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करि परीक्षा लिङए । सूरी श्री पार्श्वचंड शिष्यवर समरचंड श्म उच्चरे ॥ शुद्ध जिनधर्म करे श्क चित्तें तेह नवसायर तरे ॥
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॥ अथ श्री जगवति सूत्रमा बतावेलुं गणित प्रमाण ॥ श्री नगवति सूत्रमा बढे शतके बढे उदेशे गणित प्रमाण कहल ले तेनुं सुगम नाषांतर || आ. मुजब ले के,-श्री लगवंत समीपे गौतमस्वामिये पूयुं, हे नगवन्! एक मूहुर्ते के|| टला उसासा होय ? स्वामीए गौतम प्रत्ये कयु. अहो गौतम! समय-अति सूक्ष्मकाळ जेना एकना | बेनाग न थाय एवा असंख्याता समय जाय तो एक श्रावलिका थाय. संख्याती श्रावलिका एक उसास, संख्याती आवलिकाए एक निःश्वास थाय. थाधि व्याधि रहित हर्षित पुरुषनो एक जसास एक निःश्वास के जेने एक प्राण कहेवामां आवेने एवा सात प्राणे एक थोव थाय, एवा सात थोवनो एक लव कहेवायडे, एवा सित्योतेर (७७) लवर्नु एक मुहूर्त थायजे. एक मुहूर्ते