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प्रनोत्तरा
__ अथ काल द्रव्य व्याख्यानं ॥ शुद्ध काल द्रव्यना अणुया एक एक आकाश प्रदेशने विषेपश्नोत्तर ४१२६|| एक ए कालाणु रहे . ते शुद्धकालद्रव्य कहीए. तेनो गुण वर्तनालक्षण. तेना पर्याय बे. एक
व्यंजनपर्याय एक अर्थपर्याय त्यां एक एक कालाणु एक प्रदेशो . ते आकाश प्रदेशने विष अमूर्त थको रहे ते शुद्धव्यंजनपर्याय. तथा काल द्रव्यनो वर्तना लक्षण जे गुण ते षट्गुण हानि वृद्धि रूप परिणमे ते शुद्धअर्थपर्याय कहीए. काल अव्यने पण अशुद्ध गुण पर्याय नथी समय || श्रावली प्रमुख जे काल ते पण शुद्धकालाणु अव्यपर्यायना जाणवा. काल अव्ययकी नित्य, | | पर्याय थकी उत्पत्ति विनाश रूप ॥ इति कालव्य व्याख्यानं. ।।
अथाकाशजव्य व्याख्यान॥ श्राकाशव्य लोकालोक व्यापिअखंमअमूर्त अनंत प्रदेशीएकद्रव्य बे.ते आकाश द्रव्यनो गुण अवकाशरूपपर्याय एक व्यंजनपर्याय एक अर्थपर्याय त्यां आकाश द्रव्य || अखंग लोकालोक प्रमाण अमूर्तरूप परिणमे ते शुद्धव्यंजनपर्याय कहीए. तथा अवकाश ल. "
१२६॥ कणजे गुण ते षगुण हानिवृद्धिरूप परिणम ते शुद्धअर्थपर्याय एने पण अशुद्धअर्थपर्याय न
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