Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 50
________________ पा तिलवा जानकर उठते हैं कि मैं ऐसा फल निकालू गा ? - नहीं भन्ते ! बल्कि ज्योतिषी लोग ही फुन्सी उठने के स्थान के अनुसार देख भाल कर बताते हैं इसका ऐसा-ऐसा फल होगा। महाराज ! इसी तरह, जो चित्त स्वप्न देखता है वह नहीं जानता है कि इसका फल कैसा होगा-शान्तिकर या भयप्रद ? कुछ ऐसा वैसा स्वप्न देखकर वह दूसरों को बताता है । वे उसका अर्थ लगाते हैं। । भन्ते नागसेन ! जो स्वप्न देखता है, वह सोते हुए देखता है या जागते हुए? महाराज ! जो स्वप्न देखता है वह तो सोते हुए देखता है पौर न जागते हुए। किन्तु गाढ नींदके हलका हो जाने पर जो एक खुमारी की सी अवस्था होती है उसी में स्वप्न आते हैं। महाराज ! घोर नींद पड़ जाने पर चित्त विस्मृत (भवङ्ग गत) हो जाता है, विस्मृत चित्त काम नहीं करता, और तब उसे सुख दुखका पता भी नहीं होता । जब चित्त कुछ नहीं जानता है तो उसे स्वप्न भी नहीं पाते । चित्तके काम करने ही पर स्वप्न पाते हैं। ___ महाराज ! काले अंधेरेमें स्वच्छ दर्पण पर भी परछाँही नहीं पड़ती। महाराज ! वैसे ही, गाढ़ नींदमें चित्तके विस्मृत हो जानेपर शरीर बने रहने पर भी चित्त काम नहीं करता; जब चित्त काम ही नहीं करता तो स्वप्न भी नहीं पाते। महाराज ! जैसा दर्पण है वैसो शरीरको समझना चाहिए; जैसा प्रकाश है वैसा चित्त को समझना चाहिए। महाराज ! खूब कुहरा छा जानेपर सूरज की चमक कुछ काम नहीं करती, सूरजकी किरणें दब जाती हैं, सूरज की किरणें दब जाने पर रोशनी ही नहीं होती। महाराज ! इसी

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