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तरह, गाढ़ी नींदमें चित्त विस्मृत हो जाने से काम नहीं करता; चित्तके काम नहीं करने से स्वप्न भी नहीं पाते । महाराज ! जैसा सूरज है वैसा शरीरको समझना चाहिए; जैसा कुहरा है वैसा गाढी नींदको समझना चाहिए; जैसी सूरज की किरणें हैं वैसा चित्त को समझना चाहिये।
महाराज ! दो अवस्थाओं में शरीरके बने रहने पर भी चित्त रुक जाता है :-(१) गाढी नींदमें चित्तके विस्मृत हो जाने (भवङ्ग गत) से शरीरके बने रहने पर भी चित्त बन्द हो जाता है। (२) निरोध-अवस्थामें शरीर के बने रहने पर भी चित्त बंद हो जाता है। . महाराज ! जाग्रत अवस्थामें चित्त चंचल खुला हुआ, प्रगट
और स्वच्छन्द होता है। इस अवस्थामें कोई निमित्त नहीं पाता। ..महाराज ! जैसे अपनेको छिपाकर रखने की इच्छा करने बाला पुरुष किसी खुले स्थानमें सबके सामने चुपचाप बैठकर दूसरे पुरुष से नजर बचाकर रहना चाहता है। महाराज ! इसी तरह, जागते हुये चित्त में दिव्य अर्थ नहीं पाते । इसीलिए जागता पुरुष स्वप्न नहीं देखता।
महाराज ! जिस प्रकार बुरी जीविकावाले, दुराचारी, पाप मित्र, शील--भ्रष्ट, कायर और उत्साहरहित भिक्षुके पास ज्ञानी लोगोंके गुण नहीं आते उसी प्रकार जागते हुए के पास दिव्य अर्थ नहीं आते । इसीलिये जागता हुआ पुरुष स्वप्न नहीं देखता।
भन्ते नागसेन ! क्या गाढी नींद के आदि, मध्य और अन्त होते हैं ?
हां महाराज ! गाढी नींदका आदि होता है, मध्य होता है, और अन्त भी होता है।