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(२) कल्पवृक्षका तना टूटना-अबसे आगे कोई राजा जिनमुद्रा
धारक-मुनि होकर संयमवान्
न निमटेगा। (३) बहुत छेदवाला महाचन्द्रमण्डल-वीतरागके मतमें अनेक मतान्तर होंगे। संसार बहुरंगी-बहुमनमत होगा।
(४) बारहफनका साँप-एक. भयंक र बारह बरसका अकाल पड़ेगा। .. (५) देवताओं के विमान का वापस लौटना-पंचमकाल कलियुगमें भू लोक पर देवता न आयँगे । विद्याधर और चरणमुनि भी न होंगे।
६) कुरडी पर कमल उगना-हीन जाति के लोग जिनमत धारण करेंगे । क्षत्रिय आदि उत्तम कुलसे प्रायः जिनमत उठ जायगा।
(७) भूत-भूतनियोंका नाच-मनुष्य नीचजातिके देवों में अधिक विश्वास रखने लगेंगे। .
(८) खद्योत-जुगनूकी चमक-जिन सूत्र के उपदेश करने वाले मिथ्यात्वी होंगे, और जिन धर्म भी कहीं-कहीं रहेगा।
(8) जल रहित थोड़े जलसे युक्त सरोवर-जहां तीर्थंकर भगवान के पांच कल्याणक हुए हैं वहाँ जिनधर्म न रहेगा, कहीं दक्षिण में कुछ धर्म रहेगा।
(१०) सोने के पात्रमें कुत्तेका खीर भोजन करना-ऊंचकी लक्ष्मीका उपभोग नीच लोग करेंगे । ऊचकी लक्ष्मी नीचके घर जायेगी । अर्थात् कुलीन पुरुषों को लक्ष्मी दुष्प्राप्य हो जायेगी।
(११) ऊंचे हाथी पर बंदर बैठना--नीच कुलके उत्पन्न आदमी राज्य करेंगे । क्षत्रिय लोग राज्यभ्रष्ट हो जायेंगे।