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(१४) बादलोंमें छुपा हुमा सूर्य-पंचमकालमें सूर्यके समान केवलज्ञान न होगा।
(१५) सूखा वृक्ष-स्त्री-पुरुष चरित्रभ्रष्ट हो जायेंगे।
(१६) पुराने पत्तोंका देखना-महा मौषधियोंका रस नष्ट हो जायगा।
भरत ! इनस्वप्नोंको तू दूरविपाकी अर्थात् बहुत समय के बाद फल देनेवाला समझ ! इसलिए इन स्वप्नोंका इस वर्तमान समयका कोई दोष न होगा। इनका फल पंचमकालमें होगा। भरत चक्रवर्तीने अयोध्या में जाकर इन खोटे स्वप्नोंसे होनेवाले अनिष्टकी शान्तिके लिए कुछ दानपुण्य करवाया। ___ इन स्वप्नोंका फल भरत को न होकर कलियुगीन लोगोंको हुमा और भगवान्ने स्वयं यह भी कहा कि ये दूरविपाकी फल देंगे। वैसे इनका कोई फल तुझे न होगा। वैसे भी स्पष्ट है, इसका फल देखनेवाले को कुछ भी न हुमा । अतः स्वविपाकी न होकर पर विपाकी स्वप्न भी हो सकते हैं। .. ..'
[सींघी जैनग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित ११ वीं शती के श्रीदुर्गदेव प्राचार्य कृत प्राकृत ग्रन्थ में उनके अपने मतसे स्वप्न द्वारा मरणका समाधान इसप्रकार किया जाता है ] ।
वाय-कफ-पित्तरहिमो. समधाऊ जो जवेइ इयमंतं।
सुत्तो निसाए पेच्छइ, सुमिणाई तत्थ पभरणेमि १०८ स० छा०-वातकफपित्तरहितः समधातुर्यो जपतीमं मंत्रम् ।।
सुप्तो निशायां पश्यति, स्वप्नांस्तान् प्रभणामि ।।१०।। भावार्थ-जिसके शरीरकी सब धातुएँ सम हैं, वात, पित्त और कफका प्रकोप नहीं है, यदि वह आरोग्य व्यक्ति यह मंत्र पढे और सोते हये रात्रि में जो स्वप्न देखता है उस पर विचार करता हूं ॥१०८।। अंगोपांगोंकी शुद्धि पूर्वक सफेद कपड़े पहनकर