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दिगम्बरीय अपेक्षासे चन्द्रगुप्त राजाके सोलह स्वप्न :
[चन्द्रगुप्त राजाको सोलह स्वप्न आना,और भद्रबाहु प्राचार्य (चौदह पूर्व ज्ञान पाठक) द्वारा उनका फल बताना दोनों पक्ष मानते हैं । और इसका फल हजारों वर्ष बाद हुमा है, यह धारणा भी दोनों पक्षकी एक समान है। ] __ श्रीरत्ननन्दी प्राचार्य द्वारा रचित, स्वप्नके विषयमें, ‘भद्रबाह चरित्र' के दूसरे परिच्छेद में उन्होंने लिखा है कि
अवन्तीदेशान्तर्गत उज्जयनी नगरी में चन्द्रगुप्त राज्य करता था। वह एक बार नीरोग अवस्था में सुखकी नींद सो रहा था। उसे रातके पिछले पहर में, एक के बाद एक सोलह दुःस्वप्न अचरज से भरे हुए दिखाई दिए, जो कि उसे बड़े भयकारी अनुभूत हुए थे । वे इसप्रकार हैं:
१. कल्पवृक्षकी शाख का टूट कर गिरना। २. सूर्यंका अस्त होना। ३. छलनी के छेदोंकी तरह चन्द्रमण्डलका उदय । ४. बारह फनका साँप। ५. पीछे लौटकरजाताहुप्रादेवताओंकामनोहर विमान।
६. अपवित्र स्थान (कचार स्थान- उत्कर स्थान) कुरडी पर कमल खिले देखना।
७. नाचता हुआ भूतोंका समूह । ८. खद्योत-(जुगनु या पटबीजना) का प्रकाश। ६. अन्तमें थोडा सा जल तथा बीचमें सूखा सरोवर। १०. सोनेके बर्तन में कुत्तेका पायस-खीर भोजन करना।