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[ २६ ] विजय को तिथि के साथ ही अंकित कर दिया है। यथा
सत्रेस समत सत्यासिय, विजे दसमी सनि जीत । वदि कातिक गुण वरणियो, दसमी वार प्रदीत । वरिणयौ गुण इक बरस विच, उकति अरथ प्रणपार । छंद अनस्टुप करिउ जन, सत पंच सात हजार । "अभा' तणी सुभ नजर अति, वधि छक सुकवि विधांन । कुरव दांन लहियो अधिक, कहियो करणीदांन ।
सू. प्र. भाग ३, पृ. २७३ । उक्त छप्पय से स्पष्ट है कि कवि ने महाराजा के विजय-संवत् १७८७ की विजयादशमी (ई० सन् १० अक्तूबर १७३०) से लगभग एक वर्ष बाद कार्तिक कृष्णा दशमी रविवार को ग्रंथ लिख कर सम्पूर्ण किया । अतः यह वि० सं० १७८८ तदनुसार ई० सन् १७३१ ही हो सकता है।
घटनामों की ऐतिहासिक प्रामाणिकता जयचन्द के वंशज सीहा के पुत्र आसथान (जिसने मारवाड़ में राज्य स्थापित किया था) से लेकर कवि ने अपने आश्रयदाता महाराजा अभयसिंह के पिता महाराजा अजीतसिंह तक की वंश-तालिका के अन्तर्गत कई राजाओं का विस्तार से वर्णन किया है, जिसमें अजीतसिंह का वर्णन बहुत विस्तृत है।
यह वर्णन ऐतिहासिक दृष्टि से प्रायः ठीक जान पड़ता है। किन्तु, कुछ छोटी-मोटी घटनाओं के बारे में कहीं कहीं कवि की असावधानी भी प्रकट होती है । जैसे, राव जोधा के बाद उसका पुत्र राव सातल गद्दी पर बैठा । उसने (श्रावणादि) वि० सं० १५४५ से १५४८ तदनुसार ई० सं० १४८६ से १४६२ तक तीन वर्ष राज्य किया । वि० सं० १५४८ (ई० सं० १४६२) में मुसलमानों ने गांव पीपाड़ से कुछ औरतों (तीजरिणयों)' का अपहरण किया। जब राव सातल को पता चला तो उसने गांव कोसाणे में उन मुसलमानों को परास्त करके 'तीजणियों' को छुड़ाया। इस युद्ध में मीर घडूला नामक मुसलमान मारा गया। युद्ध में राव सातल बहुत घायल हो गया था। अत: कुछ दिन बाद वह भी मर गया और उसके कोई पुत्र नहीं होने के कारण जोधाजी का एक पुत्र राव सूजा गद्दी पर बैठा । यद्यपि राव सूजा ने राव सातल के साथ मुसलमानों से युद्ध किया किन्तु मीर घडूला को मारने की घटना का सम्बन्ध राव सातल के राज्य
१ डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा द्वारा लिखित 'जोधपुर राज्य का इतिहास', भाग १, पृष्ठ
२६१ का तीसरा फुट नोट। . • डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द प्रोझा द्वारा लिखित 'जोधपुर राज्य का इतिहास', भाग १, पृष्ठ
२६१-२६२ ।
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