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॥अथश्रीसिद्धान्ताराधनकोनचत्वारिंशतिका ॥
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श्री गुरुन्योनमः ॥ श्री जिनागम बोहि ॥ संसारार्णवतारणं । ममेदं दर्शितं येन ॥ तस्मै | श्री गुरवेनमः ॥१॥ देशी अढीयानी ढाल ॥ श्री गुरु जगे दिनकार, ज्ञान किरण गणधार ॥ नाव | प्रगट कर ए, संसय तम हर ए ॥२॥ गुरु हिमकर उपमान, सौम्यकला सुप्रधान॥ वाणिय अमिय कर ए, देखत तनु र ए ॥३॥ दीपक जेम दीपंत, आपण पर दीपंत॥ अवगुण सविदह ए। गुण गौरव लह ए ॥॥ श्री गुरु कहीये देव, जेने सेवे देव ॥ अन्नगति मीये ए, आण न खमिये ए | ॥५॥ ढाल फागनी ॥ श्री गुरु समतुल ममतुल, दिनकर निशिथ प्रकाश॥ हिम करन करे दिनपह, | पवन न दीप उल्हास ॥ए जग दीसे उत्तम, उपम देशत हो ॥ सर्व थकी गुरु जामलि, श्राम
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