________________
प्रकाशकीय श्रीसूत्रागमप्रकाशकसमितिने अपने स्वावलम्बीय भगीरथ प्रयत्न द्वारा अबतक पवित्र सर्वज्ञवाणीसे समृद्ध बत्तीस आगमों को (मूल पाठ ७२००० गाथाओंको २६०० पेज में) 'सुत्तागमे' के रूप में दो भागों में प्रकाशित किया है और इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय प्रदेशोंमें अमूल्य पहुँचाकर इसका पुष्कल प्रचार किया है। वहांके उद्भट विद्वानोंने इसका चाव और भावसे स्वाध्याय करके तात्विक योग्यता वृद्धिका लाभ प्राप्त किया हैं। मि० डेनाल -H. H. इंगाल, डाक्टर-F. R. हाम, डा० नोरमन ब्राउन, प्रोफेसर युङ सो.उ.कावनाकुरा,डा० H. V. ग्लासनप्प, प्रोफेसर शिनको. उ. शै. की, डा० एलस्ड्रोफ, डा० गुस्टाव रोथ, प्रोफेसर ऐस. माटसुनामी, डा० हेज बेचर्ट, प्रोफेसर हा. जी.ई. मे. नाकामुरा, मि० जुङ, की. ची. ईमी. निशी, जैसे प्राकृत भाषा प्रवीण महाकोविदोंने इसकी मुक्तकण्ठसे खूब प्रशंसा की है। कइनोंने तो यहां तक कहा है कि 'सुत्तागमे' हमारे लिए तीसरी आंख के समान ज्ञान नेत्र सिद्ध हुअा है। किसीने यह दावेसे कहा है कि इस 'सुत्तागमे' को आभूषणकी तरह हम अलमारीमें बन्द न रक्खेंगे, बल्कि इसका स्वाध्याय करेंगे और इसके तत्वोंको समझ कर औरोंके अन्तस्तल तक पहुंचानेका सतत प्रयत्न करेंगे । उनके अभिप्रायोंने समाजका महागौरव बढ़ाया है।
इसके अतिरिक्त भरतपुर (राजस्थानके एक पुराने भंडार) से १०७ श्लोकोंवाला हमें सचित्र स्वप्नशास्त्र मिला । स्वप्न तो तीर्थंकरकी माताको भी पाते हैं, और गुजरातमें १४ स्वप्नोंके एक प्रभाती रागका स्तोत्र सुनने और पढ़नेकी परम्परा भी है,इसी