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[ २८ ] स्पष्ट है कि (श्रावणादि) वि० सं० १७८७ की विजयादशमी शनिवार (१० अक्टूबर सन् १७३० ई०) को महाराजा विजयी हुए। अत: यह भी स्पष्ट हो गया कि उक्त तीन तिथियां वि० सं० १७८७ की आश्विन शुक्ला सप्तमी, अष्टमी और नवमी ७, ८ और ६ अक्टूबर सन् १७३० ई० हैं अर्थात् दोनों ओर से इन तीन दिनों में गोलाबारी हुई। चौथे दिन विजयादशमी थी। उसी दिन खुल्लमखुल्ला लड़ाई हुई और महाराजा विजयी हुए।
डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा' और पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ ने महाराजा की विजय कार्तिक वदि ५ वि० सं १७८७ तदनुसार २० अक्टूबर सन् १७३० ई० लिखा है, किन्तु 'सूरजप्रकास' के ही समकालीन ग्रंथ 'राजरूपक' में महाराजा द्वारा अहमदाबाद विजय की तिथि विजयादशमी वि० सं० १७८७ (१० अक्टूबर सन् १७३० ई०) दी है । यथा--
"सतर समत सत्यासियो, आसू उज्जळ 'पक्ख ।
विजं दसम भागा विचित्र, अभै प्रतिग्या अक्ख ॥" इस प्रकार स्पष्ट है कि 'राजरूपक' की उक्त पंक्तियां 'सूरजप्रकास' में दी हुई महाराजा के विजय के दिन की तिथि को सत्य प्रमाणित करती हैं। _ 'राज-रूपक' के रचयिता कवि वीरभाण रतनू और 'सूरजप्रकास' के रचयिता कविराजा करणीदान दोनों युद्ध में मौजूद थे और उन्होंने प्रांखों देखा हाल लिखा है, अतः डॉ० अोझा और रेऊ की अपेक्षा यह तिथि अधिक विश्वसनीय है। इसके अतिरिक्त प्रसिद्ध इतिहासकार कविराजा बाँकीदास ने भी वि० सं० १७८७ की विजयादशमी (१० अक्टूबर सन् १७३० ई०) को ही महाराजा अभयसिंह की अहमदाबाद पर विजय होना लिखा है, अतः अब इस तिथि की सत्यता के बारे में किसी प्रकार के सन्देह को स्थान नहीं दिया जा सकता है।
महाराजा द्वारा अहमदाबाद विजय के एक वर्ष बाद कवि ने इस ग्रंथ को सम्पूर्ण कर दिया था। इस ग्रंथ-पूर्णता की तिथि को भी कवि ने महाराजा की
• डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द प्रोझा द्वारा लिखित 'जोधपुर राज्य का इतिहास' भाग २, पृष्ठ
६१५ तथा पृष्ठ ६१७ का फुटनोट । २ पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित 'मारवाड़ का इतिहास भाग १, पृष्ठ ३३८ । ३ देखो राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में संग्रहीत हस्तलिखित 'राजरूपक' की
प्रति संख्या १५६३० पृष्ठ ३६३ तथा गुटका संख्या १३७७६ पत्र सं. १७४ । ४ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मंदिर जयपुर के ग्रन्यांक २१ 'बांकीदास री ख्यात' पृष्ठ ३६ ।
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