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२. प्रतान स्वप्न-लंबे चौड़े विस्तार वाला स्वप्न, वह यथातथ्य (सही) भी होता है और अन्यथा भी हो सकता है , इन दोनों स्वप्नों का परस्पर भेद मात्र विशेषण कृत है। __३. चिन्ता-जाग्रत अवस्थामें जिस अर्थका चिन्तन किया गया है, उसे स्वप्नमें देखना।
४. तद्विपरीत प्रश्न-जैसा स्वप्न देखा है, उससे विरुद्ध वस्तुकी जाग्रत अवस्था में प्राप्ति होना। जैसे स्वप्न में अशुचि पदार्थसे अपने पापको सना हुआ देखना और जाग्रत अवस्थामें किसी शुचि पदार्थका प्राप्त होना।
५. अव्यक्त दर्शन-स्वप्नमें किसी अस्पष्ट प्रर्थका अनुभवकरना।
६. स्वप्न कब देखा जाता है ? गोतमने फिर पूछा कि भगवन् ! जो प्राणी स्वप्न देखता है वह जाग्रत अवस्थामें देखता है या . सोई हुई अवस्था में ? ____गोतम ! सोया हुआ प्राणी स्वप्न नहीं देखता, जाग्रत ही देख सकता है, किन्तु कुछ सोते हुए और कुछ जागते हुए प्राणी स्वप्न देखता है।
७. जीव सोते हैं या जागते हैं या सोते जागते हैं ?-भगवन् ! जीव सोते भी हैं या जागते हैं या सोते जागते हैं। ..
गोतम ! जीव सोते भी हैं, जागते भी हैं और सोते जागते भी हैं।
सोना जागना द्रव्य और भावकी अपेक्षा दो प्रकारसे होता है, इसमें निद्रायुक्त द्रव्यसे सोया कहा जाता है, और विरत रहित अवस्थामें भावसे सोया कहलाता है। पूर्व के सूत्रों में स्वष्नकी बात नींदकी अपेक्षासे कही गई है, विरतिकी अपेक्षासे