Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ उसका आदि क्या है, मध्य क्या है और अन्त क्या है ? महाराज! शरीर थका मांदा और टूटता हुआ सा मालूम होता है, कमजोरी मालूम होने लगती है, शरीर मन्द और ढीला पड जाता है-यही उसका आदि है। महाराज ! बन्दरकी नींदकी तरह प्राधा जागता है और प्राधा सोता है-यह उसका मध्य है। महाराज ! अपनेको बिल्कुल भूल जाता है, विस्मृत हो जाता है (भवङ्गगत)-यह अन्त है। महाराज ! इसमें मो मध्यकी अवस्था है उसी में स्वप्न आते हैं। महाराज ! कोई संयम-शील, अपनेको वशमें रखनेवाला, शान्तचित्त वाला, धर्मधीर तथा दृढविचारी लोगोंके हल्ले गुल्लेसे बहुत दूर जंगल में जाकर गहरी बातोंका अनुसन्धान करे। वह वहाँ सो नहीं जावे, वह वहाँ एक मनसे उसी गहरी समस्याको सुलझाने में लगा रहे । महाराज! इसीतरह सोने और जागने की बीच की अवस्था में पडा बन्दरकी नींद लेता हुअा पुरुष स्वप्न देखता है। महाराज ! जो लोगोंका हल्ला गुल्ला है वैसे ही जाग्रत अवस्थाको समझना चाहिये। जो एकान्त जंगल है वैसे ही बन्दरकी नींदको समझना चाहिये । जो हल्ले गुल्ले से हट, नींदको रोक, बीच की अवस्थामें रहकर गहरी बातका मनन करना है, वैसी ही बन्दरकी नींद वाली हालतमें स्वप्न माते हैं। . [संवेगरंगशाला ग्रन्थके प्रायुज्ञानाधिकारमें ११ कारण शेष प्रायुका ज्ञान प्राप्त करनेके बताये हैं, उस में आठवाँ द्वार (प्रकरण) स्वप्नके द्वारा प्रायुका माप प्राप्त करनेके बारे में लिखा है, उसके कुछ अवतरण । तिल-मसिलित्तअंगों- विलुलियकेसो य विसएगो सुविणे। खर-करहनो जमदिसीगामी जइ तो कि लहु मरणं १२७

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100