Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 58
________________ ५३ .-उत्कर-कुरडी पर कमल जमना-चारों वर्गों में से बनियेके . घर जैन धर्म रह जायगा। ५-खद्योत(जुगनु)का चमकना-लोगोंमें सम्यक्त्वका उद्योत थोड़ासा रहकर शेष मिथ्यात्वका अंधकार व्याप्त होगी। है-तीन ओर सूखा सरोवर-तीन दिशाओंसे धर्मका लोप होकर दक्षिण दिशामें धर्म रहेगा। १०–सोनेकी थालीमें कुत्तेका खीर खाना-उत्तम कुलकी लक्ष्मी नटखट-चोर-ठग-धूत और हत्यारोंके हाथ लगेगी । वे मालामाल रहेंगे और सब पर धोंस जमायेंगे। ११-हाथीके ऊपर बन्दर सवार-राजा लोग नीच की चाकरी करेंगे, ऊँचके ऊपर नीच हुकूमत करेंगे। १२-समुद्रको मर्यादाका लोप होना-साधु-साध्वी, मां-बेटी, बहु बेटी, अपनी-अपनी मर्यादा छोड़ देंगे। १३–रथमें बछड़ोंका जुतकर रथ खींचना-छोटी आयुके बालक धर्ममें रस लेंगे। १४-रत्नोंकी ढेरी पर धूल पसरी हुई-साधु-साध्वियोंके जीवनपर ईर्षा-क्रोध-द्वेष-कलह-अहंकार और अहमहमिका क्रियाकी धूल पड़ जायगी, भेषधारी बहुत बढ़ जायेंगे। १५-राजकुमारको ऊँट पर मैले कुचले कपड़ों में-राजा लोग धर्म छोड़कर विलास और मिथ्यात्वके कुपथ पर चढ़ेंगे । १६-बिना महावतके हाथियोंका आपसमें लड़ना-मनमानी वर्षा न होगी, बिना सेनापतिकी सेनाकी भाँति सर्वज्ञ-केवलज्ञानी के बिना लोग मनोमुख होंगे, गुरुमुख नहीं। (नोट) रत्ननन्दी प्राचार्य और इनकी प्ररूपणामें कुछ असमानता है, शेष बातें कुछ हेर फेरसे मेल भी खाती हैं।

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