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१७ – १ – इन वश महास्वप्नोंका फल - श्रमरणभगवान् महावीरने स्वप्न में जिस भयकर और तेजस्वी रूपवाले ताड जैसे लम्बे पिशाच को हराया था ( उसके फलस्वरूप ) श्रमरण भगवान् महावीर ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट किया ।
भगवान् महावीर शुक्लध्यानको पाकर
२- श्रमरण
विचरे ।
३ – विचित्र स्वसमय और परसमयके ( नाना विचार युक्त) द्वादशांग गरिपिटकका वर्णन किया, प्रतिपादन किया, दर्शाया, निदर्शन कराया, उपदर्शन कराया, ( आचरण शास्त्रसे दृष्टिवाद तक )
४ - ज्ञातपुत्र महावीरने दो प्रकारका धर्म (गृहस्थधर्मं मौर मुनिधर्म ) कहा ।
५ – साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध संघ कायम किया ।
६ – भुवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक मोर वैमानिक देवोंको प्रतिबोध दिया ।
७ – इस तरुण तपस्वी श्रमरणने श्रनादि अनन्त संसाररूप वनको पार किया ।
८- भगवान् महावीरको अनन्त, अनुत्तर, निरावरण, निर्व्याघात, समग्र, श्रौर परिपूर्ण केवलज्ञान- केवलदर्शन प्राप्त हुआ ।
६ - भगवान् की देवलोक, मनुष्यलोक और प्रसुरलोक में 'यह श्रमण भगवान् महावीर हैं,' ऐसी उदारकीर्ति, स्तुति, सन्मान और यश व्याप्त हुआ ।
१० - भगवान्ने केवली होकर देव मनुष्य और असुरोंकी परिषद् में धर्मका यथार्थ स्वरूप कहा ।