Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 49
________________ बाली बात स्वयं उसके चित्तमें चली माती हैं ? या कोई दूसरा आकर उसे बता जाता है ? महाराज ! न तो उसका चित्त बाहर जाकर भविष्य में होनेवाली घटनाओंकी खबर ले आता है, और न कोई दूसरा पाकर उसे बता जाता है । भविष्यमें होनेवाली बातें स्वयं उस के चित्तमें चली आती हैं। दर्पण-महाराज ! दर्पण स्वयं बाहरके बिबको खोजकर अपने में नहीं लेता; और न कोई दूसरा दर्पणमें बिंब डाल देता है किन्तु, बाहर की चीजोंकी छाया स्वयं जाकर दर्पण में प्रतिबिंबित बनाती है। महाराज ! इसी तरह न तो उसका चित्त बाहर जाकर भविष्यमें होनेवाली घटनाओंकी खबर ले पाता है, और न कोई दूसरा आकर उसे बता जाता है। भविष्यमें होनेवाली बातें स्वयं ही जहां कहीं से पाकर उसके चित्त में प्रतिबिंबित हो जाती हैं। ___भन्ते नागसेन ! जो चित्त स्वप्न देखता है, क्या वह जानता है कि इसका फल कैसा होगा, शान्तिकर या भयप्रद ? ____ महाराज ! वह नहीं जानता कि इसका फल कैसा होगा? शान्तिकर या भयप्रद । कुछ ऐसा वैसा स्वप्न देखकर वह दूसरों को बताता है । वे उसका अर्थ लगाते हैं। भन्ते नागसेन ! बहुत अच्छा, कृपया एक उदाहरण देकर समझा तो सही। महाराज ! मनुष्य के शरीरमें तिल, फुसी, या दाद हो जाता है उसके लाभ के लिए या घाटे के लिए, नामके लिए या बदनामीके लिए, तारीफके लिए या शिकायत के लिए, सुख के लिए, या दुखके लिए होता है महाराज ! तो क्या वे दाद, फुसी

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