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पूर्वज पूजा और यात्रा करना सब प्रकारकी वृद्धिका सूचक है । हृदयपर कमल उगा देखना गलित कुष्टसे शरीर पात होनेकी खबर देता है । चाँद 'पूणिमाको' और सूरजको निगलना या पी जाना दरिद्री के लिये भी उत्थान या राजपद पानेका सूचक है ।
[ स्वप्नों का प्रकरण वीतराग सर्वज्ञ भगवान् द्वारा सूत्रों में भी वर्णित है, जैसे भगवती सूत्रके सोलहवें शतकके छठवें उद्देशक में ज्ञातपुत्र- महावीर भगवान् से उनके बड़े शिष्य इन्द्रभूति ( गोतम गणधर ) ने स्वप्न सम्बन्धी चर्चा उठाकर इस प्रकार प्रश्न किये हैं । ]
प्रश्न
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- भगवन् ! स्वप्न कितने प्रकार से कहे गये हैं ?
उत्तर- गोतम ! स्वप्नदर्शन पांच प्रकार के होते हैं, जैसे— यथातथ्य स्वप्नदर्शन १. प्रतान स्वप्नदर्शन २. चिन्तास्वप्नदर्शन ३. तद्विपरीत स्वप्नदर्शन ४. और अव्यक्त स्वप्नदर्शन ५ ।
स्वप्न क्या हैं ? सुषुप्ति अवस्था में किसी अर्थ के विकल्पका अनुभव करना, स्वप्न कहलाता है, और उसके पांच प्रकार हैं।
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१ यथातथ्य – सत्य अथवा तात्विक, उसके दृष्टार्थ-विसंवादी और फलविसंवादी के भेदसे दो प्रकार हैं । स्वप्न में देखे हुए अर्थके अनुसार जाग्रत अवस्था में जो घटना होती है वह दृष्टार्थ विसंवादी है । जैसे किसी आदमीने स्वप्न में देखा कि 'मुझे किसीने हाथ पर फल रखकर अर्पण किया है' और वह जग कर उसीप्रकार देखे । स्वप्न के अनुसार जिसका फल तुरंत मिले वह फल विसंवादी है । जैसे कोई गौ, बैल, हाथी आदि के ऊपर अपनेको स्वप्न में चढ़ा देखता है, और कालान्तर में वह वैसी ही सम्पत्ति को पा जाय ।