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भूमिका
"सूरज प्रकास' की रचना जोधपुर-नरेश महाराजा अभयसिंह राठौड़ के दरबारी कवि कविराजा करणीदान ने ऐतिहासिक दृष्टिकोण से की । ग्रन्थ में भारत की प्राचीन परम्परा को ध्यान में रखते हुए मध्यकालीन संस्कृति के अन्तर्गत वीरता आदि का राजस्थानी भाषा के आकर्षक छंदों में अनूठा प्रदर्शन है । संपूर्ण ग्रंथ में वर्णन ऐसा धाराप्रवाह चलता है कि जिससे पाठकों की उत्कण्ठा निरन्तर अग्रसर होती जाती है। कवि महोदय ने यत्र-तत्र अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन ऐसी दक्षता से किया है कि प्रायः कहीं पर भी मूल कथा से कम नहीं टूटा है।
कथानक सर्व प्रथम मंगलाचरण में गणेश, सरस्वती, शिव, सूर्य तथा विष्णु की स्तुति की है । चूंकि राठौड़ सूर्यवंशी हैं, अतः ग्रंथारम्भ में सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु से वंशावली प्रारम्भ करके राजा दशरथ के पश्चात् रामायण का संक्षिप्त वर्णन किया तदनन्तर श्रीराम के पुत्र कुश से राजा पुंज तक की वंशावली का वर्णन करने के पश्चात् राजा पुंज के तेरह पुत्रों का विवरण दिया है जिनसे राठौड़ों की तेरह शाखाएँ निकली हैं । पुंज के ज्येष्ठ पुत्र धर्मबिम्ब की चौथी पीढ़ी में कन्नौज के राजा जयचंद राठौड़ का उल्लेख किया है जो इतिहास-प्रसिद्ध पृथ्वीराज चौहान का समकालीन था, तथा इसी जयचंद की चौथी पीढ़ो में राव सीहा हुआ । सीहा के पुत्र आसथान ने गोहिलों को पराजित करके खेड़ (मारवाड़) पर अधिकार कर लिया था।
तत्पश्चात् रचयिता ने प्रासथानजी के वंशजों का क्रमशः इतिवृत्त लिखा है जिसके अन्तर्गत कई वीरता की घटनायें हैं । इसो वंश मे राव चूंडा, राव रिड़मल, राव जोधा (जोधपुर नगर का संस्थापक), राव सूजा, राव गाँगा, राव मालदेव तथा राजा उदयसिंह के संक्षिप्त वर्णन के साथ उसके वंशज सवाई राजा सूरसिंह, महाराजा गजसिंह तथा महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) का अपेक्षाकृत विस्तृत हाल दिया है।
काबुल में महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) के देहान्त के उपरान्त उनकी गर्भवती रानी से महाराजा अजीतसिंह का जन्म लाहौर में होता है, किन्तु इस समय जोधपुर राज्य पर बादशाह औरंगजेब का अधिकार हो जाता है । यहाँ पर ग्रन्थ में स्वामि-भक्त दुर्गादास राठौड़ के सतत प्रयत्नों द्वारा महाराजा अजीतसिंह
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