Book Title: Swapna Sara Samucchay
Author(s): Durgaprasad Jain
Publisher: Sutragam Prakashak Samiti

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Page 14
________________ करणका सच्चा चित्र देख सकते हैं और आत्मोन्नति कर सकते हैं। स्वप्नोंका अभ्यास करनेसे हम अपने अचेतन अन्तःकरण में दबे हुए विचारों एवं ग्रन्थियोंको जान सकते हैं और दूसरे व्यक्तियोंके सच्चे प्रश्न को भी समझ सकते हैं। स्वप्नोंका विश्लेषण मुक्त साहचर्यकी पद्धतिसे किया जाता है। इसकी सहायता से हम नियामक पुलिससे बच सकते हैं । मुक्त साहचर्य की पद्धतिमें, प्रथम शून्य मन रखकर स्वप्नके किसी एक विचारको जो हमें याद होता है, पकड़ लिया जाता है और उसके बाद विचारोंको स्वतन्त्ररूपसे इधर-उधर विचरने दिया जाता है । इसप्रकार स्वप्न में देखी हुई बिल्ली बहन का प्रतीक बन सकती है और स्वप्न में अनुभव किया गया भग्न-प्रेम किसी मपूर्ण अभिलाषाका द्योतक हो सकता है ! स्वप्न अटपटी वस्तु है और ये इच्छानुसार भी आते हैं और नहीं भी। साथ ही किसी अकस्मात्की सूचना भी करते हैं। स्वप्नानुसार उत्थान और पतनका इतिहास भी बनता है। तब इसके बारे में कुछ विचारोंको वितानके साथ मागेकी पंक्तियोंसे जाननेका प्रयत्न करेंगे। स्वप्नोंका गंभीर रहस्य संसारमें ऐसा कौन व्यक्ति होगा जिसने स्वप्न न देखा हो। प्रायः प्रत्येक व्यक्ति दो-एक दिनमें या कभी नित्य ही स्वप्नोंकी अचरज भरी दुनिया में घूम लेता है। मनुष्यको स्वप्न कभी गहरी नींदमें दिखलाई नहीं देते, क्योकि यह अवस्था उसकी पूरी शान्ति तथा स्वप्न रहित अवस्था होती है और मनुष्यका संबन्ध जाग्रत संसारसे छूट जाता है। यों कहना चाहिए कि जबतक वह नींदरूपी गहरे कुएँ में रहता है तब तक तो उसे स्वप्न दिखाई नहीं पडते, किन्तु जब आदमी उस तलसे ऊपर

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