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जान्यो तो न जाय इह कह्यो गयो जाय कैसे लख्यो नहुँ जाय इह श्रातमा श्रजंग है,
और मतवादी बकवादी क, एक अंग जैनी स्यादवादी कहै ब्रह्म सरवंग है ॥ १९ ॥ कोउ | शिष्य सुगुरुसौं कहै कर जोरि करि स्वामि मोही ब्रह्मको स्वरूप सममाश्य, कोन नांति जान्यो ||
जाय काइते प्रमान्यो जाय कैसें करि मान्यौ जाय कैसे उहिराश्यै॥ गुरु कहैं तेरो ब्रह्म तेरे घट- है। | बीच तातें निपट नगीच दूर कहांलों बताश्य, पूरण प्रधान बश्यो तेरे घट आन सो तो परजै|
प्रमान ग्यान चेतनात पाश्यै ॥ २० ॥ खट गुनी हानि वृद्धि कही व्यवहार मांहि निहमें एक | दुजो नेद श्हां नांही है, वरण विकार औ आकार सब पुग्गलमैं वह निराकार ब्रह्म जहां देखो ताही ॥ रूप है न रेखहै न वरण विशेष ष ऐसो है अलेख जामै धूप है न ही है, अरे मन क्रूर कहा खोजत फिरत पूर तेरे हजूर नूर तेरो तुझ मांही है ॥ २१ ॥ गरु नयेते कलु गरु |
श्री कह्यौ न जात हरुये नयेतें कबु हरु नाही नयो, जब देह धारी तब जयो नर नारी फिर | जब देहि टारी तब जैसैंको तैसो रह्यौ ॥ किये लेख नामा नयो बालक जवान वह पुरुष प्रधान
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