Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 42
________________ चक्रवर्तीको भी एक बार रातके पिछले पहर में १६ स्वत पाए थे। वे इस प्रेकार हैं १ सिंह, २ सिंह का बच्चा, ३ हायी के लबादेसे लदकर लचका हुअा घोड़ा, ४ सूखे पत्ते खाने वाले बकरे, ५ हाथी पर बढ़ा बानर, ६ उल्लूको सताने वाला कौवा, ७ नाचते भूत, ८ बीचमें सूखा हुआ, और किनारों पर भरे पानीका तालाब, ६ धूलसे भरे हुए रत्नों का ढेर, १० नैवेद्य खानेवाला कुत्ता, ११ जवान बैल, १२ मण्डलसे युक्त चन्द्रमा, १३ आपसमें दो मिले हुए बैल, १४ मेघोंसे ढंका हुआ सूर्य, १५ छाया रहित सूखा हुआ वृक्ष, १६ पुराने पत्तों का समूह (ढेर)। श्रीभरतके पूछा जानेपर श्रीऋषभदेव भगवान द्वारा स्वप्नोंका फल बताना- भगवान्ने स्वप्नोंके दो भेद कहे हैं । स्वस्थ पौर अस्वस्थ अवस्थामें दिखने वाले । धातुओंकी समानता रहते हुए दिखनेवाले स्वप्न स्वस्थ हैं, और धातुओं की विषमता न्यूनाधिकता रहते हुए जो स्वप्न पाते हैं वे अस्वस्थ अवस्थाके स्वप्न होते हैं । स्वस्थ अवस्था के स्वप्न सच्चे होते हैं। मोर दूसरे प्रकार के निरर्थक ! स्वप्नोंके और भी दो प्रकार हैं, एक दोष (वायु-पित्त-कफ) से होने वाले और दूसरे देवसे आनेवाले। दोषों के प्रकोपसे आने वाले स्वप्न झूठे और देव(अनुष्ठान)से दिखनेवाले सच्चे । भगवान्ने उन १६ स्वप्नों के फल ये कहे हैं-- (१) पहाड़ पर चढे २३ सिंह-महावीरको छोड़कर २३ तीर्थकरोंके समयमें दुष्टनय पैदा न होंगे। (२) सिंह के बच्चेके पीछे चलने वाले हरिणोंका वर्ग-महावीर के तीर्थ में परिग्रहधारी कुलिंगी होंगे।

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