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उद्देश्यसे इस स्वप्नशास्त्रको स्वप्न के प्रेमियोंके लाभार्थ छपवाकर आपके करकमलोंमें अर्पण कर रहे हैं ।
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ग्रन्थ पुराना जँचता है, और चित्र भी । परन्तु इसके रचयिताने न कहीं अपना नाम दिया है, न मंगलाचरण किया है, न प्रशस्ति ही दी है । परन्तु १०७ चित्रों में मुनिका चित्र मुखवस्त्रिका सहित है, इससे जान पड़ता है कि इसका निर्माता कोई जैन महानुभाव है । श्लोकोंकी रचना में पुनरावृत्ति भी बहुत है, श्लोक गूढ और मार्मिक न होने के कारण यह भी जँचता है कि निर्माता साधारण योग्यता प्राप्त है । कुछ भी हो स्वप्नोंको गीर्वाणवाणी और चित्रोंमें चित्रित करके जनता जनार्दन पर उसने बड़ा उपकार किया है । यह स्वप्ननिर्देश साधारण पढ़े लिखे प्रादमियोंके लिए बड़े काम की चीज बन गई है । अगर हम नहीं भूलते हैं तो इस विषयका स्वतन्त्र पुस्तक हमारी समाज में यह पहली ही बार प्रगट हो रहा है ।
हम प्रत्येक श्लोकके साथ चित्र भी लगाने वाले थे । इसी श्रावश्यकताको पूरा करनेकेलिए हमने देहलीके कई ब्लाककारों से बातचीत की, तो उन्होंने कई हजार रुपएका खर्चा बताया । घोडे से पूँछ भारी समझकर हमने सचित्र प्रकाशन रोक दिया तथा मूल- हिन्दी और अंग्रेजी अनुवादसे अलंकृत करके इसे आपके हाथों सौंप रहे हैं । आशा है आप अपने वरद करयुगल में लेकर इसकी कदर करेंगे । यदि पठित समाजने इसे अपनाकर लाभ कमाया, साथ ही चित्रोंकी भी मांग आई तो हम अगले सस्करण में आपके सम्मुख चित्रावली सहित प्रस्तुत करने की चेष्टा करेगे ।
समिति के सब कार्यकर्ता, श्रीसुमित्त भिक्खू का अत्यन्त आभार मानते हैं । आपने वर्षोंके श्रुतज्ञानसागर मन्थन से यह प्रस्तावना