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रास.
॥१३२॥
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|अतिशय विणु नवि जाणीये, सिद्ध तणो ए गण ।। राग तिणे प्रतिमा ग्वी, नक्ति तणो अहि | नाण ॥३४॥ कर्मयोगे शेजो चम्, गणु सफल अवतार ॥ दर्शन देखी वीन, वली वली नानी मल्हार ॥ ३५ ॥ रिसह जिणेसर जगतिलो, जयो जयो जगदीस ॥ यो दरिसण करुणा करी, पूरो मनह जगीस।३६॥ढाल। स्वामी तुम दरिसण विना तो नमरली,नवनवनम्यो अनंत तो। वेरी विशय कसाय वसे तो नमरली, चउगति पुःख सहंत तो॥दश अष्टांते दोहिलो तो जमरली, लाध्यो | नरनव सारतो ॥ आर्यदेशमा मुज हुवो तो नमरली, उत्तम कुळ अवतार तो॥३७॥ सद्गुरु देशना सांजली तो नमरती, जाएयो जिनवर धर्म तो। पूरो पाली नवि शकुं तो नमरली, पोते बहुला कर्म तो ॥ कर्मह गंजण जाणीये तो नमरली, नव जण जगनाथ तो । हुं तुम शरणे आवीयो तो नमरली, स्वामी ग्रहो मुज हाथतो ॥ ३० ॥ तुम पसाय पामीयो तो नमरली, उस्तर नत्र
S॥१३२॥ दुःख पारतो । जो प्रनु तुमे उवेखशो तो नमरली, तो कुण करस्ये सार तो॥ हुं प्रजुसेवक तुम तणो तो नमरली, उलग करुं प्रसाद तो जाणु ते तुम मन धरूं तो नमरली, जन हुकर पसाद
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