________________
[ ४ ] महाराजा को पितृ भक्ति :
जब महाराजकुमार गजसिंह को यह संदेश मिला कि उनके पिता दक्षिण में रोग-ग्रसित हो गये हैं तो उन्होंने जोधपुर की शासनव्यवस्था, जो उस समय बड़ी जिम्मेदारी का कार्य था, छोड़ कर तुरन्त ही दक्षिण की ओर रवाना हो गये किन्तु दुर्भाग्यवश सवाई राजा सूरसिंह का देहावसान इनके वहां पहुंचने के पूर्व ही हो जाने के कारण ये पिता के अन्तिम दर्शन नहीं कर सके । इनका राज्याभिषेक भी उस समय दक्षिण में ही हुआ ।
महाराजा गजसिंह अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजा थे। बादशाह जहांगीर ने सिंहासनारूढ़ होते ही जब महाराजा सूरसिंह का सम्मान करने के लिये उन्हें अपने दरबार में बुलाया तो महाराज कुमार गजसिंह भी उनके साथ थे। बादशाह महाराज कुमार से बहुत प्रभावित हुआ और जालोर उन्हें इनायत कर दिया, अर्थात् जालोर पर अपनो अधिकार करने की इनको छूट दे दी। जालोर पर उन दिनों बिहारी पठानों का अधिकार था । महाराजकुमार गजसिंह ने दिल्ली से लौटते ही जालोर पर धावा बोल दिया। जिस जालोर को फतह करने में अल्लाउद्दीन को बारह वर्ष लगे थे तथा अत्यधिक सैन्य शक्ति व छल-कपट से काम लिया गया था उसी जालोर को महाराजकुमार गजसिंह ने केवल तीन मास में ही अपने अधिकार में कर लिया। कवि ने निम्न पंक्तियों में इस बात को प्रकट किया है
लड़ि बारह बरस अलावदी, लखां दळां छळहूं लियौ । त्रण मास मांय गजबंध तिकी, 'जालंधर' गढ़ जीपियौ ।।
सू. प्र. भाग १., पृ. २६६ यही नहीं, कई घटनाओं में कवि ने इनके असाधारण शौर्य का भी चित्रण किया है । जहांगीर के पुत्र शाहजादे खुर्रम ने, जो आगे चल कर शाहजहां के नाम से तख्त पर बैठा, विद्रोह कर दिया और उसने दक्षिण में बड़ी भारी सेना तैयार की। उसने महान् शक्तिशाली भीम सीसोदिया को अपनी ओर मिला लिया और स्वयं बादशाह बनने के लिये दिल्ली की ओर बढ़ा। बादशाह जहांगीर ने उसका मुकाबला करने के लिये शाहजादे परवेज के साथ आमेर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह को उनके पास अधिक सेना होने के कारण फौज में आगे रखा गया । यह बात स्वाभिमानी गजसिंह को अपमानजनक लगी और वे अपनी टुकड़ी को अलग कर के एक ओर खड़े हो गये, तथा दूर से ही युद्ध के परिणाम की प्रतीक्षा करने लगे। इस प्रकार कवि ने यह प्रकट किया है कि महाराजा कितने स्वाभिमानी थे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org