________________
पर्याय, एक व्यंजनपर्याय एक अर्थ पर्याय, त्यां लोक व्यारी धर्मास्तिकाय लोकाकार रूप परिणमे ते शुद्धव्यंजनपर्याय, तथा धर्मद्रव्यनो गति लक्षण जे गुण ते षट्गुण दानिवृद्धि रूप परिणमे ते शुद्धार्थ पर्याय. धर्मास्तिकाय द्रव्यने विषे अशुद्धगुणपर्याय नथी. धर्मास्तिकाय उत्पाद व्यय प्रोव्य संयुक्त बे. द्रव्य थकी ध्रुव बे, पर्याय थकी उतत्ति नाशरूप बे. ॥ इति धर्मास्तिकाय व्याख्यानं ॥
अथ अधर्मास्तिकाय द्रव्य शुद्ध अखंग लोक प्रमाण ठे. तेनी स्थितिलक्षण शुद्ध गुण बे, तेना पर्याय एक व्यंजनपर्याय बोजो अर्थपर्याय त्यां वर्मास्तिकायद्रव्य लोक प्रमाण लोकने
कारे परिणमे ते शुद्धव्यंजनपर्याय तथा अधर्मास्तिकायनो स्थिति लक्षण जे गुण ते षट् गुण दानि वृद्धि रूप परिणमे ते शुद्ध अर्थपर्याय कहीए. अधर्मास्तिकायने पण अशुद्धगुण पर्याय नथी. अधर्मास्तिकाय द्रव्य उत्पाद व्यय प्रोव्य संयुक्त बे. द्रव्य थकी नित्य पर्याय थकी उत्तत्ति नाश रूप बे. इति अधर्मास्तिकाय व्याख्यानं ॥