Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 31
________________ २६ बिल्ली, श्वान, दौस्थ्य, संगीत, अग्निपरीक्षा, भस्म, अस्थि, वमन, तम, दुःस्त्री, चर्म, रक्त, अश्म, वोमन, कलह, विविक्तदृष्टि, जलशोष, भूकम्प, गृहयुद्ध, निर्वाण, भंग, भूमंजन, तारापतन सूर्यचंद्रस्फोट, महावायु, महाताप, विस्फोट, दुर्वाक्य, ये ४२ स्वप्न शुभसूचक माने गये हैं । ३० उत्तम स्वप्न – अर्हन्, बुद्ध, हरि, कृष्ण, शंभु, नृप, ब्रह्मा, स्कंध, गणेश, लक्ष्मी, गौरी, हाथी, गौ, वृषभ, चन्द्र, सूर्य, विमान, भवन, अग्नि, समुद्र, सरोवर, सिंह, रत्नोंका, ढेर, गिरि, ध्वज, जलपूर्णघट, पुरीष, मांस, मत्स्य, कल्पद्र ुम, ये तीस स्वप्न उत्तम फल देनेवाले गिने जाते हैं । दोनों प्रकार के स्वप्नों का योग ७२ होता है । स्वप्न फल किसे मिलता है— जो आदमी स्थिर चित्त, जितेन्द्रिय, शान्तमुद्रा, धर्मभाव में रुचि रखनेवाला, धर्मानुरागी, प्रामाणिक, सत्यवादी, दयालु, श्रद्धालु और गृहस्थोचित उत्तम २१ गुरण समृद्ध है, उसे जो स्वप्न आता है, निरर्थक नहीं जाता, कर्मानुसार अच्छा या बुरा फल यथासमय तुरंत पाता है । यदि रातके पहले पहर में स्वप्न देखा गया है तो उसका फल एकवर्ष में प्राप्त होता है। दूसरे पहर में देखे तो छ मास, तीसरे पहर में देखे तो एक मास, रातके चौथे पहर में देखे तो एक मास, रात्री अन्तिम दो घड़ीके तड़के देखे तो दश दिन, और सूर्य उदय होते-होते स्वप्न देखे तो उसका तत्काल फल मिलता है । बुरा स्वप्न आनेपर सोया पडा रहे तो बुरा नहीं और उसे किसी के आगे न कहे, यथासंभव उसे भूल जाना चाहिये । उत्तम स्वप्न होनेपर गुरुजनोंके सम्मुख विनयावनत होकर निवेदन करे । यदि कोई योग्य आदमी न मिले तो गायके कान में सुना देना उचित है । प्रच्छा स्वप्न देखकर सो जानेकी भूल कर बैठे

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