Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 23
________________ करने को तैयार न था,कि वह मुसलमानों से घृणा करता है। लेकिन उसने चुपचाप रहकर ही अपने आप में परिवर्तन करने की कोशिश की। उसने मुस्लिमलीग विरोधी बातें कहना-सुनना बंद कर दिया, और रात को सोते समय सभी मुसलमानों के प्रति सद्भावना लाने की चेष्टा की। इस प्रकार के अभ्यास का परिणाम यह हुआ, कि उस समय के बाद उसे फिर कभी हिन्दू-मुसलमानों के दंगों का स्वप्न न हुआ। इतना ही नहीं, दूसरे अनेक प्रकार के भयावने अथवा दुःखद स्वप्न भी दिखाई पड़ने बंद हो गये । शत्रुओं द्वारा त्रस्त होने के तथा दूसरे दुःखदायी स्वप्न भी मैत्रीभावना के अभ्यास से कम किये जा सकते हैं। पानी में तैरना, हवामें उड़ना, पहाड़ों पर चढ़ना, खोहोंमें घुसना, पीड़ित होकर भागना और बच्चों के साथ खेलना आदि सभी स्वप्न अतृप्त काम-वासना की तृप्ति के सूचक होते हैं। वैर का स्थायी भाव हमारी जागरित अवस्था में हमें शत्रुके नाश के लिये अनेक योजनाएं बनाने के लिये प्रेरित करता है। हम उसका विनाश चाहते हैं । हम अपने मन में किसी से वैर के कारण अपने विनाश की कल्पना नहीं करते, पर स्वप्न में हमारा मन शत्रुओं द्वारा त्रस्त होने का अनुभव हमें कराता है, अर्थात् स्वप्न में हमारी कल्पना कभी-कभी हमारे ही प्रतिकूल होती है । जागरित अवस्था में हम दूसरों से घृणा करते हैं, स्वप्नावस्था में दूसरों को अपने प्रति करते पाते हैं। जागरितअवस्था में धन-संचय की कल्पना हमारे मन में आती है तब स्वप्नावस्था में धन के चुराये जाने अथवा उसके विनाश की कल्पना हमारे मन में प्राती है। जागरितावस्था में हम दूसरे को मृत्यु चाहते हैं, स्वप्नावस्था में अपनी ही मृत्यु देखते हैं । यदि किसी मनुष्य को किसी विशेष प्रकार की पीड़ा है' तो

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