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[ ३० ] काल से ही है। इस में कवि ने जोधाजी के बाद राव सूजा का ही राजा होना लिखा है और मीर घडूला' के मारे जाने की घटना का सम्बन्ध उसी से जोड़ दिया है । ग्रंथ में राव सातल का बिलकुल उल्लेख नहीं किया गया है, जिसका कारण कवि की असावधानी ही हो सकती है । आगे महाराजा अजीतसिंह तक का वर्णन इतिहास से प्रायः ठीक मेल खाता है।
महाराजा अभयसिंह के राज्याभिषेक के बाद से उनके द्वारा अहमदाबाद विजय तक का वर्णन करना ही कवि का मुख्य उद्देश्य था । अतः हम आगे इन्हीं घटनाओं की ऐतिहासिक विवेचना करने का प्रयत्न करेंगे।
महाराजकुमार प्रभसिंह को दिल्ली भेजना जब महाराजा अजीतसिंह ने नागौर के राव इन्द्रसिंह के पुत्र मोहकमसिंह को दिल्ली में मरवा डाला तो बादशाह फर्रुखशियर ने हुसेनअली के साथ महाराजा के विरुद्ध बहुत बड़ा यवन-दल भेजा। महाराजा ने हुसेनअली से संधि करली, जिसके अनुसार महाराजकुमार अभयसिंह को उसके साथ दिल्ली भेजा गया। बादशाह ने महाराजकुमार का समुचित स्वागत किया। यह घटना इतिहास-सम्मत है। महाराजकुमार अभयसिंह को मुजफ्फरअली खां का सामना करने भेजना
ग्रन्थानुसार महाराजा अजीतसिंह की बढ़ती हुई शक्ति को दबाने के लिये बादशाह मुहम्मद शाह ने मुजफ्फरअली खां को शाही सेना के साथ भेजा। उस समय महाराजा अजीतसिंह अजमेर में बादशाह की तरह शान से रहते थे। महाराजा ने मुजफ्फरअली खाँ का सामना करने के लिये राजकुमार अभयसिंह को राठौड़वाहिनी के साथ भेजा । राठौड़ों के भय से मुजफ्फर खां भाग गया।
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वि० सं० १७७८ (ई० सं० १७२१ में बादशाह महम्मदशाह ने मुजफ्फर अली खाँ को अजमेर की सूबेदारी दी। महाराजा अजीतसिंह का दमन करने के लिये छ: लाख रुपये सेना के व्यय स्वरूप तय हए, किन्तु उस समय उसे दो लाख ही मिले । बादशाह ने सोचा कि शाही सेना का अपने विरुद्ध आना सुन कर अजीतसिंह अजमेर छोड़ देगा किन्तु जब महाराजा ने ऐसा नहीं किया तो बादशाह ने मुजफ्फरअली खाँ को मनोहरपुर में ही ठहर जाने का फरमान भेजा । वहाँ वह तीन मास तक पड़ा रहा और उसके पास सेना आदि पर किया जाने वाला व्यय समाप्त हो गया। बादशाह
१ देखो सूरजप्रकास भाग १, पृष्ठ २५२ का फुटनोट ।
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