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मनःपर्यवज्ञान जघन्यत एक समय,उत्कृष्टोतो देशत उणोपूर्व कोमी एक एक समय ते केम?, जेवारे अप्रमत्त गुणगणे वर्तता मनः पर्यत्रज्ञान उपजीने जाय त्यां एक समय जाणवो.
केवलज्ञाननाधणीने केवलझान सादि अने अनंत होय मति अज्ञान अने श्रुत अज्ञानना नांगा काल आश्रीत्रण जाणवा एक अनादि अने अनंत ए अन्नव्यने १, अनादि अने सांत एनव्यने २, सादि अने सांत जे समकित थकी पमी वली चमे तेने ३. जे सादि अने सांत ने तेने जघन्यत श्रेकअंतमुईत, उत्कृष्टोतो अर्द्ध पुद्गल जाणवो.
हवे विनंग ज्ञाननो काल कहे जे. जघन्यतो एक समय, उत्कृष्टोतो सागर ३३ मारा. म. है|| नुष्यनो आयुष्य पूर्वकोमि एक पाली पड़ी अपश्गणे नरके जाय एटले एक पूर्वकोमिने तेत्रीस सागरोपम थाय.
हवे ए आग्ज्ञाननो अांतरो लखीये बीये,मतिकाननो अांतरो जघन्यत अंतर्मुहूर्न १,उत्कृप्टो तो छ पुजल माठेरो. एवं एणेज प्रमाणे श्रुतझान,अवधिज्ञान,मनःपर्यवज्ञाननो पण अांतरो
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