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| धरणेऽहु खगें5 इंश दिव्य देह पाय स्वाद विषयके राचा है, जौलौं ग्यानन्नावकों स्वन्नाव घट
प्रगटै न तोलों श्ह चिदानंद सब खेल काचा है ॥ ६॥ आदि है अनादि है अखंमित अवा- || |धि है न कमी है न ज्यादेहै सुव्यापक सरब है, एक है अनेक है अलेख लेख रेख ऐसो परजै विशेषहीमें जाहीको परबहै। तोहीमें है मोहिमें है जहां देखो जाहीमें है सत्ताकी समोहोमाहि
चेतन जरब है, परजै प्रवान है अनंत ग्यानवान है सो मोखको निदान ऐसो आतमदरब है |॥ ७॥ श्नहीके ध्यान निरवान पद पाश्यत श्नहीके ध्यान ग्यान केवल लहतु है, श्नहीके | ध्यान कीए मिटत करममल अचल अमल गुन श्रातमा गहतु है ॥ श्नहोके ध्यान सुरलोक नरलोकहुमें पावै प्रजुताई नवपातिक दहतुहै, सोहे घटमंदिरमें आतमा प्रगट देव ताकी कर सेव मुनि हर्ष यु कहतु है ॥ ७॥ ईश जगदीश औ अधीश शीष अवनीश करत मुनीश सब याहिकी उपासना, वही चिदानंदप्रनु पूरन परमब्रह्म पुग्गलमै मिख्यौ जैसे पुहपमैं वासना॥ || | नेद ग्यानदिष्टिसौं विचच्छन विभिन्न करे जैसें मथि काढियतु काठमैं हुतासना, कहे हरख- ||४||
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