Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 54
________________ ૪૨ । तीसरे पहर में आया हुप्रा स्वप्न, दो महीने में फलता है, रात के चौथे पहर में देखा गया स्वप्न एक मासमें फलता है । अन्तकी दो घडी शेष रहे देखा गया स्वप्न दश या सात दिनमें फलप्रद होता है ॥ १६६ ॥ स्वप्नं सुत्वा यदि पश्यासि पापं मृगः सृति यति धावादजुष्टाम् । परिक्षवाच्छकुनेः पापवादाद्यं मरिणर्वरणा वारयिष्यते ॥६॥ अरात्यास्त्वा निऋ त्या अभिचारादथो भयात् । मृत्योरोजीयसो वधाद् वरणो वारयिष्यते । ( ७१०, ३, ६, ७, P.१४६) [ अथर्ववेद ] संखपडहसद्दो य । पसत्थाइं ।। १०६ ।। मोयगा दहि । सिद्धमत्थं वियागरे ॥ ११०॥ (प्रोघ नियुक्ति भद्रबाहु श्राचार्य कृत) 'कालज्ञान' नामक अप्रकाशित नन्दीतूरं पुराणस्स दंसरणं भिंगारछत्तचामरघयप्पडागा समरण संजयं दतं सुमरणं मी घटं पडागं च [ शम्भुनाथ कृत पुस्तकके मत से स्वप्न विचार] इष्टफल और अनिष्टफल देने वाले दो प्रकारके स्वप्न होते हैं सामान्यतः इष्टफल कारक - नदी और समुद्रको पार करना, प्राकाश गमन करना, या उडना, ग्रह, नक्षत्र, सूर्य और चंद्रके मण्डलका देखना, किसी ऊँचे मकान पर चढना, महलकी अटारी तक पहुंचना, स्वप्न में मदिरा पीना, चर्बी और प्रामिष भक्षण करना, रत्नोंसे जड़े हुए आभूषण पहनना, ब्राह्मण, राजा प्रौर स्त्रीको अच्छे प्राभरण पहने देखना, बैल - हाथी - पहाड़ या खिरनी के वृक्षपर चढ़ना दर्पण - श्रामिष और मालाका प्राप्त करना, सफेद कपड़े और फूलोंका पहनना, इत्यादि

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