Book Title: Surajprakas Part 03
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 12
________________ [ ३ ] भा सोह उमराव ब दीवांण नाही | " पांन फेरे पतिसाही ॥ मीर त्रुजक ज्यां मांहि, स्रब नटिया तिर सम अवर उमराव काजा । 1 'सूर' पांन साहरा जुड़रण लीधा महाराजा ॥ " ग्रहि पान एम कहियो अगंज, झट खग बौह बाहू झलूं । पकड़ मदर मिलक, मुदफर रौ सिर मोकळं । [ सू. प्र. भाग १, पू. २६३ ] इनकी वीरता के आगे गुजरात के लुटेरे भाग जाते हैं । इसी प्रकार दक्षिण में अमर चम्पू की बढ़ती हुई शक्ति से भयभीत होकर बादशाह अकबर महाराजा सूरसिंह को ही उसके विरुद्ध भेजते हैं और वे बड़ी कुशलता से अमर चम्पू को परास्त कर के स्वदेश लौटते हैं । सम्राट् अकबर के पश्चात् बादशाह जहाँगीर सिंहासनारूढ़ होते ही इन्हें अपने दरबार में बुलाता है और इनके गुणों की प्रशंसा करते हुए जालोर का परगना भेंट करता है । इन सब घटनाओं से इनका वीरश्रेष्ठ होना प्रकट होता है । कवि ने सूरसिंह को एक श्रेष्ठ योद्धा के साथ कुशल राजनीतिज्ञ और प्रतिशोध की भावना रखने वाला भी बताया है। इसका उदाहरण हमें इनके गुजरात की ओर जाते समय सिरोही के राव सुरताण से चन्द्रसेन के पुत्र रायसिंह को धोखे से मारने का प्रतिशोध लेने से मिलता है । इसके विपरीत इनके प्रमुख अमात्य गोविन्ददास भाटी ने इनके भाई के लड़के को मार डाला था, किन्तु गोविन्ददास के अत्यधिक गुणवान् होने के कारण उसको दण्ड नहीं देते और उसको प्रमुख अमात्य के पद पर बनाये रखते हैं । इस प्रकार उनमें अत्याचारियों और दुष्टों को दण्ड देने की और गुणवान की त्रुटि को भी क्षमा कर के उसके गुणों का सम्मान करने की भावना थी । Jain Education International इन गुणों के साथ कवि ने महाराजा को दानवीर और उदार भी बताया है । जब वे गुजरात से लुटेरों का दमन कर के अतुल धन राशि के साथ लौटते हैं तो अपने आश्रित कवियों और सामन्तों को धन और जागीरें देकर पुरस्कृत करते हैं । महाराजा गजसंह : ग्रंथकर्ता ने महाराजा सूरसिंह के ज्येष्ठ पुत्र महाराजा गजसिंह को भी अपने पिता के समान श्रेष्ठ योद्धा, युद्धविद्या में दक्ष और राजनीति कुशल बताया है । इसके अतिरिक्त कवि ने महाराजा का एक पितृभक्त, महान् शक्तिशाली आत्माभिमानी, धैर्यवान्, सहनशील, आत्म-विश्वासी तथा शाही खानदान के प्रति स्वामि-भक्त के रूप में भी चित्रण किया है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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