन्नपूर्णक-भोजनमूर्ति से सब भाँति तुष्टि-पुष्टि, वृद्धि, सब तरह के सुख, और किसी बड़े पदकी प्राप्ति है । ६५॥
Dream-Godess of food and drink. Effect-Perfect satiation, vigour opuleuce, all sorts of ease and comforts, attainment of some rank and authorty. सर्वे भद्राणि पश्यन्ति, सर्वे सन्ति निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्ति, कदंबवृक्षदर्शनात् ॥६६ ॥
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स्वप्नसारसमुच्चय
भावार्थ-कदंब.. से, सब लोग अच्छे प्रकार कल्याणको देखते हैं, सब निरोगता पाते हैं, सब प्रकार का उदय अच्छा ही अच्छा देखते हैं।।६६॥
Dream-Kadamb tree. Effect-Honour, dignity, good health, uuiver sal well being and welfare. भयं च शोकसन्तापं, स्थानहानिस्तथैव च । जनक्षयमर्थनाशं, सारमेयस्य दर्शनात् ॥१७॥
भावार्थ-कुत्ता से भय, शोक, सन्ताप, अपने स्थान की हानि, जन क्षय और धननाश' है ।।७।।
Dream-Dog.
Effect--Fear, grief mental trouble, loss of home, death, loss of money. . धनवृद्धिः शुभं क्षेमं, क्षेत्रबृद्धिस्तथैव च । धर्मार्थकामलाभं च, वृषभस्वप्नदर्शनात् ॥१८॥ - भावार्थ-वृषभ से धनकी बढवारी, शुभ, कुशल, खेतोंकी उन्नति, धर्म-अर्थ और कामका लाभ है ।।६।।
Dream-Bull.
Effect-Increase in wealth, joy, prosperity, bumper hervests,attainment of godliness, wealth and desires. स्थानभ्रष्टमनिर्वाणमर्थनाशं तथैव च । गतस्यागमनं नास्ति, जलपोतस्य दर्शनात् ॥६॥
भावार्थ-सामुद्रिक जलयान से, स्थानभ्रष्ट, भटकन, धन नाश, घरसे गया हुआ आदमी फिर नलौटें IEET.
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स्वप्नसारसमुभाव Dream-Ship. - Effect--Loss of job, anxiety, loss of money, no hope of returning from journey. नरोऽपि लभते कन्यां, कन्याऽपि लभते पतिम् । अचिरेणैव कालेन, श्रुतदेवस्थानदर्शनात् ॥१०॥ ___ भावाथ-श्रुतदेव स्थान से आदमी को कन्या का लाभ, कन्या पति को पाती है, ॥१०॥
Dream-Precepters seat of learning. .. Effect-Birth of a daughter, consummation of marriage of daughter. ज्ञानविज्ञानसम्प्राप्तिः, कार्य शीघ्रच सिद्धयति । मित्रगोष्ठिधनदानं, सूर्यस्वप्नस्य दर्शनात् ॥१०१॥ सन्तापमशुभं चैव, कार्य क्षिप्रं विनश्यति । मित्रः सह विरोधः स्यात्, कर्करूपस्य दर्शनात् ।१०१॥ __ भावार्थ-सूर्य से ज्ञान विज्ञान पाता है, कार्य शीघ्र सिद्ध होता है, मित्रगोष्ठी, धनदान का अवसर पाता है ।।१०१।।
पाठन्तरमेंक. से सन्ताप, अशुभ, कामका बिगाड़, और मित्रोंके साथ विरोध होता है ।।१०१॥
Dream-Sun.
Effect-Acquisition of knowledge of art and science. Immediate success in work meeting with friends. Acquirement of wealth.
Dream-Crab. Effect-Grief, combination of unfavourable,
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सजसारसमुच्चय oircumstances, miscarriage of plans, quarrel with friends. प्रर्थनाशं मनस्तापं, रोगं शोकं तथैव च। मातृपितृवियोगं च, जंबुकानां निदर्शनात् ।१०२॥
भावार्थ-जंबुक से धनहानि, मनको ताप, रोग,शोका, मोर माता पिता का वियोग होता है ॥१०२।।
Dream-Jackal. • Effect-Loss of money, harassment, malady grief, loss of parents. देशान्तर्गतस्यापि, . पुनरागमनं द्रुतम । पुत्रलाभं जयं चैव, दिव्यरथविलोकनात् ।१०३॥ .. .: भावार्थ-दिव्यरथ से परदेश गया हुना वापिस लौटता है, पुत्रलाभ और विजय पाता है ।।१०३॥
Dream-Celestial chariot.
Effect-Safe return from journey. Birth of son, success. कल्यारणं शुभमारोग्यं, बंधुसाधुसमागमः । ध्यानवद्धिर्धन द्विवश्विकस्वप्नदर्शनात् ॥१०४।
भावार्थ-बिच्छु से कल्याण, शुभ, प्रारोग्य, भाई या साधुनोंका समागम, ध्यान वृद्धि और धनवृद्धि है ॥१०॥
Dream-Scorpion...
Effect-Prosperity, favourable auspice,good health, meeting of relatives and saints, inclination to or aptitude for meditation, increase in wealth.
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स्वप्नसारसमुच्चय प्रीतिकल्यारणश्रद्धानं, प्रमोदं शोकनाशनम् । महतीचार्थसम्प्राप्ति हस्पतिविलोकनात् ।१०॥
भावार्थ-वृहस्पति प्राचार्य से प्रीति, कल्याण, श्रद्धाकी वृद्धि होती है, प्रमोद पाता है शोक का नाश होता है । धनकी बहुत अधिक प्राप्ति होती है ॥१०॥
Dream-Teacher of gods.
Effects-Attachment to teachers, prosperity firmness in faith, respect, end of sorrows, gain of enormous wealth. नित्यं शोकं च रोगं च, ह्यर्थनाशं महाभयम् ।
प्रतिष्ठाहानिर्भवति, मकरस्यावलोकनात् ।१०६॥ . भावार्थ-मगर मच्छ से नित नये शोक, रोग, धननाश, महाभय और प्रतिष्ठा की हानि है ॥१०६॥
Dream-Crocodile.
Effect -- Every day fresh sorrow, disease, loss of money, overwhelming danger, loss of reputation. शुभं मोक्षं च कल्याणं. मनोरथसिद्धिस्तथा । धनधान्यादिवृद्धिश्व, स्वस्तिकावर्तदर्शनात् ।१०७॥ - भावार्थ-स्वस्तिक-पावत · से शुभमोक्षप्राप्ति, प्रात्मकल्याण और मनोरथ सिद्ध होते हैं, और धन धान्यादि की वृद्धि होती है।॥१०७॥
Dream-Swastika. " Effect - Attainment of salvation, peace of mind, success in missicn, increase in wealth..
समाप्तोऽयं ग्रन्थः
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________________ नागम प्रकाशक समितिकीटोअपक्क्रतियें 11 अंगभूत्र मूल्य केवल २५)रु., डाकव्यय 2 // गाथा संख्या 3500 पृष्ठ संख्या 1335 20-30 सा. सत्तागो 2155/8/FBAD पढमोसो। संपादगो पुप्फभिक्खू 12 अपाग वश्यक मूल्य केवल रु., डाकव्यय 2 या संख्या 3700 धृष्ट संख्या 1300 20-30 सा. बीओ अक्षी संपादगो पुप्फभिक्ख श्रीसूजागम प्रकाशक समिति म/ जैन स्थानक, ल्वे रोड गुड़गाँव-केंट, (E.P.)