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कही ॥ पात्रै सुधारस जहां अष्ट दल कमज तहां इद हंस वसे निज गम उही, अखय अमोल सुख-सिंधु में करे कलोल सो परमातमा परमब्रह्म लहरी ॥ ४५ ॥ रमी रह्यो घट घट ताहीते कहायो राम व्यापित सकल विश्व तातैं विष्णु है सही, आप अनादि ब्रह्म तादितैं कदायो ब्रह्म शिवपद साधे तातें शिवरूप है यही ॥ जीते सब रागद्वेष ताहि | तैं कहायौ जिन बुद्धिकै प्रकाश नए बुद्ध पदवी लही, नय व्यवहारमैं अनंत नाम तमाके निचै विचारे परमातमा सबे वही ॥ ४६ ॥ लक्ष लक्ष कोम कोम कंचनकौं जो जोन वांके गढ तो तो केते केते लीन्द राज पदार चेरे राखे चाकर घनेरे चमे छावल ढोरे द्वारे गये गाढे गजराज, मंदिरके अंदर में रही बाल यावत रसाल माल सुखके समाज साज, पाहू प्रभुके जजन बिन सबही नइ छाकाज ॥ ४७ ॥ वचनकी
ऐसी ऋद्धिहु पै कहुहु न म | रचना रची है गणधरदेव रथतैं आप जिनराज जू वखानी है, उपति खपति थिति त्रिपदी त्रिनंग अंग द्वादश प्रमाण नय सातमें समानी है; थापना उछेद खट द्रव्य नव तत्व जेद प्रत्यक्ष